Book Title: Shrutsagar Ank 2014 01 036
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ जनवरी - २०१४ आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। इनके निरन्तर अभ्यास से चित्त की वृत्तियाँ अपने आप ही विलीन हो जाती हैं, नष्ट हो जाती हैं, बुद्धि शुद्ध हो जाती है और इसी अवस्था में चित्त की एकाग्रता से कैवल्य (मोक्ष) की प्राप्ति हो जाती है। इन आठ अंगों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है: यम : 'अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इसके आधार हैं। यम का पहला चरण अहिंसा है। इस अवस्था में कुत्सित भावना का अन्त निहित है। सात्त्विक जीवन के साथ जीव उस पथ को प्राप्त करता है जिससे दूसरों को शारीरिक अथवा मानसिक कष्ट का अनुभव नहीं होता, चाहे छोटा-सा जीव-जन्तु ही क्यों न हो। अहिंसा प्रतिष्ठाया तत्सन्निधौ वैरत्यागः।" अतः जब योगी का अहिंसाभाव पूर्णतः दढ़, स्थिर हो जाता है तब वह निकटवर्ती हिंसकभाव से रहित हो जाता है। नियम : 'शौचसन्तोषतपः स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः'। शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय ईश्वर-प्रणिधानादि पाँच नियम हैं। इनका सम्यक्तया पालन करने से शारीरिक विकार मिट जाते हैं और साधक को समाधिरूपी सिद्धि प्राप्त होती है। आसन : 'स्थिरसुखमासनम्। '१३ स्थिर हो कर सुखपूर्वक ईश-वन्दना की अवस्था में बैठना आसन है। हठयोग में क्रियाओं को आसन कहा है लेकिन विशेष रूप से तीन ही आसन ईशवन्दना में सहायक हैं-पद्मासन, सिद्धासन और वज्रासन । भगवान् शिव पद्मासन, भगवान महावीर सिद्धासन और हनुमानजी वज्रासन के प्रतीक हैं। मुस्लिम समाज नमाज के समय वज्रासन का ही अनुसरण करता है। योग में ध्यानसहायक तथा आरोग्यवर्धक आसनों के अनेक प्रकार वर्णित हैं जो आज के समय में स्वास्थ्यवर्धक सिद्ध हुए हैं। प्राणायाम : 'तस्मिन् सति श्वासप्रश्वासयोर्विच्छेदः प्राणायामः । १४ प्राणवायु का शरीर में नासिका द्वारा प्रवेश प्राणायाम है। प्राणायाम में पूरक, रेचक तथा कुंभक तीन प्रकार की क्रिया होती हैं। बाह्यवृत्ति अवस्था में वायु नासिका द्वारा निकाल कर कुछ काल तक रोकने को 'रेचक' कहते हैं। आभ्यन्तरवृत्ति अवस्था में प्राणवायु भीतर से निकल कर नासिका द्वार रोक कर थोड़े विश्राम के बाद बाहर आती है जो पूरक प्राणायाम है। स्तंभवृत्ति में भीतर जाने और बाहर निकलनेवाली वायु ९. यमनियमासन-प्राणायामप्रत्याहारधारणाघ्यानसमाघयोऽष्टावङ्गानि योगः। - योगसूत्र २/२९ १०. योगसूत्र - २/३०, ११. योगसूत्र-३५, १२. योगसूत्र - २/३२, १३. योगसूत्र-२/३२, १४. योगसूत्र-२/४९ For Private and Personal Use Only

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