Book Title: Shrutsagar Ank 2014 01 036
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगदर्शन एक परिचय डॉ. उत्तमसिंह 'दर्शन' शब्द 'दृश्' धातु से 'ल्युट्' प्रत्यय करके निष्पन्न हुआ है। जिसका अर्थ है 'देखना' । 'दृश्यतेऽनेनेति दर्शनम्' अथवा 'दृश्यते यत् तद् दर्शनम्' इस व्युत्पत्ति के अनुसार-'जिसके द्वारा देखा जाए' अथवा 'जो देखा जाए वह दर्शन है। यहाँ देखने से अभिप्राय है-'वास्तविकता का अवलोकन'। अर्थात् वस्तु के सत्यभूत तात्त्विक स्वरूप का अवलोकन करना अथवा कराना ही दर्शन का प्रमुख उद्देश्य है। दो समानान्तर धाराओं में प्रवाहमान भारतीय दार्शनिक परम्परा को प्रमुख रूप से दो परम्पराओं में विभाजित किया गया है - (१) वैदिक परम्परा और (२) श्रमण परम्परा। वैदिक परम्परा में वेदों की प्रामाणिकता को स्वीकार करने वाले दर्शन प्रमुख रूप से छः हैं - न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, पूर्वमीमांसा तथा उत्तरमीमांसा। वेदों की प्रामाणिकता को अस्वीकृत करनेवाले दर्शन प्रमुखरूप से तीन हैंजैनदर्शन, बौद्ध एवं चार्वाकदर्शन । आज चार्वाकदर्शन के अधिकांश ग्रन्थ अनुपलब्ध हैं। लेकिन उनके सिद्धान्त जो यत्र-तत्र उद्धरणस्वरूप प्राप्त होते हैं उनका अपना एक वैशिष्ट्य है। जबकि बौद्ध तथा जैन परम्परा के ग्रन्थों का एक विपुल भण्डार प्राप्त होता है। यहाँ मन में एक विचार आता है कि-शायद चार्वाक दर्शन सम्मत नास्तिकता का सिद्धान्त ही उसके अनुयायिओं तथा ग्रन्थों के नष्ट होने में एक प्रमुख कारण रहा हो। बौद्ध तथा जैनदर्शन सम्मत ग्रन्थों की उपलब्धता उनके कहीं न कहीं (वेदं विहाय) आस्तिकता से जुड़े होने का संकेत है। यहाँ वैदिक परम्परा सम्मत योगदर्शन के सिद्धान्तादि का परिचय प्रस्तुत करने का प्रयास किया है : 'योजनाद योगः' अर्थात जोड़नेवाला योग है। महर्षि पतञ्जलि इस दर्शन के प्रणेता हैं। और योगसूत्र उसका आधारग्रन्थ है जिस पर 'व्यासभाष्य' को सर्वाधिक प्रामाणिक व्याख्याग्रन्थ माना गया है। व्यासभाष्य पर आचार्य वाचस्पति मिश्र कृत् 'तत्त्ववैशारदी' एवं आचार्य विज्ञानभिक्षु कृत् 'योगवार्तिक' दो प्रसिद्ध टीकाएँ उपलब्ध हैं। इनके अतिरिक्त भोजवृत्ति, मणिप्रभा, आदि व्याख्या-ग्रन्थ भी योगसूत्रों पर लिखे गये हैं। जैनाचार्यों द्वारा कृत् योग ग्रन्थ भी विपुल मात्रा में For Private and Personal Use Only

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