Book Title: Sramana 2001 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 199
________________ १९३ इतिहास पर किये जा रहे शोधकार्यों की गुणवत्ता पर ११ हजार रुपये का सम्बोधि पुरस्कार प्रदान किया गया। ज्ञातव्य है कि उनके द्वारा अब तक ३ पुस्तकें और ६० से अधिक शोध आलेख विभिन्न शोधपत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं तथा ४ पुस्तकें अभी मुद्रणाधीन हैं। साधु-साध्वियों एवं मुमुक्षु बहनों का अध्ययनार्थ विद्यापीठ में आगमन गुजरात लिम्बडी अजरामर सम्प्रदाय के गुरुदेव श्री भावचन्द्रजी के शिष्य गुरुदेव मुनि भास्कर स्वामी की प्रेरणा से उनके समुदाय की तीन मुमुक्षु बहनें- कु० भाविनी एच० करिया, कु० वनिता एस० डागा एवं कु० पमिला एस० छेड़ा दिनांक ९.१२.२००१ को पार्श्वनाथ विद्यापीठ में पधारी। पार्श्वचन्द्रगच्छीय धर्मप्रभाविका साध्वी ऊँकार श्री जी शिष्या साध्वी भव्यानन्दश्रीजी की शिष्यायें- साध्वी संयमरसा श्रीजी, साध्वी सिद्धान्तरसा श्रीजी, साध्वी संवेगरसाश्रीजी एवं साध्वी मैत्रीकलाश्रीजी जुलाई माह से ही विद्यापीठ में अध्ययनरत हैं। डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय उन्हें षङ्दर्शन एवं जैन दर्शन, डॉ० अशोक कुमार सिंह प्राकृत व्याकरण एवं उत्तराध्यनसूत्र तथा डॉ० शिवप्रसादजैन धर्म के इतिहास का अध्ययन करा रहे हैं। दिसम्बर माह से संस्कृत भाषा के सुप्रसिद्ध विद्वान प्रो० श्रीनारायण मिश्र (पूर्व अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय घा प्रमुख, कला सङ्काय) साध्वी जी महाराज को सिद्धान्तकौमुदी का अध्ययन करा रहे हैं। समय-समय पर अपने वाराणसी प्रवास के दौरान प्रो० सागरमल जैन साध्वियों को आचाराङ्गसूत्र का विस्तृत अध्ययन करा रहे हैं। मुमुक्षु बहनें भी साध्वियों के साथ ही अध्ययन कर रही हैं। तीन साध्वियाँ, मुमुक्षु बहनें तथा संस्थान में अध्ययनार्थ निवास करने वाली शोधछात्रायें प्रतिदिन सुबह योग का अभ्यास कर रही हैं। इसमें उन्हें साध्वी सिद्धान्तरसाश्री जी एवं डॉ० सुधा जैन का मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है। साध्वीजी के वन्दनार्थ मुम्बई, कोलिकाता, पूना, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, रांची, झांसी, कच्छ, अहमदाबाद आदि स्थानों से आने वाले सज्जनों को यहाँ के शान्त एवं प्राकृतिक वातावरण में अध्ययन-अध्यापन का दृश्य प्राचीन तपोवन का दृश्य उपस्थित करता है। यहाँ स्थित पुरातत्त्व संग्रहालय, विशाल पुस्तकालय, छात्रावास, साध्वी आवास, विशाल ध्यानकक्ष, सुसज्जित भोजनशाला आदि की सुविधाओं को देखकर दर्शनार्थी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं। स्थानकवासी सम्प्रदाय के मुनि श्री मणिभद्र जी म.सा० ठाणा २ भी अपना २००१ का चातुर्मास समाप्त कर कानपुर से अध्ययनार्थ पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी पधार रहे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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