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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर - ३६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // भास // भव बीजइ सुलक्षि (क्ष)ण सुकमालो, उत्तरकुरि घण भोगरसालो । ती निपल्योपम आउ भणीजइ, युगलपणइ सुखकाल गमीजइ || ३ || त्रीजइ भवि सुरसंपद पामइ, लहिय भोग जं निय मणकामइ । तेजहिकरि रविमंडल जीपइ, पुण्यप्रभावि हि असुह न छीपइ* ||४|| || वीवाहला ढाल || दीव पढम जगसारू ए, भव चउथिहिं तिहिं अवतारू ए । क्षेत्र विदेह महाबलू ए. प्रणमइ तसु भूपति अतिबलू ए ||५|| ईसाणिहि ललियंगू ए, पंचमभवि देव सुचंगू ए । कंतिहिं कंतसरी ए, रयणुज्जल समकित धीरु ए || ६ || ।। भास // वयरजंघ नरराय, छट्ठ भवंतरि पुणकलिय । वज्जिय सयल विसाय, निय तेजहिं रिपु बल दलिय ।।७।। दसविह कप्पदुमेहिं", पूरिज्जइ भूसणपमुह । भोगहिं देवसमेहिं, लहिय सतमभवि मिहुणसुह ! |८|| ।। भास || सिर (रि) सोहम्मि महिड्डीय देवो भव अट्ठम सुरसारइ सेवो । नवमइ भवि सिर(रि) जंबुअदीविहिं, सुकृतप्रमाणिहि नरभव आविहिं | ९ || १७ वैद्य सुविधिसुत जीवानंदो, साहु चिगच्छी ' मनि आणंदो । भाव भलउ नितु निय चित्ति' आणइ दसमइ भवि अच्युतसुख माणइ ||१०|| // भास || इग्यारमइ ए भवहि विदेहिं, मेर' थकी पूरवदिसइ ए ! विजयह ए पुक्खलनाम, पुंडरीकिण नामिहिं इसी ए ।। भूपती (ति) ए रज्ज करेइ, वज्रसेन तिहां ज (जि) णवरू ए ! राणिय ए धारणीपुत्त, वज्रनाभ जणमणहरु ए ।।११।। विजयह ए षटखंड साधि, आण मनावइ आपणी ए । छंडीय ए रज्जसुह - रिद्धि, दीख लियइ जिणवर तणी ए ।। For Private and Personal Use Only
SR No.525286
Book TitleShrutsagar Ank 2014 01 036
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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