Book Title: Shrutsagar Ank 2014 01 036
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोगरसभावनुं स्तवन अर्हत जिन गुण गाउं, मेरे प्रभु तीर्थंकर गुण गाउं । एक मने करी ध्याउं, जगतगुरु एक मने करी ध्याउं ||१|| अर्हत जिन गुण गाउं जिनजीके चरणकमल चित्त लाउं १ (ए आंकणी) लोक उद्योत करत वांणीसे, धरमतीरथ आदिकारी । अरिहंतकीरति करूं मनरंगे, चोवीसे केवलधारी. जनवरी २०१४ रिषभ अजित संभव अभिनंदन, सुमति पद्मप्रभु सुपास। चंद्र सुविधि शीतल श्रेयांस [ जिन), वसुपूज्य विमल अनंत. ।। ३ ।। मेरे प्रभु ... नेम पास वीर शासनस्वामी, एम स्तव्या जगदीस | विधुपरे निरमल क्षयजरमरणा, कर्या जिनवर चोवीस. ||२|| मेरे प्रभु.... धरमनाथजिन धरम के धोरी, शांति कुंथु अर चक्री (जी)। जिनपदवी पाली तिम बीजी मल्ली(ल्लिं) मुनिसुव्रत नमीजी ।।४।। मेरे प्रभु... ।। ५ ।। मेरे प्रभु... तीर्थकर मुझ प्रसन्न थाओ, जिम कीरति करुं बहु सेवा ।. जे लोके उत्तम सिद्ध भासक, आरोग्य बुद्धि मले मेवा. ।।६।। मेरे प्रभु... समाधिपणे मुगति मुझ आपो, चंद्र परे शीतलता । सूरजाधिक केवल दिनमणि, सागरवरगंभीरता. सिद्धपद पाये दीओ सेवककुं, लोगस्सगुण बहु तेरा । गणधर एक जीभ कुण गावे, अनंतगुण अधिकेरा. ।।७।। मेरे प्रभु... ।।८ ।। मेरे प्रभु... जिनगुण गाता अक्षयसुख पावे, रिद्धि वृद्धि बुद्धि सोभा । श्रेणिक कृष्ण परे जिनपदवी, गुण गाता टले भवफेरा. ।।९।। मेरे प्रभु.... For Private and Personal Use Only ओगणीसे इगीयार (१९११) ना महा वद तेरसे, नटरागे वेरावल गाया । संघ सकल सेवा करें सारी जिनध्याता अमरपद पाया. ||१०|| मेरे प्रभु... ★ ।। इति श्रीनटरागमां लोगस्सभावमां स्तवनं सम्पूर्णम् || संवत् १९११ मा प्रथम अषाढ सुदि २ वार शमौ श्रीवेरावलबिंदर मध्ये । लि. ऋ. रणछोड त. (१) ऋ. डुंगरसी अमरसीजी पठमार्थ । गो. धरमसी लाघाने । तथा?

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