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श्रुतसागर - ३६
१५ कर्ता परिचय:___ कृतिना अंते कर्ता पोताने पद्ममेरुना शिष्य तरीके ओळखावे छे. एटले कृति अनुसार आ रचना पद्ममेरुना शिष्य द्वारा थई होवानुं कही शकाय एम छे. स्तवनना अंते मळता ‘कृतं वा. मतिवर्धनगणिना' आ उल्लेख अनुसार मतिवर्धन गणिने आ कृतिना कर्ता मानी शकाय नहीं. जो मतिवर्धन गणिए ज आ स्तवननी रचना करी होय तो ए पोताना नामनो उल्लेख आम स्वतंत्र रीते न करता कृतिमा ज योग्य स्थाने कों होत, परंतु कृतिमां तो पद्ममेरुशिष्य एवो ज उल्लेख जोवा मळे छे. __ स्तवनना अंते पद्ममेरुशिष्य लखे अने प्रतना अंते कर्ता स्वयं पोताना नामनो स्वतंत्र उल्लेख करे एवू प्रायः करीने क्यांय जोवा मळतुं नथी. एटले आ कृतिना कर्ता पद्ममेरुना शिष्य ज होवा जोईए. मतिवर्धन गणिने स्तवनना कर्ता तरीके मानवा के केम ते अंगे प्रश्नार्थ उभो थाय छे. विशेषमा प्रतलेखनना आधारे मतिवर्धन गणि विक्रमनी १७मीना उतरार्धमां अने १८मीना पूर्वार्धमां थया होवानुं अनुमान करी शकाय छे. जै. गू. कवि के गुजराती साहित्य कोश खंड-१ विगेरेमा पण पद्ममेरु के मतिवर्धन गणिनी कोई कृति नोंधायेल नथी. परंतु जै. प. ई. भाग२मां पद्ममेरु संबंधी मळता उल्लेख अनुसार पद्ममेरु गणि खरतरगच्छीय आचार्य श्री जिनभद्रसूरि महाराजना शिष्य होवार्नु जणाय छे. ज्यारे अन्य नागोरी वडगच्छनागोरी तपागच्छना भट्टारक हेमसमुद्रसूरिनी परंपरामां पद्मसुंदर उपाध्यायना गुरु तरीके पं. पद्ममेरुगणिनो उल्लेख मळे छे.
। प्रतना अंते मळता 'कृतं वा. मतिवर्धनगणिना' आ उल्लेख अनुसार मतिवर्धन गणि वाचक (वाचनाचार्य) होवानी नोंघ पण मळे छे. आ स्तवनमां कोई गच्छविशेषनो उल्लेख नथी मळतो पण, कृतिमां अने हस्तप्रतमां मळता पद्ममेरु अने वाचक मतिवर्धनगणिना नामथी तेओ प्रायः करीने खरतरगच्छना होवानी पूरी संभावना
मतिवर्धन गणिना नामे चार कृतिओ खरतरगच्छ साहित्य कोशमां मळे छे. चार पैकीनी त्रण कृतिना कर्ता सुमतिहंस उपाध्यायना शिष्य तरीके मतिवर्धन गणिनो उल्लेख मळे छे. अने चोथी कृतिमां मळता मतिवर्धन गणिना गुरुनो उल्लेख प्राप्त थतो नथी.
चारेय कृतिनी नोंध नीचे मुजब छे.
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