Book Title: Shrutsagar Ank 2014 01 036
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ श्रुतसागर - ३६ (५) चारों ओर बीस स्थानक तप की स्थापना की हुई है, बीच में तीर्थंकर का जीव उक्त तप की आराधना करता हुआ बतलाया गया है अर्थात् दूसरी ढाल का सम्पूर्ण भाव इस चित्र में बतलाया है। (६) उपर के हिस्से में तीर्थंकर की माता १४ स्वप्न देख रही है और निम्न भाग में पति को दासी सूचित करती है और बगल में चौदह स्वप्न बड़ी खूबी के साथ चित्रे हुए हैं। तीसरी ढाल की छओं गाथाओं का भाव बताया है। (७) इस चित्र में इन्द्रकथित शक्रस्तव का भाव बताया गया है। पहिले इन्द्र स्वसिंहासनारूढ है। तत्पश्चात् कुछ चलकर फिर अंजलीकर शक्रस्तव से भगवान की स्तुति करता है। सामने देवगण बैठा है। चौथी दाल की छहों गाथाओं का भाव बताया है। (८) इस चित्र में दाहिनी ओर १० इन्द्राणीयें वाजिंत्र इत्यादि के साथ जन्म समय के गीतगान का भाव प्रदर्शित करती हैं। वाजिंत्रों में मात्र मृदंग और सारंगी दिखते हैं। बाईं ओर भगवान का जन्म बताया गया है। चौथी ढाल की छै से नौ गाथाओं का भाव बताया है। (९) प्रस्तुत चित्र में ऊपर के एक हिस्से में माता पुत्र को लेकर सोई हुई है और शेष भाग में छप्पन दिक्कुमारीकायें आती हैं और धामधूम पूर्वक भगवान का जन्ममहोत्सव करती हैं। यह चित्र अत्यंत चित्ताकर्षक है "श्री तीर्थपतिनुं कलश मज्जन... गहगहती आणंद" तक का भाव दिखाया है। (१०) इस चित्र के ऊपर के हिस्से में भगवान को दिग्कुमारिकायें माता के पास से लेकर स्नानादिक कार्य के लिये कदलीघर में ले जाती हैं। बाजू में माता को कुमारिकायें स्नान करवाती हैं। तत्पश्चात् अभिषेक कर भगवान को वापिस ले जाती हैं। यह चित्र बडा ही चित्ताकर्षक है। "हे मातइ ते जिनराज जायो... धर्म दायक ईश" तक का भाव बतलाया है। (११) इन्द्र सभा में बैठा हुआ है, इन्द्रासन प्रकंपित होता है, भगवान का मेरु पर्वत पर जन्माभिषेक करने के लिये देवताओं को बुलाने के लिये इन्द्रघण्टानाद कराता है, देवता एकत्रित होते हैं। दृश्य बडा ही सुन्दर हैं। "जिन रयणीजी... नाथ चरण पखालता" तक का भाव बताया गया है। (१२) एक ओर मेरुपर्वतोपरि सिंहासन तैयार कर इन्द्र माता के पास अभिषेकार्थ भगवान को लेने के लिये जा रहा है, दूसरी ओर लेकर आने का भाव बताया है "एम सांभलजी... आतमा पुण्ये भरी" का भाव बताया है। (१३) प्रस्तुत चित्र में इन्द्र महाराज भगवान को ले जाते हैं, आगे देव-देवी नाटक नृत्य इत्यादि कृत्य करते हैं। यह चित्र भी बडा मार्मिक है। "सुरनायकजी... एक तुं जगदीश ए" तक का भाव बतलाया है। For Private and Personal Use Only

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