Book Title: Siddhahem Sabdanushasana sah swopagnya San Laghuvrutti
Author(s): Hemchandracharya, Jambuvijay
Publisher: Hemchandracharya Jain Gyanmandir Patan
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आचार्यश्रीहेमचन्द्रसूरिखणीतो धातुपाठः
५३९
९(१३२३) लुप्लंती छेदने। ३३(१३४७) प्रछंत् ज्ञीप्सायाम् ।। १०(१३२४) लिपीत् उपदेहे। ३४(१३४८) उब्जत् आर्जवे । - ॥विभाषिताः ॥ ३५(१३४९) सृजत् विसर्गे। ११(१३२५) कृतैत् छेदने।
३६(१३५०) रुजोत् भङ्गे। ,१२(१३२६) खिदंत् परिघाते। ३७(१३५१) भुजोत् कौटिल्ये। १३(१३२७) पिशत् अवयवे। ३८(१३५२) टुमस्जोंत् शुद्धौ।
॥वृत् मुचादिः ८॥ ३९(१३५३) जर्ज ४०(१३५४) झत्ि १४(१३२८) रिं १५(१३२९) पिंत् गतौ ।
परिभाषणे। १६(१३३०) धिंत् धारणे।
४१(१३५५) उद्झत् उत्सर्गे। १७(१३३१) क्षित् निवास-गत्योः । ४२(१३५६) जुडत् गतौ। १८(१३३२) षूत् प्रेरणे।
४३(१३५७) पृड ४४(१३५८) मृडत् १९(१३३३) मृत् प्राणत्यागे।
सुखने। २०(१३३४) कृत् विक्षेपे।
४५(१३५९) कडत् मदे। २१(१३३५) गृत् निगरणे। ४६(१३६०) पृणत् प्रीणने। २२(१३३६) लिखत् अक्षरविन्यासे। ४७(१३६१) तुणत् कौटिल्ये। २३(१३३७) जर्च २४(१३३८) झर्चत् परि- ४८(१३६२) मृणत् हिंसायाम् । भाषणे।
४९ (१३६३) द्रुणत् गति-कौटिल्ययोश्च । २५(१३३९) त्वचत् संवरणे। ५०(१३६४) पुणत् शुभे। २६(१३४०) रुचत् स्तुतौ।
५१(१३६५) मुणत् प्रतिज्ञाने। २७(१३४१) ओव्रस्चौत् छेदने। ५२(१३६६) कुणत् शब्दोपकरणयोः । २८(१३४२) ऋछत् इन्द्रियप्रलय- ५३(१२६७) घुण ५४(१३६८) घूर्णत् मूर्तिभावयोः।
भ्रमणे। २९(१३४३) विछत् गतौ।
५५(१३६९) चूतैत् हिंसा-ग्रन्थयोः । ३०(१३४४) उछत् विवासे। ५६(१३७०) णुदत् प्रेरणे। ३१(१३४५) मिछत् उत्क्लेशे। ५७(१३७१) षद्लंत् अवसादने । ३२(१३४६) उछुत् उञ्छे ।
५८(१३७२) विधत् विधाने।
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