Book Title: Shrutsagar Ank 2014 01 036
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर - ३६
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// भास //
भव बीजइ सुलक्षि (क्ष)ण सुकमालो, उत्तरकुरि घण भोगरसालो । ती निपल्योपम आउ भणीजइ, युगलपणइ सुखकाल गमीजइ || ३ ||
त्रीजइ भवि सुरसंपद पामइ, लहिय भोग जं निय मणकामइ । तेजहिकरि रविमंडल जीपइ, पुण्यप्रभावि हि असुह न छीपइ* ||४|| || वीवाहला ढाल ||
दीव पढम जगसारू ए, भव चउथिहिं तिहिं अवतारू ए । क्षेत्र विदेह महाबलू ए. प्रणमइ तसु भूपति अतिबलू ए ||५||
ईसाणिहि ललियंगू ए, पंचमभवि देव सुचंगू ए । कंतिहिं कंतसरी ए, रयणुज्जल समकित धीरु ए || ६ ||
।। भास //
वयरजंघ नरराय, छट्ठ भवंतरि पुणकलिय ।
वज्जिय सयल विसाय, निय तेजहिं रिपु बल दलिय ।।७।।
दसविह कप्पदुमेहिं", पूरिज्जइ भूसणपमुह ।
भोगहिं देवसमेहिं, लहिय सतमभवि मिहुणसुह ! |८||
।। भास ||
सिर (रि) सोहम्मि महिड्डीय देवो भव अट्ठम सुरसारइ सेवो । नवमइ भवि सिर(रि) जंबुअदीविहिं, सुकृतप्रमाणिहि नरभव आविहिं | ९ ||
१७
वैद्य सुविधिसुत जीवानंदो, साहु चिगच्छी ' मनि आणंदो ।
भाव भलउ नितु निय चित्ति' आणइ दसमइ भवि अच्युतसुख माणइ ||१०||
// भास ||
इग्यारमइ ए भवहि विदेहिं, मेर' थकी पूरवदिसइ ए ! विजयह ए पुक्खलनाम, पुंडरीकिण नामिहिं इसी ए ।। भूपती (ति) ए रज्ज करेइ, वज्रसेन तिहां ज (जि) णवरू ए ! राणिय ए धारणीपुत्त, वज्रनाभ जणमणहरु ए ।।११।। विजयह ए षटखंड साधि, आण मनावइ आपणी ए । छंडीय ए रज्जसुह - रिद्धि, दीख लियइ जिणवर तणी ए ।।
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