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भारतवर्षीय श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कान्फ्रेंस, राजस्थान सम्भाग के अध्यक्ष श्री उमरावमल चोरडिया व उनके सुपुत्र श्री शान्तिकुमार चोरडिया को “दी जैम एण्ड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउन्सिल, बम्बई" द्वारा बिड़ला आडिटोरियम, जयपुर में आयोजित एक भव्य समारोह में राजस्थान के मुख्यमन्त्री श्री अशोक गहलोत ने रंगीन रत्नों के निर्यात में उल्लेखनीय योगदान के लिए प्रतीक चिह्न तथा केन्द्रीय उर्जा राज्यमन्त्री श्रीमती जयवन्तीबेन मेहता ने प्रशस्ति-पत्र देकर सम्मानित किया। श्री चोरडिया जवाहरात उद्योत में चिर-परिचित व्यक्ति ही नहीं वरन् प्रमुख समाजसेवियों में आपकी गणना होती है। श्री चोरडिया के पुरस्कृत होने से सम्पूर्ण जैन समाज भी गौरवान्वित हुआ है। इस अवसर पर भारी संख्या में रत्नव्यवसायियों और समाज के लोगों तथा जैन कान्फ्रेंस परिवार के सभी सदस्यों ने श्री चोरडिया को इसके लिये बधाइयाँ दीं। यहां यह उल्लेखनीय है कि वर्ष १९९८-९९ में भी आपको रत्न निर्यात में उल्लेखनीय योगदान के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है।
पं० शिवचरणलाल जैन गणिनी ज्ञानमती पुरस्कार-२००० से
सम्मानित नयी दिल्ली २५ अक्टूबर : पूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिका ज्ञानमती माताजी की साहित्यिक सेवाओं के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के भाव से दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान, हस्तिनापुर द्वारा १९९५ ई० में सुप्रसिद्ध श्रेष्ठी श्री अनिलकुमार जैन 'कागजी' दिल्ली के अर्थ सहयोग से गणिनी ज्ञानमती पुरस्कार की स्थापना की गयी थी। इसके अन्तर्गत रु. १,००,००० की नकद राशि, रजतप्रशस्ति, शाल एवं श्रीफल से विद्वानों को सम्मानित किया जाता है। इस वर्ष यह पुरस्कार पं० शिवचरणलाल जैन को प्रदान किया गया जिसे उन्होंने ऋषभदेव कल्याण कोष, मैनपुरी को समर्पित कर दिया। ज्ञातव्य है कि पं० शिवचरणलाल जी जैन आगम साहित्य के गम्भीर अध्येता हैं और लम्बे समय से दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान की अकादमिक गतिविधियों से संलग्न रहे हैं।
जैनदीक्षा समारोह सम्पन्न बीदासर २६ अक्टूबर : आचार्यश्री महाप्रज्ञ, युवाचार्यश्री महाश्रमण एवं साध्वी प्रमुखा श्रीकनकप्रभा जी के सान्निध्य में यहां २६ अक्टूबर को मुमुक्षु श्री मुदित कुमार बोथरा (सुपुत्र श्री बालचन्द बोथरा) की भागवती दीक्षा का आयोजन किया गया। दि० २५ अक्टूबर को दीक्षार्थी की शोभायात्रा निकाली गयी एवं २७ अक्टूबर को दीक्षा समारोह का सुन्दर आयोजन रहा। ज्ञातव्य है कि इस वर्ष का आचार्यश्री महाप्रज्ञ का चातुर्मास वीरभूमि बीदासर में ही रहा।
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