Book Title: Shrutsagar 2019 08 Volume 06 Issue 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 21 SHRUTSAGAR August-2019 दर्शावाई छ। गाथा ११मां ११ उपवास अने गाथा १४मां १० उपवासनी वात छे। यथा“हिन जातीनी अस्त्री आदरतां, अधम पुरुषने संगे। एकादश उपवास करंतां, समकित प्रगटे रंगे” ॥११॥ “स्व अस्त्रिसुं नी(नि)यम भांजतो, वेश्यागमन करंतो। हिन अस्त्रि वलि विधवा संगे, दश उपवासे वरतो” ।।१४।। आलोचना एक गहन विषय छ । जे स्वयं पुस्तकमांथी न लेता गीतार्थ गुरु पासेज लेवानी होय छे । गीतार्थ गुरु ग्रंथना आधारे तथा देश-काल-परिणाम-जीवविशेषादिने ध्यानमा लई आलोचना आपता होय छे। एक ज दोष माटे कोईने वधु तो कोईने ओछु पण आपे। आ विषय गीतार्थ गुरुभगवंतोनो छे। आ बाबते माराथी कोई पण प्रकारनी अनधिकृत चेष्टा थई होय के शास्त्रविरुद्ध कंई लखाई गयु होय तो ते बदल हुं क्षमाप्रार्थी छु । कर्ता परिचय प्रस्तुत कृतिना कर्ता सागरगच्छना न्यायसागर छ । तेमना गुरु विवेकसागर अने तेमना दादागुरु उदयसागर छ । उदयसागरसूरिनी कोई अन्य माहिती मळी नथी। ___ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबाना ज्ञानभंडार आधारे न्यायसागरनी अन्य ४ कृतिओ मळे छ । तेमना द्वारा रचित बीजतीथी स्तवननी प्रतोमां तेमनुं अन्य नाम न्यायसमुद्र पण छे । अनुमानित तेमनो समयकाळ १९मी सदीनो होय एवं मानी शकाय। प्रत परिचय आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबाना हस्तप्रत संग्रहालयमां संग्रहित एकमात्र हस्तप्रत क्रमांक -१२५३०० ना आधारे संपादन करेल छे । त्रण पत्र धरावती आ हस्तप्रतना अक्षर सुंदर अने सुवाच्य छ । प्रतिलेखनपुष्पिका उपलब्ध नथी। प्रतना हुंडी भागमां आपेल 'आलोयण' शब्दथी कृतिना विषयनो बोध तुरंत थई आवे छे। प्रतिलेखके गाथा क्रमांक - ९ बाद १० अने ११ लखवामां भूल करी छे, जे अहीं सुधारीने दर्शाववामां आवी छ। For Private and Personal Use Only

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