Book Title: So Param Maharas Chakhai Author(s): Chandraprabhsagar Publisher: Jityasha Foundation View full book textPage 3
________________ आशीष मनुष्य का मन अंधकार से घिरा हुआ गहरा गर्त है । यह शुभ चिह्न है कि अंधकार में प्रकाश की आकांक्षा जगी है, हमारा अन्तर-मन ज्योतिर्मय होने के लिए तृषातुर हुआ है । प्रकाश है, इसीलिए प्रकाश की आकांक्षा जगती है । अंधकार का बोध जितना जगेगा, प्रकाश की संभावना उतनी ही बढ़ती चली जायेगी। सच तो यह है कि रात जितनी अंधयारी होती है, सुबह उतनी ही प्यारी होती है। मेरा रंग तुम्हें लगा है, तो यह रंग तुम्हारी चेतना में निखार भी लायेगा। तुम्हारे अन्तर् - मन में जो प्यास जगी है, यह प्यास तो सावन की प्यासी बदली की तरह है, सागर में प्यासी मछली की तरह है, प्रकाश को ढूंढती प्यारी किरण की तरह है । तुम्हारी यह प्यास गले की प्यास नहीं है, यह कंठ से नीचे जगी एक आत्मिक प्यास है। यह सत्य के लिए सत्य हृदय की प्यास है। तुम्हारी प्यास को मेरे प्रणाम हैं । तुम गौण हो, तुम्हारी प्यास ही खास है। सच तो यह है कि तुम्हारी प्यास ही तुम हो । यह प्यास ही तुम्हारी पात्रता है । 'कहाँ यहाँ देवों का नंदन, मलयाचल का अभिनव चंदन । ' नहीं! ऐसा नहीं है कि कोई देवनंदन या अभिनव चंदन नहीं है। अपनी प्यासी आँखों को भीतर के मलयगिरी की ओर उठाओ, तो तुम्हें मलयाचल के चंदन से भीनी महकती हवाएं खुद-ब-खुद तुम्हारी ओर आती हुई महसूस होंगी। तुम कहते हो 'कहाँ यहाँ देवों का नंदन ?' तुम ही तो देवनंदन हो, देवपुत्र हो । बगैर देवपुत्र हुए, दिव्यत्व की प्यास नहीं जग सकती । हमारे अन्तर्-लोक में ही मनुष्य का देवलोक है । मनुष्य खुद एक मंदिर है। मनुष्य परमात्मा का मंदिर बने, यह हम सबका लक्ष्य रहना चाहिये। हर चेतन तत्त्व में परमात्मा की जीवंतता और ज्योतिर्मयता है, इसे सदा स्मरण रखना चाहिये। अपने अचेतन लोक में अपना ध्यान धरोगे, तो अचेतन के पार जो चेतन, उसके पार जो अतिचेतन, उसके पार जो सार्वभौम समष्टिगत परा चेतन है उसमें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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