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श्रुतसागर - ३६ हुआ है। किन्तु सांख्य के प्रकृति और पुरुष एक-दूसरे से भिन्न एवं विरुद्ध स्वभाव वाले होने के कारण इन्हें संयुक्त करने के लिए यहाँ ईश्वर की परिकल्पना की आवश्यक्ता अनुभव की गई है। इसके अनुसार ईश्वर को सृष्टि के निर्माण में निमित्त कारण माना जा सकता है तथा प्रकृति को उपादान कारण कह सकते हैं। ईश्वर-दयालु, वेदों का प्रणेता, अन्तर्यामी, धर्म, ज्ञान तथा ऐश्वर्य का स्वामी है। योग के मार्ग में आनेवाली बाधाओं को दूर करनेवाला, ऋषियों का भी गुरु है। 'ओ३म’ ईश्वर का सर्वश्रेष्ठ नाम है। अपने भक्तों की वह सदा सहायता करता है।
योगशास्त्र का प्रमुख विषय है चित्त। चित्त की पाँच अवस्थाएँ हैं-क्षिप्त, मूढ़, विक्षिप्त, निरुद्ध तथा एकाग्र। महर्षि पतञ्जलि ने 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः' कह कर चित्त की प्रवृत्तियों पर काबू पाने को योग कहा है। प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा तथा स्मृति ये पाँच चित्त की प्रवृत्तियाँ हैं। इनके निरोध से दुःख नष्ट हो जाते हैं।
सांख्य सम्मत प्रत्यक्ष, अनुमान और शाब्द ये तीन ही प्रमाण यहाँ मान्य हैं। विपर्ययवृत्ति मिथ्याज्ञान पर आधारित है, जो पदार्थ जिस रूप में प्रतिष्ठित होता है उस रूप का ज्ञानाभाव ही मिथ्याज्ञान है।' विकल्पवृत्ति भी मिथ्याज्ञान की जननी है। शब्दज्ञान द्वारा यह बाधित विषय-विषयक है। महर्षि पतञ्जलि ने बाधित विषय को 'वस्तुशून्य' कहा है। निद्रा का सम्बन्ध सुषुप्ति से है। किसी भी वस्तु के अभावज्ञान का आलम्बन करनेवाली वृत्ति निद्रा है। यह तीन प्रकार की है-सात्विकी, राजसी और तामसी। सात्विकी निद्रा में से जागने के बाद 'सखेन अहं सुप्तः' मैं सुखपूर्वक सोया, का स्मरण होता है। राजसी निद्रा में से जागने के बाद "दुःखेन अहं सुप्तः' मैंन सोने में दुःख का अनुभव किया। तामसी निद्रा में से उठने वाला व्यक्ति स्वयं को मोहयुक्त, आलस्ययुक्त महसूस करता है, 'अहं मोहेन सुप्तः । पाँचवीं वृत्ति स्मृति है। यह पूर्वोक्त चार वृत्तियों पर आधारित है। इसका काम है अनुभूत विषय को संस्कारप्रणालि द्वारा ग्रहण करना।'
योगदर्शन में योग के आठ अंगों का वर्णन विशेष रूप से किया गया है। इनके पूर्ण साधन से बाधक योगी पद को प्राप्त कर लेता है। ये हैं-यम, नियम, ४. प्रमाणविर्ययविकल्पनिद्रास्मृतयः। - योगसूत्र १/६ ५. विपर्ययो मिथ्याज्ञानमतद्रूपप्रतिष्ठितम् | - योगसूत्र १/८ ६. शब्दज्ञानानुपाती वस्तुशून्यो विकल्पः | - योगसूत्र १/९ ७. अमावप्रत्ययालम्बना-वृत्तिनिद्रा। - योगसूत्रम् १/७ ८. अनुभूतविषयासम्प्रयोगः स्मृतिः। - योगसूत्र १/११
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