Book Title: Siddhahem Sabdanushasana sah swopagnya San Laghuvrutti
Author(s): Hemchandracharya, Jambuvijay
Publisher: Hemchandracharya Jain Gyanmandir Patan
View full book text ________________
५४८
आचार्यश्रीहेमचन्द्रसूपिणीतो धातुपाठः
१९९(१७६६) लोकृ २००(१७६७) तर्क
निवासेषु। २०१(१७६८) रघु २०२(१७६९) लघु २४२(१८०९) मनिण् स्तम्भे। २०३(१७७०) लोच २०४(१७७१) विछ २४३(१८१०) बलि २४४(१८११) भलि २०५(१७७२) अजु २०६(१७७३) तुजु
आभण्डने। २०७(१७७४) पिजु २०८(१७७५) लजु २४५(१८१२) दिविण् परिकूजने । २०९(१७७६) लुजु २१०(१७७७) भजु २४६(१८१३) वृषिण् शक्तिबन्धे । २११(१७७८) पट २१२(१७७९) पुट २४७(१८१४) कुत्सिण अवक्षेपे। २१३(१७८०) लुट २१४(१७८१) घट २४८(१८१५) लक्षिण् आलोचने। २१५(१७८२) घटु २१६(१७८३) वृत २४९(१८१६) हिष्कि २५०(१८१८ २१७(१७८४) पुथ २१८(१७८५) नद
किष्किण हिंसायाम् । २१९(१७८६) वृध २२०(१७८७) गुप २५१(१८१८) निष्किण् परिमाणे। २२१(१७८८) धूप २२२(१७८९) कुप २५२(१८१९) तर्जिण संतर्जने । २२३(१७९०) चीव २२४(१७९१) दशु २५३(१८२०) कूटिण् अप्रमादे । २२५(१७९२) कुशु २२६(१७९३) त्रसु २५४(१८२१) त्रुटिण् छेदने । २२७(१७९४) पिसु २२८(१७९५) कुसु २५५ (१८२२) शठिण श्लाघायाम् । २२९(१७९६) दसु २३०(१७९७) वर्ह २५६(१८२३) कूणिण संकोचने। २३१(१७९८) वृहु २३२(१७९९) वल्ह २५७(१८२४) तूणिण् पूरणे। २३३(१८००) अहु २३४(१८०१) वहु २५८(१८२५) भ्रूणिण आशायाम् । २३५(१८०२) महुण् भासार्थाः। २५९(१८२६) चितिण संवेदने । ॥ परस्मैभाषाः॥
२६०(१८२७) वस्ति २३६(१८०३) युणि जुगुप्सायाम् । २६१(१८२८) गन्धिण् अर्दने। २३७(१८०४) गृणि विज्ञाने। २६२(१८२९) डपि २६३(१८३०) डिा २३८(१८०५) वञ्चिण् प्रलम्भने । २६४(१८३१) डम्पि २६५ (१८३२) डिमि २३९(१८०६) कुटिण् प्रतापने । २६६(१८३३) डम्भि २४०(१८०७) मदिण् तृप्तियोगे। २६७(१८३४) डिम्भिण् संघाते। २४१(१८०८) विदिण् चेतना-ऽऽख्यान- २६८(१८३५) स्यमिण वितर्के ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678