Book Title: Shrutsagar 2019 08 Volume 06 Issue 03 Author(s): Hiren K Doshi Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR August-2019 क्षमापनाथी अप्रत्याख्यानी कषाय- घणु जोर टळे छे अने अनंतानुबंधी कषायनो उदय थतो नथी। आत्मानी पेठे सर्वात्माओने जाणवा अने क्षमापना करीने अहर्निश वर्तवू । साधर्मिकोनी साथे क्रोधादिक कषायो न थवा जोईए अने अनेक क्षुद्र कारणोथी थया होय तो तुरंत तेओनी माफी मागी लेवी। जे माफी मागी खमावे छे ते आराधक छे अने जे स्हामो खरा शुद्ध अंतःकरणथी खमावतो नथी ते विराधक छ । आत्मार्थी जीवने खमतां खमावतां चंदनबाळानी पेठे केवळज्ञान प्रगटे छे । कुळाचारे अथवा रूढधर्माचारे गाडरीया प्रवाहे “मिच्छामिदुक्कडं" मिथ्या मे दुष्कृतम् एम कहेवाथी अने पश्चात्ताप नहीं थवाथी आत्मानी शुद्धि थती नथी। जेओनी साथे क्लेश थया होय तेओने प्रत्यक्षमां होय तो रूबरूमां खमावो! दूर होय तो पत्रथी वा संदेशाथी खमावो। अहंकारनो त्याग करी लघुता धारण करी खमावो। ___ एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय अने पंचेन्द्रिय सर्वजीवोने आत्मोपयोगे खमावो। कोईनी निन्दा हेलना करी होय तो तेनी माफी मागो। दुष्ट शत्रुओर्नु पण मनथी अशुभ चिंतव्यु होय, वाणीथी अशुभ बोलायु होय, कायाथी अशुभ कर्यु होय तेनी माफी मागो। आत्मानी साक्षीए सर्वजीवोनी माफी मागो।। अशुद्ध बुद्धिनो त्याग करो। तर, अने मरवू ते शुद्ध बुद्धि अने अशुद्ध बुद्धिपर आधार राखे छे। रागद्वेषवाळी ते अशुद्ध बुद्धि छ। शुद्ध बुद्धिमां वैर विरोध प्रगटता नथी। तमोगुणी अने रजोगुणी बुद्धिथी करेली क्षमापनाथी आत्मानी शुद्धि थती नथी। सात्त्विक बुद्धिथी प्रगटेली क्षमापना, अनेक पापकर्मोनो नाश करे छे अने भविष्यकाळमां ते कर्मो बंधाता नथी। ज्यारथी कोईना पर वैर थयु होय, त्यारथी एक वर्षमा तेनी साथे क्षमापना करवी जोईए अने जो एक वर्ष पर्यंतमां पण क्षमापना करवामां न आवे तो सम्यक्त्व टळी जाय छे अने मिथ्यात्वनो उदय थाय छे, माटे सम्यग्दृष्टिओए सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करी सर्वजीवोने खमाववा जोईए । भाव क्षमापना ते जैनधर्म छ । सर्व विश्ववर्ति मनुष्यो भाव क्षमापनाथी वर्ते तो दुनियामां अनेक दुष्ट युद्धो महापापो रहे नहि। क्षमापनामां अहिंसा छे । जेनामां अहिंसा प्रगटे छे तेज क्षमापना करी शके छे। पत्र सदुपदेश भाग-२ पा.नं.-४४६-४४७ For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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