Book Title: Siddhahem Sabdanushasana sah swopagnya San Laghuvrutti
Author(s): Hemchandracharya, Jambuvijay
Publisher: Hemchandracharya Jain Gyanmandir Patan

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Page 595
________________ आचार्यश्रीहेमचन्द्रसूरिखणीतो धातुपाठः ९८(१६६५) छपुण् गतौ। १२४(१६९१) तलण् प्रतिष्ठायाम् । ९९(१६६६) क्षपुण् क्षान्तौ । १२५(१६९२) तुलण् उन्माने। १००(१६६७) ष्टूपण समुच्छ्राये । १२६(१६९३) दुलण् उत्क्षेपे। १०१(१६६८) डिपण् क्षेपे । १२७(१६९४) बुलण निमज्जने । १०२(१६६९) ह्रपण व्यक्तायां वाचि। १२८(१६९५) मूलण् रोहणे। १०३(१६७०) डुपु १०४(१६७१) डिपुण् १२९(१६९६) कल १३०(१६९७) किल संघाते। १३१(१६९८) पिलण् क्षेपे। १०५(१६७२) शूर्पण माने। १३२(१६९९) पलण रक्षणे। १०६(१६७३) शुल्बण सर्जने च। १३३(१७००) इलण् प्रेरणे। १०७(१६७४) डबु १०८(१६७५) डिबुण् १३४(१७०१) चलण् भृतौ। क्षेपे। १३५(१७०२) सान्त्वण सामप्रयोगे। १०९(१६७६) सम्बण् सम्बन्धे। १३६(१७०३) धूशण कान्तीकरणे। ११०(१६७७) कुबुण् आच्छादने। १३७(१७०४) श्लिषण श्लेषणे। १११(१६७८) लुबु ११२(१६७९) तुबुण् १३८(१७५०) लूषण हिंसायाम् । अर्दने। १३९(१७०६) रुषण रोपे। ११३(१६८०) पुर्बण निकेतने। १४०(१७०७) प्युषण् उत्सर्गे। ११४(१६८१) यमण परिवेषणे। १४१(१७०८) पसुण् नाशने। ११५(१६८२) व्ययण क्षये। १४२(१७०९) जसुण रक्षणे। ११६(१६८३) यत्रुण संकोचने । १४३(१७१०) पुंसण् अभिमर्दने । ११७(१६८४) कुद्रुण् अनृतभाषणे। १४४(१७११) ब्रूस १४५(१७१२) पिर ११८(१६८५) श्वभ्रण गतौ। १४६(१७१३) जस १४७(१७१४) बर्ह ११९(१६८६) तिलण् स्नेहने। हिंसायाम् । १२०(१६८७) जलण् अपवारणे। १४८(१७१५) प्लिहण् स्नेहने। १२१(१६८८) क्षलण् शौचे। १४९(१७१६) म्रक्षण म्लेच्छने। १२२(१६८९) पुलण् समुच्छ्राये। १५०(१७१७) भक्षण अदने। १२३(१६९०) बिलण् भेदे। १५१(१७१८) पक्षण परिग्रहे। १. संघाते खं१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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