Book Title: Shrutsagar Ank 2014 01 036
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८ www.kobatirth.org " थानकू" ए वीस सेवेवि, गोत्र तीर्थंकर बंधि करे । बारमइ ए उदय तेतीस आउ सव्वद्विविमाणवरे ||१२|| Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // फाग ढाल || भरखित्त सिरिनाभिराय, मु (म)रदेवीनंदण । तेरमि भवि जिणजम्म हुअउ, भवदुहसयखंडण || उच्छव करइ सुरिंदविंद सिरिमेरमहीधरि । पूज रचइ नाना पयार", गुण गावइ बहुपरि ।।१३।। त्र्यासी पूरवलक्ख, रज्ज निरवज्ज ति पालइ | जूपमुह जे विसण सत्त, सवि दूरहि टालइ ।। कला बहुत्तरि सयललोय, विवहार प्रकासइ । इह संवच्छर दान देइ, विह समय ति पासइ ||१४|| // भास || इणि अवसरि जिण जिणियअणंगो, नाण अवहि जाणी सुरचंगो || आविय उच्छव करइ सुरंगो, सामिय दिक्खा लियइ निसंगो ||१५|| वरस सहस्स भूमंडलि विहर ए, घात (ति) करम सुहझाणिहि [अ] पहर ए । उवसग (ग्ग) बहुविह जण अहियासया " ए, तपि जप संजमि नाण सुहास ए ||१६|| || भास || पुरमतालपुरि इह विहरंतउ, सिगडमुहंमि उजाणि संपन्नउ । सयलपयत्थपयासणभाणूं, उपपन्नउ केवलवरनाणूं ||१७|| असुर - सुरिंद- वर्णिदहविंदा, समोसरण रचइ चंद- नानिँदा | सीहासणि उववसइ जिणंदो, करइ वखाण नयणाणंदो || १८ || ।। भास ॥ जोवउ-जोवउ भविय विचारउ, एह असार संसार । चंचल भोग-संयोग, देहि निरंतर रोग ||१९|| For Private and Personal Use Only जनवरी २०१४ -

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