Book Title: Shwetambar Mat Samiksha Author(s): Ajitkumar Shastri Publisher: Bansidhar Pandit View full book textPage 3
________________ प्रास्ताविक दो शब्द ~+*(*)*+ 1 श्रीमान् पं. अजितकुमारजीने इस पुस्तकको तयारकर समाजकी एक कमीको बहुत अंशोंमें पूरा कर दिया है । इसमें कौन कौनसी बातोंपर प्रकाश डाला गया है यह ज्ञान प्रकरणसूचीके देखने से हो जायगा; उन प्रकरणोंको पृष्ठवार आगे दिखाया है उन प्रकरणों के बीच बीचमें और भी उपप्रकरण हैं वे पुस्तक पढ समय नजर आवेंगे । इस परिश्रमकेलिये हम लेखकको धन्यवाद देते हैं और इस धार्मिक निःस्वार्थ सेवाका आदर समाजमें भी हुए बिना न रहेगा ऐसी हमें आशा है । आजकल प्रेमके और एकताके गीत बहुत कुछ गाये जाते हैं । तथा हम भी खास कर वेतांबर समाजके साथ अपना प्रेमपूर्ण व्यवहार रखनेकी आवश्यकता समझते हैं और सारे समाजसे ऐसी ही अपील करते हैं । परंतु गलताको जताना भी प्रेमके बाहिरका कर्तव्य नहीं है । दिखाये बिना, गलती अपने आप नजरमें नहीं आती । इसलिए गलती को दिखाना एक सुधारका तरीका है । हम आशा करते हैं कि इसपर से समाज नाखुश न होकर लेखक श्रमका आदर ही करेगा । + + + , लेखक की इच्छा है कि जो प्रमादसे अथवा अज्ञानवश लिखनेमें गलती हुई हों उन्हें जो भाई सूचित करेंगे उनको हम आगामी सुधार देंगे । लेखककी इस सदिच्छा का भी विद्वान् लोग सदुपयोग करेंगे एसी हमें आशा है । ' सर्वः सर्व न जानाति यह ठीक है; परंतु इस पुस्तकपरसे यह भी पता चल जायगा कि श्वेतांबर समाजने जैन धर्मके उच्च आदर्शको मलिन कर दिया है, इसमें संदेह नहीं है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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