Book Title: Shrutsagar 2019 08 Volume 06 Issue 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 14 श्रुतसागर अगस्त-२०१९ पद्योमा करेली जोई शकाय छे । छल्ले काव्यना अंत्यपद्योमां महापर्वना हार्दस्वरूप परस्पर अपाता खामणानी एटले के सांवत्सरिक क्षमापनानी तथा पांचमना पारणाने दिवसे सौ प्रथम गुरुभगवंतने प्रतिलाभवा (वहोराववा)नी नोंध आपवा पूर्वक कविए काव्यनुं समापन कर्यु छे। खास अहीं काव्यना १५मा पद्यनी “सांजे पुस्तक लई जवानी तपागच्छ, कम(व)लगच्छ तथा खरतरगच्छनी परिपाटीनी,” पद्य क्र. २८नी “पुस्तक लेवा गुरुभगवंतना सामा आववानी तथा पद्य क्र. ३४नी “जीतो टोडरमल जीतो-” ए पदनुं गान करवानी तत्कालीन रिवाजोनी नोंध काव्यनी महत्त्वपूर्ण विगतो कही शकाय । जोके संपूर्ण कृति वांचता तो एवं लागे छे के आपणा ते पूर्वजोने मन प्रसंगना दबदबा करता भावोनुं प्राधान्य वधु हशे। अने माटे ज तेमनी आराधना आपणा करता चडीयाती हशे तथा सुंदर पण। कृतिकार तथा कृतिनी हस्तप्रत काव्यना छेल्ला पद्यमां मळती नोंध मुजब कृतिकार हेमसौभाग्यजी पू.लक्ष्मीसौभाग्यजीना शिष्य छे जो के काव्यमां तेमना गच्छनी के अन्य गुरुपरंपरा संबंधि कोई उल्लेख न होवाथी तेमना विशे कशी विशेष विगतो आपी शकाई नथी। ___ प्रस्तुत कृतिनी कुल ९ हस्तप्रतो (तमाम वि. १९मी अने २०मी सदीनी) आचार्य श्रीकैलाससागरसूरिजी ज्ञानभंडारमां सचवायेली छे जेमांनी हस्तप्रत नं ८६७८६(वि. 20मी सदी) नो अमे आदर्श प्रत तरीके उपयोग कर्यो छे ज्यारे बाकीनी ११८८४८ तेमज ८६१०४ नं. नी प्रतो फक्त पांठातर माटे वापरी छ । खास आ त्रणे प्रतो आपवा बदल ज्ञानमंदिरना व्यवस्थापकश्रीओनो खूब खूब आभार। पर्युषणपर्व स्तवन ॥ ढाल – बिंदलीनी ए देशी॥ MO॥ प्रणमुं पासजिणंदा, वली प्रणमुं सुगुरु' मुणिंदा हो भवियण सुणज्यौजी। पर्व पर्युषण रीत, हुं भाखी(खि)स श्रुत सुविदीत हो भवियण सुणज्यौजी ॥१॥ आठ दिवस अठाइ, ए धर्मपर्व सुखदाइ हो भवियण... । अष्टम द्वीप सुणीजै, नंदीश्वर नित्य थुणीजै हो भवियण... ॥२॥ १. प्रसिद्ध, पाठांतर-1. सद्गुरु, 2. सूत्रविदित, For Private and Personal Use Only

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