Book Title: Shrutsagar Ank 2014 01 036
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जनवरी • २०१४ मूर्तिपूजा स्वीकार की और नूतन चैत्य निर्माण कराकर आप ही के शुभ हाथ से प्रतिष्ठा करवाई। सं. १७७९ में खम्भात में चातुर्मास किया और शत्रुजय-माहात्म्य सुनाया जिसका प्रभाव वहाँ के श्रावकों पर इतना अधिक पड़ा कि शजय पर कारखाना (पीढ़ी) स्थापित कर वहाँ पर नवीन चैत्य एवं जीर्णोद्धार कराना प्रारम्भ किया। यह कारखाना वही है जो फिलहाल आनन्दजी कल्याणजी की पीढी के नाम से प्रसिद्ध है। किसी जगह पर ऐसा उल्लेख पाया जाता है कि उक्त पीढी की स्थापना जोधपुर निवासी संघपति राजाराम ने की थी, परन्तु दोनों के उपदेशक तो श्रीमद् देवचन्द्रजी ही हैं। श्रीमद् के जीवन पर दृष्टिपात करने से एक बात का पता चलता है कि उन्होंने अपनी दिव्य वाक्शक्ति से बहतसे दंढियों की प्रबोधकर सम्यक्त्व दिलाया था। अहमदाबाद में जो डेहले का भंडार है वह आप ही का संग्रह का कहा जाता है। आपका अवसान भी सं. १८११ में वहीं पर हुआ था। खम्भात में एक उपाश्रय आपके नाम से मशहूर है। आपकी बहुत सी संस्कृत, प्राकृत, गुजराती गद्य-पद्य रचनायें उपलब्ध होती हैं। आपके स्तवन जैन समाज में बड़े चाव से गाये जाते हैं। आपका विस्तृत जीवन जानने के लिए "जैन ऐतिहासिक काव्य संग्रह", गुजराती साहित्य परिषद् की सातवीं रिपोर्ट, एवं 'जैनयुग' की फाइल आदि ग्रन्थ देखना चाहिये। श्रीमद् देवचन्द्रजी की अनेक महत्त्वपूर्ण कृतियों में से स्नात्रपूजा भी एक है। जैनधर्म का पूजासाहित्य सुविस्तृत रूपेण उपलब्ध होता है, परन्तु सचित्र पूजा किसी भी मुनिराज की निर्माण की हुई अद्यावधि मेरे देखने या सुनने में नहीं आई। वर्तमान में मध्यप्रांत और बहार के मेरे विहार में मुझे कई अप्रकाशित ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त हुई जिनमें से सचित्र स्नात्र पूजा का परिचय "श्री जैन सत्य प्रकाश द्वारा जैन समाज को सर्व प्रथम कराया जा रहा है। इस प्रति में कुल २४ चित्र हैं जिनका क्रमबद्ध वर्णन निम्न प्रकार है - (१) भगवान श्री ऋषभदेवजी अष्टप्रातिहार्ययुक्त सुनहरी चित्र में अंकित हैं। चारों ओर सुन्दर बेल बनी हुई है। पत्र पर इस प्रकार गाथा लिखी हुई है : गाथा-"चउतीसे अतिसय जुओ... कुसुमांजलि मेलो"। (२) दाहिनी ओर भगवान शांतिनाथजी और बांई ओर भगवान नेमिनाथजी के चित्र वर्णानुसार चित्रित हैं। छ: गाथाएँ पत्र पर लिखी हुई हैं। (३) बाईं ओर भगवान पार्श्वनाथजी एवं भगवान महावीर स्वामीजी के चित्र इन्द्रयुक्त बने हुए हैं। "सयल जिनवर...... करो संघ सुजगीश" इतना पाठ पत्र पर लिखा हुआ है। (४) बीस तीर्थंकरो की मूर्तियाँ तीन पंक्ति में चित्रित हैं। For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36