Book Title: Shrutsagar 2019 08 Volume 06 Issue 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ISSN2454-3705 श्रतसागर | श्रुतसागर SHRUTSAGAR (MONTHLY) August-2019, Volume : 06, Issue : 03, Annual Subscription Rs. 150/- Price Per copy Rs. 15/EDITOR : Hiren Kishorbhai Doshi BOOK-POST / PRINTED MATTER जिनकननियम पय सुपा वास विमान भाऊ२ महिमुनि पार्थमा गसदनमावना नदतिमाल प्रतिमा सनातनानाध माध नागनानाधम ना ना नाव वार मास वर भर थ न थप १५ ६ ७८ र 22 23.४ दिनय ६२५८६८ २६ ६ ६ ६ ६८६८६ यतिकरमाजमनासदिचस तपाजन्ममिकालिरिवासही diw WT02 आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर में संग्रहित वि. १८३९ में लिखित सचित्र कल्पसूत्र में से जन्मवांचन का एक पत्र आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर CREERE For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूज्य राष्ट्रसंतश्री के आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन प्राप्त करते हुए अपने विशिष्ट पदाधिकारियों के साथ विश्वहिन्दु परिषद के केन्द्रीय महामंत्री श्री मिलिंदजी परांदे, श्री संवेगभाई लालभाई, शेठ श्री वसंतभाई अदाणी, श्री श्रीपालभाई शाह व उत्तर गुजरात के पदाधिकारीगण SI For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3 SHRUTSAGAR RNI : GUJMUL/2014/66126 August-2019 ISSN 2454-3705 आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का मुखपत्र) श्रुतसागर મૃતસાગર SHRUTSAGAR (Monthly) वर्ष-६, अंक-३, कुल अंक-६३, अगस्त-२०१९ Year-6, Issue- 3, Total Issue-63, August-2019 वार्षिक सदस्यता शुल्क - रु. १५०/- * Yearly Subscription - Rs.150/अंक शुल्क - रु. १५/- * Price per copy Rs. 15/ आशीर्वाद राष्ट्रसंत प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. * संपादक * * सह संपादक * * संपादन सहयोगी * हिरेन किशोरभाई दोशी रामप्रकाश झा राहुल आर. त्रिवेदी एवं ज्ञानमंदिर परिवार १५ अगस्त, २०१९, वि. सं. २०७५, श्रावण शुक्ल-१५ आराधन श्रा कन्न. श्री मत महावीर अमृतं तू विद्या आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर (जैन व प्राच्यविद्या शोध-संस्थान एवं ग्रन्थालय) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर-३८२००७ फोन नं. (079) 23276204, 205, 252 फैक्स : (079) 23276249, वॉट्स-एप 7575001081 Website : www.kobatirth.org Email : gyanmandir@kobatirth.org For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अगस्त-२०१९ अनुक्रम १. संपादकीय रामप्रकाश झा २. गुरुवाणी आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी ३. Awakening Acharya Padmasagarsuri ४. ज्ञानसागरना तीरे तीरे डॉ. कुमारपाल देसाई ५. पर्युषणपर्व स्तवन गणि सुयशचंद्रविजयजी ६. आलोयणा सज्झाय श्रीमती डिम्पल निरव शाह ७. गुजराती माटे देवनागरी लिपि के हिन्दी माटे गुजराती लिपि हिन्दवी ८. श्रुतसेवा के क्षेत्र में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का योगदान राहुल आर. त्रिवेदी ९. पुस्तक समीक्षा डॉ. हेमन्तकुमार १०. समाचार सार लाभ समय कौ पाइवौ, हानि समय कौ चूक। ता वै चातुर नर तिको, उठत चूक की हुक॥ __ प्रत क्र. १०१५६५ भावार्थ- समय (अवसर) को पकड़ने से लाभ होता है और उसे चूक जाने पर हानि होती है, वही चतुर व्यक्ति होता है, जो समय (अवसर) को तुरंत पकड लेता है। म * प्राप्तिस्थान * आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर तीन बंगला, टोलकनगर, होटल हेरीटेज़ की गली में डॉ. प्रणव नाणावटी क्लीनिक के पास, पालडी अहमदाबाद - ३८०००७, फोन नं. (०७९) २६५८२३५५ For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR August-2019 संपादकीय रामप्रकाश झा आत्मा के ऊपर पड़े हुए कषायादि के आवरण को दूर करने के लिए सम्यक् ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना के महापर्व पर्युषण का प्रारम्भ हो रहा है। गुरुजनों के पावन सान्निध्य में की गई ध्यान-साधना और उपवास-पच्चक्खाण वर्षों से आत्मा के ऊपर पड़े हुए मिथ्यात्व के आवरण को दूरकर उसे मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर करते हैं। प्रस्तुत अंक में “गुरुवाणी” शीर्षक के अन्तर्गत आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के ग्रन्थ पत्रसदुपदेश से संकलित पर्युषण महापर्व से सम्बन्धित उनके विचार प्रस्तुत किए गए हैं। द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के प्रवचनों की पुस्तक 'Awakening' से क्रमबद्ध श्रेणी के अंतर्गत संकलित किया गया है, जिसमें जीवनोपयोगी प्रसंगों का विवेचन किया गया है। “ज्ञानसागरना तीरे तीरे” नामक तृतीय लेख में डॉ. कुमारपाल देसाई के द्वारा आचार्यदेव श्रीमद बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के जीवन, व्यक्तित्व एवं कृतित्व का परिचय दिया गया है। ___अप्रकाशित कृति प्रकाशन के क्रम में सर्वप्रथम पूज्य गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी म. सा. के द्वारा सम्पादित “पर्युषण स्तवन" प्रकाशित किया जा रहा है। इस कृति के कर्ता हेमसौभाग्य ने पर्युषणपर्व के अवसर पर किए जानेवाले धर्मानुष्ठान, कल्पसूत्र का वांचन आदि का वर्णन किया है। द्वितीय कृति के रूप में श्रीमती डिम्पल निरवभाई शाह के द्वारा सम्पादित कृति “आलोयणा सज्झाय” प्रकाशित की जा रही है। इस कृति के कर्ता न्यायसागर ने श्रावकजीवन के विविध अतिचारों को दूर करने के लिए किए जानेवाले प्रायश्चित का वर्णन किया है। पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत बुद्धिप्रकाश, ई.१९३४, पुस्तक-८२, अंक-२ में प्रकाशित “गुजराती माटे देवनागरी लिपि के हिंदी माटे गुजराती लिपि” नामक लेख के शेष भाग का पुनःप्रकाशन किया जा रहा है। इस लेख में गुजराती भाषा को देवनागरी लिपि में अथवा हिन्दी भाषा को गुजराती लिपि में लिखे जाने की उपयोगिता और औचित्य पर प्रकाश डाला गया है। पुस्तक समीक्षा के अन्तर्गत आचार्य श्री रत्नसंचयसूरिजी म. सा. द्वारा रचित “जैन ग्रंथों की गोद में भिन्नमाल की भव्यता” पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत की जा रही है। इस कृति में भीनमाल नगर की प्राचीनता तथा ऐतिहासिक व सांस्कृतिक भव्यता का वर्णन किया गया है। इस अंक में "श्रुतसेवा के क्षेत्र में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर का योगदान” नामक गतांक से चल रहे लेख को प्रकाशित किया जा रहा है। इस लेख के माध्यम से आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर के द्वारा किये जा रहे महत्त्वपूर्ण कार्यों का वर्णन किया गया है। हम यह आशा करते हैं कि इस अंक में संकलित सामग्रियों के द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से हमें अवगत कराने की कृपा करेंगे। For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अगस्त-२०१९ गुरुवाणी आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी जेनामां अहिंसा प्रगटे छे तेज क्षमापना करी शके छे (स. १९७८ भाद्रपद सुदि ६. मु. महेसाणा.) क्षमापना बे भेदे छे, द्रव्यथी अने भावथी, क्षमापना शब्दनो अर्थ थाय छे जेनी साथे क्षमापना करवानी छे तेनी साथे ज्यां सुधी भावथी क्षमापना न थाय त्यां सुधी ते द्रव्य क्षमापना छ । खम, खमावq, उपशमवू अने उपशमावq ए चारित्रनो सार छ। आत्मज्ञानना उपयोगे जे जे जीवोनी साथे वैर विरोध थया छे, तेओने खमाववू, अपराधोनी माफी मागवी अने बीजीवार अपराध न थाय एवो भाव राखवो ते भाव क्षमापना छ। सम्यग्दृष्टि आत्मा भाव क्षमापना करी शके छे। अज्ञानी मिथ्यादृष्टिजीव, भाव क्षमापनाने प्राप्त करी शकतो नथी। छद्मस्थ दशामां अनेक जीवोना अपराधो, दोषो, भूलो थाय छे, तेथी सर्वजीवोनी साथे मिथ्यादुष्कृत देवानी जरूर छे। अन्यजीवोने कोई पण रीते पीडा करवानो पोतानो-हक्क नथी। कोईपण जीवने नुकशान न पहोंचे, तेवी रीते जेम बने तेम वर्तवू जोईए। अनुपयोगदशामां थएला दोषोनो, अपराधोनो अंतःकरणमां पश्चात्ताप करवाथी हृदयनी, आत्मानी शुद्धि थाय छे । हृदयमा अत्यंत पश्चात्ताप थवाथी क्षमापनानी योग्यता प्रगटे छ। अनंतानुबंधी कषायोना उपशमादिभावे भाव क्षमापना प्रगटे छे । सर्वदेहधारीओने सामान्यतः आत्मसाक्षीए खमाववाथी अनंतभवनां कृतकर्मोनी निर्जरा थाय छ । 'खामेमि सव्वजीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे, मित्ति मे सव्वभूएसु, वेरं मज्झ न केणइ' हुँ सर्व जीवोने खमावु छु अने सर्व जीवो मने खमावो। सर्व जीवोनी साथे मारे मैत्री छे, कोईनी साथे वैर नथी। मैत्री भावथी वैरनी शांति थाय छे अने वैरना वैररूप प्रतिबदलाथी वैरनी वृद्धि थाय छे । शुद्ध प्रेमथी वैर शमे छे । क्षमाथी वैर शमे छ। पाक्षिक क्षमापनाथी संज्वलन क्रोधमानमायालोभनो उपशम तथा क्षयोपशम थाय छे । दैनिक क्षमापनाथी कषायोनी घणी मंदता थाय छे अने आत्मानी अतिविशुद्धि थाय छ । चातुर्मासिक क्षमापनाथी प्रत्याख्यानी कषाय अत्यंत उपशमे छ । सांवत्सरिक For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR August-2019 क्षमापनाथी अप्रत्याख्यानी कषाय- घणु जोर टळे छे अने अनंतानुबंधी कषायनो उदय थतो नथी। आत्मानी पेठे सर्वात्माओने जाणवा अने क्षमापना करीने अहर्निश वर्तवू । साधर्मिकोनी साथे क्रोधादिक कषायो न थवा जोईए अने अनेक क्षुद्र कारणोथी थया होय तो तुरंत तेओनी माफी मागी लेवी। जे माफी मागी खमावे छे ते आराधक छे अने जे स्हामो खरा शुद्ध अंतःकरणथी खमावतो नथी ते विराधक छ । आत्मार्थी जीवने खमतां खमावतां चंदनबाळानी पेठे केवळज्ञान प्रगटे छे । कुळाचारे अथवा रूढधर्माचारे गाडरीया प्रवाहे “मिच्छामिदुक्कडं" मिथ्या मे दुष्कृतम् एम कहेवाथी अने पश्चात्ताप नहीं थवाथी आत्मानी शुद्धि थती नथी। जेओनी साथे क्लेश थया होय तेओने प्रत्यक्षमां होय तो रूबरूमां खमावो! दूर होय तो पत्रथी वा संदेशाथी खमावो। अहंकारनो त्याग करी लघुता धारण करी खमावो। ___ एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय अने पंचेन्द्रिय सर्वजीवोने आत्मोपयोगे खमावो। कोईनी निन्दा हेलना करी होय तो तेनी माफी मागो। दुष्ट शत्रुओर्नु पण मनथी अशुभ चिंतव्यु होय, वाणीथी अशुभ बोलायु होय, कायाथी अशुभ कर्यु होय तेनी माफी मागो। आत्मानी साक्षीए सर्वजीवोनी माफी मागो।। अशुद्ध बुद्धिनो त्याग करो। तर, अने मरवू ते शुद्ध बुद्धि अने अशुद्ध बुद्धिपर आधार राखे छे। रागद्वेषवाळी ते अशुद्ध बुद्धि छ। शुद्ध बुद्धिमां वैर विरोध प्रगटता नथी। तमोगुणी अने रजोगुणी बुद्धिथी करेली क्षमापनाथी आत्मानी शुद्धि थती नथी। सात्त्विक बुद्धिथी प्रगटेली क्षमापना, अनेक पापकर्मोनो नाश करे छे अने भविष्यकाळमां ते कर्मो बंधाता नथी। ज्यारथी कोईना पर वैर थयु होय, त्यारथी एक वर्षमा तेनी साथे क्षमापना करवी जोईए अने जो एक वर्ष पर्यंतमां पण क्षमापना करवामां न आवे तो सम्यक्त्व टळी जाय छे अने मिथ्यात्वनो उदय थाय छे, माटे सम्यग्दृष्टिओए सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करी सर्वजीवोने खमाववा जोईए । भाव क्षमापना ते जैनधर्म छ । सर्व विश्ववर्ति मनुष्यो भाव क्षमापनाथी वर्ते तो दुनियामां अनेक दुष्ट युद्धो महापापो रहे नहि। क्षमापनामां अहिंसा छे । जेनामां अहिंसा प्रगटे छे तेज क्षमापना करी शके छे। पत्र सदुपदेश भाग-२ पा.नं.-४४६-४४७ For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अगस्त-२०१९ Awakening Acharya Padmasagarsuri (from past issue...) The True Jain People talk of Dharma or righteousness excellently but they do not act according to Dharma and so, they fall into sorrow and misery “THT Tea Trata:” Dharmo rakshati rakshitah If we take care of dharma than dharma takes care of us. To act according to dharma, one will have to realise the self or the nature of his soul. The qualities of the soul are consciousness, joy, knowledge, insight and purity. Sorrow impels us to weep and anger impels us to entertain evil thoughts. On account of sorrow and anger the soul gets involved in Karma and falls into the cycle of birth, growth and death. On the contrary if man concentrates on dharma and purity to realize the nature of his soul, such a concentration will lead him towards deliverance. From times immemorial, the jiva (man) has been existing within the limits of attachments on account of the effect of Karma. Only dharma or righteousness can release the soul from those limits. As the dust of karma covering the soul falls off, the soul will become gradually brighter and brighter. In the world, life oscillates between the passions of love and hate, like the pendulum of a clock. Man can attain peace of mind only by surrendering himself to the Lord who is the very embodiment of detachment. Only he can row the boat of our life across the ocean of Samsar. If you have faith in the Lord; if you have devotion for him; and if you are dedicated to his ideals, you For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR August-2019 can cross easily not only the ocean of life but also the ocean of mortal existence. The great Jainacharya, Sri Manatunga Suri has expressed the same idea in the Adinath Stotra (Bhaktamar): “Even sailors who sail in boats or ships swaying on the tops of the highest waves of the sea which is terrible on account of the crocodiles, whales, and other sea-creatures and sea-fire, cross the sea without experiencing any difficulties or dangers by praying to the Lord.” Once, a ship full of passengers was sailing on an ocean. Suddenly a terrible storm rose. On account of the storm, the ship began to sway dangerously. Seeing this, a Shrawak (a pious Jain) sat meditating on the Lord. His wife said to him “The time has come for being drowned in the sea and for dying; not for meditation." Hearing this, the husband took up his pistol and aimed it at her. The wife began to laugh. When the husband asked her why she was laughing, she replied, “I am fully confident that you will not shoot me, I felt like laughing at your histrionic talents”. The husband said, “Just as you have faith in me, I have faith in the Lord. Hence, I am not afraid of anything; and I am praying to him.” In fact, according to his belief, the storm disappeared. The devotee of Shiva is called a Shaiva; the devotee of Vishnu is called a Vaishnav; the devotee of Buddha is called a Bauddha, and the devotee of Jina is called a Jain. Jina is the name given to one who has conquered all passions like Rag (love) and dvesh (hate). Jina Dev is impartial; and is the very embodiment of the highest knowledge and wisdom. His followers also should possess impartiality, knowledge and wisdom. (continue...) For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 श्रुतसागर अगस्त-२०१९ ज्ञानसागरना तीरेतीरे (योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज :३) डॉ. कुमारपाल देसाई (गतांकथी आगळ..) योगनिष्ठ आचार्य श्रीबुद्धिसागरसूरीश्वरजीनी आ एक वर्षनी रोजनीशीना गद्यमां, लखनारनी चिंतनशीलता प्रगट थाय छ। आमां अनेक विषय पर मननीय लेखो मळे छे। आज सुधी अप्रगट एवा प्रामाणिकता विशेना निबंधमां तेओ कहे छे के - ___“प्रामाणिक वर्तनथी जेटली आत्मानी अने अन्य जनोनी उन्नति थई शके छे, तेटली अन्यथी थती नथी। वळी, रागद्वेष वगेरे दोषोनो जेम जेम नाश थतो जाय, तेम तेम प्रामाणिकपणुं विशेष खीलतुं जाय छे । आवी व्यक्तिने विघ्नो अने संकटो नडे छे, परंतु ते अंते विश्वमां उन्नतिना शिखरे विराजित थाय छे।” आचार्यश्री बुद्धिसागरसूरिजी स्पष्ट कहे छे के"मनुष्यमां सर्व गुणो करतां प्रथम प्रामाणिकपणानो गुण होवो जोईए।" आजे आपणे जोईए छीए के, समाजमां भ्रष्टाचार शिष्टाचार बनी गयो छे । त्यारे आ उपदेश केटलो सचोट अने मर्मस्पर्शी लागे छे! तेओ कहे छे के__“जे देशमा प्रामाणिक मनुष्यो होय ते देश स्वतंत्रताथी अने उन्नतिथी शोभी रहे छे। धर्म, राष्ट्र अने समाजनी उन्नतिनो आधार प्रामाणिकपणा छ।” आचार्यश्री पासे वास्तविक परिस्थितिनुं स्पष्ट दर्शन हतुं अने तेथी ज तेओ आर्यावर्तनी अवनति थवानु मुख्य कारण 'प्रामाणिक गुणथी विमुखता छे' तेम कहे छे। निबंधना समापनमां पोताना विचारोनुं नवनीत तारवतां तेओ कहे छे - __“प्रामाणिक गुण संबंधी भाषण करनारा लाखो मनुष्यो मळी आवशे, पण प्रामाणिकपणे वर्तनारा तो लाखोमांथी पांच मनष्यो पण मळे वा न मळे, तेनो निश्चय करी शकाय नहि। प्रामाणिकपणे वर्तनार मार्गानुसारि गुणने प्राप्त करीने सम्यक्त्वनी प्राप्ति करी शके छे, अने सम्यक्त्वनी प्राप्ति थया बाद चारित्र्यनी प्राप्ति करीने ते मोक्षपदनी प्राप्ति करी शके छे। आर्यावर्त वगेरे देशोमां प्रामाणिकतानो यदि फेलावो थाय तो लूटफाट, क्लेश, युद्ध, मारामारी, गाळागाळी, कोर्टोमां अनेक प्रकारना केसो, कुसंप अने अशांति वगेरेनो नाश थाय एमां जरा मात्र संशय नथी। प्रामाणिकपणे वर्तवाथी अने बोलवाथी खरेखरी स्वनी अने अन्य मनुष्योनी उन्नति करी शकाय छे। For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11 SHRUTSAGAR August-2019 प्रामाणिक मनुष्य पोताना विचारो अने आचारोथी प्रामाणिक गुणनुं वातावरण विश्वमां फेलावे छे अने ते प्रामाणिक गुणना वातावरणना संबंधमां जे जे मनुष्यो आवे छे ते ते मनुष्योने प्रामाणिक गुणनी असर थाय छ ।” ___ आ विचारोमा आचार्यश्रीनी दृष्टि पोतानी आसपासनी वास्तविक परिस्थितिने पूरेपूरी पारखे छे, आथी प्रामाणिकपणाना दुन्यवी लाभो पण ते दर्शावे छे। आनी साथोसाथ तेओ कर्मयोगी ए आत्मयोगी होवाथी, आत्मोन्नतिमां आ गुणनी उपकारकता दर्शाववानुं पण चूकता नथी। मानवीए दैवी संपत्ति वधारवानी छे, अने ए संपत्तिमां प्रामाणिकतानो गुण पण केटलो फाळो आपी शके छे, ते तेओ बतावे छे। गच्छ, संघाडा अने संप्रदायोमा चालता ममत्व विशेनी एमनी आंतरवेदना पण एक नोंधमां व्यक्त थाय छे । तेओ लघु वर्तुळमाथी अनंत आत्मशुद्ध वर्तुळमां प्रवेशवानी हिमायत करे छे अने आमां एमनी व्यापक तेम ज समन्वयसाधक दृष्टिनो परिचय सांपडे छे। तेओ पोताना विहारनां स्थानोनुं पण वर्णन आपे छे । ए स्थानोना जैनोनी अने जैनमंदिरोनी विगतो आपे छे। शिलालेखोनो झीणवटभेर अभ्यास करे छ। वि. सं. १९७१ना महा वद १३ने शुक्रवारे देलवाडाथी आबु आव्या अने एक इतिहासना संशोधकनी जेम तेओ पोतानी नोंधमां लखे छे - ___“वस्तुपाल अने तेजपालना देरासरमां देराणी-जेठाणीना गोखला कहेवाय छे, परंतु ते पर लखेला लेखना आधारे खोटी पडे छे । तेजपालनी स्त्री सुहडादेवीना श्रेयार्थ ते बे गोखलाओने तेजपाले कराव्या छे।” आ रीते आचार्यश्री जैनमंदिरोना शिलालेखोनो झीणवटभेर अभ्यास करे छे अने साथोसाथ धर्मस्थानना आत्मज्योति जगाडता प्रभावने अंतरमा अनुभवे छे। आथी ज तेओ कहे छे - “चेतनजीने खेडब्रह्मा, देरोल, गलोडा वगेरेमा स्थावर तीर्थनां दर्शन करावी आत्मरमणतामां वृद्धि करवा यात्रानो प्रयत्न सेव्यो।” आचार्यश्री बुद्धिसागरसूरिजीनी एक विशेषता ए छे के एमणे भुलायेली योगसाधनाने पुनः प्रतिष्ठा आपी। आ रोजनीशीमां अध्यात्मज्ञान संबंधी तेओ विस्तृत चर्चा करे छ। आमां एमनो शास्त्रनो अभ्यास, विचारक तरीकेनी सूक्ष्मता, कथनने क्रमबद्ध आलेखवानी कुशळता तेम ज पोताना कथयितव्यने शास्त्रना आधारो टांकीने दर्शाववानी निपुणता जोवा मळे छे। रोजनीशीनां सडसठ पानांओमां एमणे आ For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 12 अगस्त-२०१९ विषयनी विस्तृत चर्चा करी छ। विहार, व्याख्यान, उपदेश, वाचन, मनन अने लेखनमां रत रहेता आ योगीराजनुं लक्ष्य तो आत्मानी ओळख पामवानुंजरा छ । आ रोजनीशीमां सालंबन के निरालंबन ध्याननी चर्चा करीने तेओ आत्मज्ञानपूर्वक आत्मध्यान धरीने, आत्मसमाधि प्राप्त करवायूँ कहे छ । आ आत्मसमाधिनी महत्ता दर्शावतां तेओ कहे छे___ “समाधिसुख प्राप्त करवू ए मनुष्यजीवन- मुख्य कर्तव्य छ। समाधिसुखने प्राप्त करवू ए कदापि आत्मध्यान विना बनी शके एम नथी। आत्मध्यानमां परिपूर्ण लक्ष्य राखीने आत्मध्याननो स्थिरोपयोगे अभ्यास करवाथी सालंबन अने निरालंबन ध्यान- सम्यक् स्वरूप अवबोधाय छे, अने तेथी सालंबन अने निरालंबन ध्यानथी शंकानुं समाधान थवा पूर्वक आत्मोन्नतिना मार्गमां विद्युतवेगे गमन करी शकाय छे, एम सद्गुरुगमथी अवबोधq।” तेओ साधुजीवनमां थता अनुभवोने आलेखे छे । संवत १९७१ना श्रावण वद ७ने बुधवारना रोज सवारना साडासात वाग्ये एमणे लोच कराव्यो। आत्मज्ञानीने आ अनुभव केवो भाव जगाडे छे, एर्नु आलेखन आ दिवसनी नोंधमां मळे छे । तेओ कहे छे - __ “लोच करावतां आत्मानी सारी रीते समाधि रही हती। लोच करावती वखते आत्माना शुद्ध स्वरूपनी भावना भाळी हती अने हृदयमां कुंभक प्राणायाम धारवामां आवतो हतो, तेथी लोच करावतां आत्मानो शुद्ध परिणाम वृद्धि पामतो हतो। आ कालमां साधुओने लोचनो परिषह आकरो छ। आत्मज्ञाननी कसोटी खरेखर लोचथी अमुक अंशे थई शके छे। शरीरथी आत्माने भिन्न मान्या बाद लोच करावती वखते आत्मज्ञानीने परिषह सहवाथी अमुक अंशे अनुभव प्राप्त थाय छे।” आम, आ जाग्रत आत्मा जीवननी प्रत्येक क्रियामां आत्माना शुद्ध स्वरूपनी भावना भाळे छे । ते हकीकत आ लोचनी विगतमां पण जोवा मळे छे । ध्यानने महत्त्व आपनार आचार्यश्री बुद्धिसागरसूरिजी ज्यां क्यांय शांति जुए के तरत आत्मध्यान लगावी दे छे । कोई वगडामां जैनमंदिर मळी जाय तो ते एमने ध्यान माटे खूब अनुकूळ लागे छे। फागण वद १०ना दिवसे “सरस्वती नदीना किनारे रेतना बेटडामां बेसी आजरोज एक कलाक आत्मध्यान धर्यु।” एम नोंधे छे । तो “जोटाणामां क्षेत्रपालना स्थानना ओटला पर सांजना वखते एक कल्पकपर्यंत आत्मध्यान धरवाथी आत्माना अलौकिक अनुभवनी झांखी थई” एम नोंधे छ । (क्रमशः) For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 13 SHRUTSAGAR August-2019 हेमसौभाग्य कृत पर्युषणपर्व स्तवन गणि सुयशचंद्रविजयजी “रीझो रीझो श्रीवीर देखी शासनना शिरताज, हरखो हरखो आ मोसम आवी पर्वपर्युषण आज.....” बस, हवे थोडा दिवसमां ज पर्वाधिराजनुं आगमन थशे। श्रीसंघमां चारेय बाजु आनंद-उल्हासनुं वातावरण सर्जाशे। ठेर ठेर तपश्चर्याओ, व्रत-पच्चक्खाणो, व्याख्यानोना उत्सव मंडाशे। अनुकंपा, जीवदया, साधर्मिकवात्सल्य जेवा केटकेटलाय धर्मानुष्ठानोमां लोको जोडाशे । खरेखर खूब ज रंगे-चंगे उजवाशे आ पर्व। अहीं आपणने मनमा एक प्रश्न थाय के अत्यारे तो आपणे आ केवा मोटा दबदबापूर्वक पर्वाधिराजनुं स्वागत-आराधन करीए छीए, तो वर्षों पूर्वे श्रीसंघोमां कई रीते आ पर्वाराधना कराती हशे? श्रावको पण ते प्रसंगे केवी केवी तैयारीओ करता हशे? केवूवातावरण त्यारे श्रीसंघमां सर्जातुं हशे? जो के तेना जवाब माटे आपणे बीजे क्यांय जवानी जरूर नथी। आपणा ते तमाम प्रश्नोना उत्तर लई प्रस्तुत कृतिकारश्री जाणे काव्यना माध्यमे आपणी पासे ऊभा छे । माटे चालो सौप्रथम काव्यसार जोईए। कृतिसार पर्वाधिराजनी शाश्वती अट्ठाईमां देवो तो नंदीश्वरद्वीपे जई त्यां रहेला शाश्वतचैत्योमांनी शाश्वत प्रतिमाजीओनी गीत-गान-नृत्यादि विविध प्रकारे पूजाभक्ति करे, ज्यारे श्रावको आ अवसरे पोतपोतानी शक्ति अनुसार अमारीनी उद्घोषणा करावे, छटाट्ठमादि तपश्चर्या करे, ब्रह्मचर्यादि व्रत-जप करे, देव-गुरुनी भक्ति तेमज साधर्मीजनवात्सल्यादि धर्मानुष्ठानो आचरे । जो के आ अनुष्ठानो फक्त क्रियात्मकरूपे न करता तेमां विशेष भावो उमेरी तेओ ते दरेक अनुष्ठानोमां प्राण पूरे। अहीं काव्यना शरूवातना १४ पद्योमां कविए उपरोक्त भावोने सुंदर रीते रजू कर्या छ । विशेषरूपे श्रावक कल्पसूत्रना श्रवण अवसरे कई रीते पू. गुरु पासे पुस्तक लेवा जाय? श्राविकाओ पण आ प्रसंगे कई रीते जोडाय? कई रीते घरे रात्रीजगो कराय? वळी बीजे दिवसे श्रावक केवा आडंबर सहित पुस्तक लई जई गुरुभगवंत पासे पधरावे? गुरुभगवंत पण कई रीते बहुमान जाळवी श्रीसंघने कल्पसूत्रनुं श्रवण करावे? तेनी खूब ज स्पष्टतापूर्वकनी नोंध कविए त्यारपछीना १५ थी ३० नं. ना For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 14 श्रुतसागर अगस्त-२०१९ पद्योमा करेली जोई शकाय छे । छल्ले काव्यना अंत्यपद्योमां महापर्वना हार्दस्वरूप परस्पर अपाता खामणानी एटले के सांवत्सरिक क्षमापनानी तथा पांचमना पारणाने दिवसे सौ प्रथम गुरुभगवंतने प्रतिलाभवा (वहोराववा)नी नोंध आपवा पूर्वक कविए काव्यनुं समापन कर्यु छे। खास अहीं काव्यना १५मा पद्यनी “सांजे पुस्तक लई जवानी तपागच्छ, कम(व)लगच्छ तथा खरतरगच्छनी परिपाटीनी,” पद्य क्र. २८नी “पुस्तक लेवा गुरुभगवंतना सामा आववानी तथा पद्य क्र. ३४नी “जीतो टोडरमल जीतो-” ए पदनुं गान करवानी तत्कालीन रिवाजोनी नोंध काव्यनी महत्त्वपूर्ण विगतो कही शकाय । जोके संपूर्ण कृति वांचता तो एवं लागे छे के आपणा ते पूर्वजोने मन प्रसंगना दबदबा करता भावोनुं प्राधान्य वधु हशे। अने माटे ज तेमनी आराधना आपणा करता चडीयाती हशे तथा सुंदर पण। कृतिकार तथा कृतिनी हस्तप्रत काव्यना छेल्ला पद्यमां मळती नोंध मुजब कृतिकार हेमसौभाग्यजी पू.लक्ष्मीसौभाग्यजीना शिष्य छे जो के काव्यमां तेमना गच्छनी के अन्य गुरुपरंपरा संबंधि कोई उल्लेख न होवाथी तेमना विशे कशी विशेष विगतो आपी शकाई नथी। ___ प्रस्तुत कृतिनी कुल ९ हस्तप्रतो (तमाम वि. १९मी अने २०मी सदीनी) आचार्य श्रीकैलाससागरसूरिजी ज्ञानभंडारमां सचवायेली छे जेमांनी हस्तप्रत नं ८६७८६(वि. 20मी सदी) नो अमे आदर्श प्रत तरीके उपयोग कर्यो छे ज्यारे बाकीनी ११८८४८ तेमज ८६१०४ नं. नी प्रतो फक्त पांठातर माटे वापरी छ । खास आ त्रणे प्रतो आपवा बदल ज्ञानमंदिरना व्यवस्थापकश्रीओनो खूब खूब आभार। पर्युषणपर्व स्तवन ॥ ढाल – बिंदलीनी ए देशी॥ MO॥ प्रणमुं पासजिणंदा, वली प्रणमुं सुगुरु' मुणिंदा हो भवियण सुणज्यौजी। पर्व पर्युषण रीत, हुं भाखी(खि)स श्रुत सुविदीत हो भवियण सुणज्यौजी ॥१॥ आठ दिवस अठाइ, ए धर्मपर्व सुखदाइ हो भवियण... । अष्टम द्वीप सुणीजै, नंदीश्वर नित्य थुणीजै हो भवियण... ॥२॥ १. प्रसिद्ध, पाठांतर-1. सद्गुरु, 2. सूत्रविदित, For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 15 ॥४॥ ॥५॥ ॥६॥ ॥७॥ ॥८॥ SHRUTSAGAR August-2019 तिहां बावन चैत्याला, ते नित्य अW त्रिहुं काला हो भवियण.... सहु सुरपति सुरवृंदा', निज चित्तमें धरी आणंदा हो भवियण.. ॥३॥ ते तिण थांनके आवै, प्रभु पेखी सीस नमावै हो भवियण...। पूजा विविध प्रकारें, इकचित्त करें सुविचारै हो भवियण... नाटिक बहु परकार, इंद्राणी करें तिण वार भवियण....। अपछर जिनगुण गावें, तसु अंगे हरख न मा हो भवियण... विविध वाजित्र तिहां वाजें, ओपम कहिवा कुण साजें हो भवियण....। सुरपति सुरगण सारें, मुखसू(सु) जय जय उच्चारें हो भवियण... इण विध प्रभुनी सेवा, सहु इंद्र करें नितमेवा' हो भवियण....। ए श्रीसद्गुरुनी वाणी, नित सुणीयें अमिय समांणी हो भवियण... जे श्रावक व्रतधारी, वलि(ली) श्राविका ते सुविचारी हो भवियण....। परब(र्व) अट्ठाइ आयें, वर्ते निज धर्म-ऊपायें हो भवियण... ग्राम नगर सहु ठांमें, ढंढेरो ये निज हांमें हो भवियण....। सहुको लोक अमारि(री), पालेवी धर्म विचारी हो भवियण... ॥९॥ बंदीवान छु(छू)डावें, धन देई जीव उडा हो भवियण....। अभयदांन इम दीजें, सद्गुरुनी सेवा कीजें हो भवियण... ब्रह्मचर्यव्रत पालै, रागादिक अरी(रि)यण टालै हो भवियण....। छट्ठ अट्ठम तप कीजै, वली भावना शुभ भावीजै हो भवियण... ॥११॥ पडिकमणोंने जाप', कीजै बी(बि)हुं टंक आप हो भवियण...। पोसह करी मनरंगें, ए जस लीजै सहु संगे हो भवियण... ॥१२॥ देहरे स्नात्र करीजै, पुण्ये भंडार भरीजै हो भवियण...। द्रव्यपूजा भलें भावें, प्रभुनी कीजें चित्त चावें हो भवियण... ॥१३॥ साहमीवछल कीजै, सहुकोने आदर दीजै हो भवियण...। चित्तमें क्रोध न राखें, खामीजै सहुनी साखें हो भवियण... ॥१४॥ भाद(द्र)वा वदि चउदस दिवसें, सांझे पुस्तक ल्ये हरसें हो भवियण...। श्रीतपगछ क(व)मला खरतरनी, ए परिपाटी शुभ करनी हो भवियण... ॥१५॥ २. समर्थ थाय, ३. हमेशा, ४. उमेदथी, इच्छापूर्वक, ५. प्रसन्नताथी, ६. साक्षीए, ७. आनंद पूर्वक, पाठांतर-3. वंदे, 4. आणंदे, 5. पडिक्कमणाने जपे, 6. आपे, ॥१०॥ For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥२०॥ श्रुतसागर अगस्त-२०१९ पुस्तक लेवा सारु, कीजै आडंबर वारु हो भवियण....। आगलि श्रावक थायें, ते पाछल श्राविका जायें हो भवियण... ॥१६॥ सोहव मंगल गावें, अति आनंद अंग न मा हो भवियण...। [आवे निज पोसाले, ते उच्छवसु ततकाले हो भवियण'... ॥१७||] कर जोडी गुरु वंदें, ते पेखी चित्त आणंदे हो भवियण...। चतुर सोहव जे चावी', मांडे गुंहली ते श्रावी? हो भवियण... ॥१८॥ न्यू(न्यू)छणादिक वारु, करि(री) मोतीडें सुविचारु हो भवियण...। श्रीफल सहितसु थाल, ते गुरुनै बैं ततकाल हो भवियण... ॥१९॥ ते मांहें पुस्तक थापें, श्रावकने हाथें आपे हो भवियण...। इण परि सरल सुभावें, ते लेइ निज घरे आवे हो भवियण... निसि-जागरण करावें, वली धरम-भास गवरावें हो भवियण...। पूजीजै बहु भांतें, जिम भाख्यो छे सिद्धांते हो भवियण... ॥२१॥ नवला३ वस्त्र चढावी, मु(म)खमल' सूतू(त्र)१४ कढावी हो भवियण....। थाइं प्रभात जिवारें, हरषित थाइं तिण वारे हो भवियण... ॥२२॥ अणतेड्या तिहां आवै, जे श्रावक नाम कहावै हो भवियण...। निज सुतने सिणगारी, वलि(ली) गज उपर बैसारी हो भवियण.... तेहनें पुस्तक थाल, देई हाथें ततकाल हो भवियण...। विविध वाजित्र बजावें, अति गाजे नभ अरावें५ हो भवियण... ॥२४॥ ढोल दमामा ६ भेरी१७, झालर कंसाल९ नफेरी हो भवियण....। सुहव' मंगल गांन, करती आवे सुभ ध्यान हो भवियण... ॥२५॥ दीजै याचक दांन, सहुनों कीजै सनमांन हो भवियण.....। आगे नीसांण२२ अनेक, कीजै आंणी सुविवेक हो भवियण... सात पांच हय आगे, कोतक कीजे वड भागे हो भवियण.....। ॥२३॥ ॥२६॥ ८. एक गच्छy नाम, ९. माय, १०.सुंदर, ११. श्राविका, १२. लूछणा, ओवारणा, १३. नवा, १४. सूतर, १५. शब्दोथी?, १६. एक रणवाद्य, नोबत, १७. शरणाईना प्रकारचें एक मुखवाद्य, १८. एक वाद्य, गोळ सपाट घंट जेना पर डंका वगाडाय ते, १९. कांसाजोडी प्रकारचें एक वाद्य, २०. एक वाद्य नानो ढोल, २१. सौभाग्यवंती स्त्रीओ, २२. डंको, पाठांतर-7. आ पाठ आदर्शप्रतमा छुटी गयो छे, 8. तिण, 9. सूत्र, For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir August-2019 ॥२७॥ ॥२८॥ ॥२९॥ ॥३०॥ SHRUTSAGAR इंम आवे(वें) पोसाले, श्रावक श्राविका ततकालै हो भवियण... सदगुरु सामु हो आवै, पुस्तक लेइ सीस चढावै हो भवियण....। केसरें सुगुरु अरचें, निज सकतें तिहां धन खरचे हो भवियण... कर जोडी इम भाखें, वड श्रावक सहुनी साखें हो भवियण...। कलप-वायणा दीजै, अम्ह आसा पूरण कीजै हो भवियण... गुरु वांचे संघ आगे, शुद्ध भीमपलासी रागे हो भवियण....। बिहुं टंक सूत्र सुणीजै, दिन दिन ए अमृत पीजै हो भवियण'... वली पूजै विचि(?) ग्यांन, छोडीनें मननों मांन हो भवियण....। प्रभावना बिहुं कीजै, श्रीफळ पूगी बहु दीजै हो भवियण... ॥३१॥ संवत्सरीने' दिवसें, सहु पोसह लेइ निवसें हो भवियण...। चैत्य प्रवाडी गुरु ऊठे, सहु श्रावक श्राविका थाइ पूढे २३ हो भवियण.... ॥३२॥ माहोमांहें खमावै, रीसांणा जेहनें मनावै हो भवियण...। “मिच्छामि दुक्कड(ड)” दीजै, वली पडिकमणे जस लीजै हो भवियण... ॥३३॥ “जीतो टोडरमल जीतो,” ए गीत गावै सुव(वि)दीतो हो भवियण...। हि पांचमी परभातें, हरषित थाइं इण वातें हो भवियण... पडिलाभो ते पहिला, आहारे सदगुरु वहिला हो भवियण...। पुस्तक ल्येजो भावै, सहु श्रावकनें जीमावै हो भवियण... इम ए पर्व आराधे, ते जन निज कारिज साधे हो भवियण...। एह अट्ठाइ रीत, जे पाले ते सुविनीत हो भवियण... ॥३६॥ सुणीयो गुरुमुखे जेम, ए परगट कीधो तेम हो भवियण...। लक्ष्मीसोभाग वडभाग, शिष्य जपे हेमसोभाग हो भवियण... ॥इति श्री अट्ठाइ पर्युषणापर्वविधि स्तवनं सम्मत्तम्॥ ॥३४॥ ॥३५॥ ॥३७॥ २३.पाछळ. पाठांतर-10. बीजी बन्ने प्रतोमां आ पंक्तिओ ऊपर-नीचे छे, 11. संवच्छरी. For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अगस्त-२०१९ 18 न्यायसागर कृत आलोयणा सज्झाय श्रीमती डिम्पल निरव शाह कृति परिचय जे सज्जनोनुं मन मळरहित थइने तत्वस्वरूपे तथा वास्तविक आनंदना निधानरूपे जिनेश्वरना स्मरणमां लीन होय, अनंत प्रभावशाळी महामंत्र जेमना होठे होय, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने सम्यग्चारित्ररूप मोक्षमार्गमां जेमनुं आचरण होय, तेवा सज्जनोने इच्छित विषयनी प्राप्तिमां विघ्न शेर्नु होय? आ प्रश्नना उत्तररूपे अहीं आलोयणा सज्झाय नामक कृतिनुं संपादन करवामां आवे छे । आराधना घणी करी होय पण जो तेमां जाणतां-अजाणतां दोष रही गयेल होय अने तेनु प्रायश्चित करवामां न आव्यु होय तो इष्टफलनी प्राप्तिमां विघ्न आवी शके छे। श्रावकजीवनमा लागेल विविध दोषो-अतिचारो अने तेनी आलोचना दर्शावती आ कृति छे। आ कृतिमा सामान्यथी लई नानामां नाना दोषनो पण समावेश करेल छ। जेमके गुरूने ज्ञानरूपी विराधना करी होय तो एकासणुं करवू । पारका द्रव्यनी चोरी, अन्य साथे कलह के अन्ननी चोरी करे तो उपवास करवो। बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरेन्द्रिय अने पंचेन्द्रियना जीव हण्या होय तो अनुक्रमे बे, त्रण, चार अने दस उपवास प्रमाण आलोचना करवी। जिनप्रतिमाने दीपकनो स्पर्श थई जाय अथवा तो प्रतिमानुं कोई अंग खंडित थई जाय तो लाख नवकार गणवा अने स्नात्रपूजा भणाववी। स्थापनाचार्य पडवा, नवकारवाळी खोवावी, देवगुरुने वंदन रही जवा जेवी आशातना वगेरेनो समावेश थाय छे। कर्ताए आवी अनेक प्रकारनी आलोचना माटे 'तत्वतरंगिणी' ग्रंथनो संदर्भ आप्यो छे। कृतिनी शरूआतथी अंत सुधी जाणतां-अजाणतां थयेला पापना प्रायश्चितरूपे कर्ताए जे आलोचना वर्णवी छे । तेने नीचे कोष्ठक प्रमाणे ढूंकमां दर्शाववानो प्रयत्न कर्यो छे For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 19 Im SHRUTSAGAR August-2019 क्रम अतिचार आलोचना | १ | देववंदन न करवं १ पुरिमड्ढ | २ |गुरुने ज्ञान आशातना १ एकासगुं | एक स्वावड १ उपवास | कलह, वस्त्र तथा अन्ननी चोरी १ उपवास | उखल-मुशल देव तथा रात्रिभोजन १ उपवास स्नात्र | बेइंद्रिय-तेइंद्रिय-चौरेंद्रिय ना जीव हणतां | अनुक्रमे २, ३, ४ उपवास | पंचेंद्री जीव हत्या, उत्कृष्ट मृषावाद |१० उपवास जघन्य मृषावाद, अदत्तादान, अनंतकाय भंगे पुरिमड्ढ | अनंतकाय भक्षण, अणगळ पाणी सेवन, चाडि, १ उपवास परनिंदा | जुटुं आळ आपq. |१२ उपवास | ११ | पारका वस्त्र व द्रव्यनी चोरी | २ आयंबिल | देव-गुरु-पूजा द्रव्यभंग | नीवि – एकासगुं | १३ |स्वदारा नियम भंग, वेश्यागमन, हिन स्त्री तथा १० उपवास विधवा संग | १४ | हिन जाती स्त्री आदर, अधम पुरुष संग |११ उपवास | पौषध तथा चोथा व्रतनो भंग ३ उपवास | उत्कृष्टी सुवावड(?) | ४ उपवास | दिसाव्रतभंग, महाविगइ भक्षण, मिथ्याव्रत, |१ उपवास | आयंबिल-निवि-पुरिमड्ढ भंगे | परिग्रह नियम विसार्या | ८ आयंबिल १९ | जिनप्रतिमाने दीपक लागी जवो १ लाख नवकार जाप, | स्नात्र-पूजा भणाववी | २० | प्रतिमा पडे १ उपवास | २२ प्रतिमा अंगुलि भंग १ लाख नवकार, १० उपवास, देरासर बंधाववं | २३ | देवद्रव्य-गुरुद्रव्य बगाड अने तेटलुं पार्छ न आपतां | २० आयंबिल २४ स्थापनाचार्यजी विना पडिलेह्या रहे, पडी जाय, |१ अट्ठम खोवाई जाय | नवकारवाळी खोवाय | १ नीवी | देव-गुरुने वंदन भूले १ एकासणु For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 20 श्रुतसागर अगस्त-२०१९ | २७ | हरिहर पूजन, तापस वंदन | २ आयंबिल | २८ | मंचक तडके मुके, चकलाना माला भांगे, अधम | २२-२२ आयंबिल व्यापार माटे चोरी- कलंक आपी दंडावे, पुंजाना ढगला उपर अग्नि बाळे, कोलुं करे(?), दव लगाडे, | सरोवर सुकावे, मित्रनो भेद करे, घर भांगे, कोलिया वड(?) | २९ | जळो मुकाववी, ६ उपवास |३० । करकडा मोडे |१ उपवास | ३१ | खारुं-मीठं पाणी भेळवे |१ उपवास | श्राप आपे, हाथ-पग उतारे-भांगे-मोडे |४ आयंबिल | ३३ | घंटी-उखल-मुशल-चुलो आदि वस्तु अणपुंजे १२-१२ आयंबिल | वापरे, अणगल जलथी धोवे, अन्यने शस्त्रथी मारे | बळदने खसी करावे, नाक विंधीने वीवाहे जोडे २-२ आयंबिल ३५ । | चौपद उपर अधिको भार, वासी गार राखे, वासी | १ छ? अन्नन भोजन करे छांणां-इंधण-अन्न सर्वे अणपुंज्यां-अणसोध्यां | २२ आयंबिल बाले-राधे-कर्म करे | श्री जिनबिंब उत्थापन |३० आयंबिल ३८ प्रतिमा उत्थापकने अन्न देतां । |१०० आयंबिल ३९ | लगभग वेलाए वालु करे, सामायक व्रत खंडे, काम | १-१ उपवास कुचेष्टा, तीव्र विषयाभिलाष, दुतिपणुं, मैथुननी | चिंता, कुंवारी कन्या साथे रंगे रमे, धातु-वस्त्र हरण ३४ बळ एक-बे वातो बे वखत पण आवी छे, जेमां आलोचना भिन्न-भिन्न दर्शावाई छे, बनी शके कदाच तेने समझवामां मारी भूल थई होय । जेमके चोरी, आ संदर्भे गाथा नं. ३ मां एक उपवास अने गाथा ७मां २ आयंबिलनी वात करी छे । यथा“एक सुवावड एक उपवास, पारका द्रव्यनी चोरी। कलह करे ने अन्न जे चोरे, करो उपवास सवेरो रे ।।३।।भ०” “पारका वस्त्रने परद्रव्यनी चोरी, आंबिल दोय दोय तास रे ॥७॥भ०” हीन स्त्री माटे पण बे वखत उल्लेख जोवा मळे छे, जेमां भिन्न-भिन्न आलोचना For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 21 SHRUTSAGAR August-2019 दर्शावाई छ। गाथा ११मां ११ उपवास अने गाथा १४मां १० उपवासनी वात छे। यथा“हिन जातीनी अस्त्री आदरतां, अधम पुरुषने संगे। एकादश उपवास करंतां, समकित प्रगटे रंगे” ॥११॥ “स्व अस्त्रिसुं नी(नि)यम भांजतो, वेश्यागमन करंतो। हिन अस्त्रि वलि विधवा संगे, दश उपवासे वरतो” ।।१४।। आलोचना एक गहन विषय छ । जे स्वयं पुस्तकमांथी न लेता गीतार्थ गुरु पासेज लेवानी होय छे । गीतार्थ गुरु ग्रंथना आधारे तथा देश-काल-परिणाम-जीवविशेषादिने ध्यानमा लई आलोचना आपता होय छे। एक ज दोष माटे कोईने वधु तो कोईने ओछु पण आपे। आ विषय गीतार्थ गुरुभगवंतोनो छे। आ बाबते माराथी कोई पण प्रकारनी अनधिकृत चेष्टा थई होय के शास्त्रविरुद्ध कंई लखाई गयु होय तो ते बदल हुं क्षमाप्रार्थी छु । कर्ता परिचय प्रस्तुत कृतिना कर्ता सागरगच्छना न्यायसागर छ । तेमना गुरु विवेकसागर अने तेमना दादागुरु उदयसागर छ । उदयसागरसूरिनी कोई अन्य माहिती मळी नथी। ___ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबाना ज्ञानभंडार आधारे न्यायसागरनी अन्य ४ कृतिओ मळे छ । तेमना द्वारा रचित बीजतीथी स्तवननी प्रतोमां तेमनुं अन्य नाम न्यायसमुद्र पण छे । अनुमानित तेमनो समयकाळ १९मी सदीनो होय एवं मानी शकाय। प्रत परिचय आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबाना हस्तप्रत संग्रहालयमां संग्रहित एकमात्र हस्तप्रत क्रमांक -१२५३०० ना आधारे संपादन करेल छे । त्रण पत्र धरावती आ हस्तप्रतना अक्षर सुंदर अने सुवाच्य छ । प्रतिलेखनपुष्पिका उपलब्ध नथी। प्रतना हुंडी भागमां आपेल 'आलोयण' शब्दथी कृतिना विषयनो बोध तुरंत थई आवे छे। प्रतिलेखके गाथा क्रमांक - ९ बाद १० अने ११ लखवामां भूल करी छे, जे अहीं सुधारीने दर्शाववामां आवी छ। For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥२॥भ०.. ॥४||भ०.. ॥५॥भ०.. श्रुतसागर ___22 अगस्त-२०१९ on अथ चउपाई॥ प्रणमी श्री गुरुना पय पंकज, कहिए आलोअण सारि । देववंदन अकरणे पुरीमढ, एक करो नर नारी रे भवीका आलोअण चित धरीये ॥१॥ गुरुने ज्ञान असातना करतां, एकासणुं एक आवे। अनंतकाय भंगे पुरिमढ, करतां भवि श्रूध थावेरे एक सुवावड एक उपवास, पारका द्रव्यनी चोरी। कलह करे ने अन्न जे चोरे, करो उपवास सवेरो रे ॥३॥भ०.. उखल मुशल दिधे,रयणी भोजन भंगे एक। करी उपवास ने सन्नात्र भणावे, पाप मटे सवि छे करे बेरे(रे)द्रीना जीव हण्या होय, दो उपवासे छुठे(टे)। तेरंद्रीना त्रण कह्या ते, करतां कर्म ज तुटे रे अन्न(नं)तकाय भक्षण करतां, अणगल जल पिवंतो। चाडि ने परनिंद्या(दा) करतां, एक उपवास आवंतो रे ॥६॥भ०.. जुठ आल दियंतो प्राणी, बार करो उपवास । पारका वस्त्रने परद्रव्यनी चोरी, आंबिल दोय दोय तास रे देवगुरु पुजा द्रव्य भंगे, नीवि एकासणुं करीई। चोरंद्रीनो वध करते, च्यार उपवासें भव तरीऐ रे ॥८॥भ०.. पंचेंद्रीना जीव हणंता, लाधुं अदतादांन । उतकृष्टुं(उत्कृष्ट) मृषावाद बोलतां, दश उपवास प्रमाणे रे हिन जातीनी अस्त्री आदरतां, अधम पुरुषने संगे। एकादश उपवास करंतां, समकित प्रगटे रंगे रे ॥११(१०)।भ०.. चोथं व्रतने पोसह भंगे, त्रण कह्या उपवास। उत्कृष्टि सुवावडे, चार उपवासे फल खास रे ॥१२(११)।भ०.. दिसावृत भंग मी(मि)थ्या व्रत करतां, मध मधु मांखण मांस। आंबिल निवि परिमढ भंगे, एक उपवास तास रे ||७||भ०.. ॥९॥भ०.. ॥१२॥भ०.. For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 23 August-2019 ॥१३।।भ०.. ॥१४॥भ०.. ।।१५।।भ०.. ।।१६।।भ०.. ॥१७||भ०.. ॥१८॥भ०.. जघन मृषावाद अदतादाने, पुरीमढ कहिई। परिग्रह केरां नी(नि)यम विसार्या, आठ आंबिल तस लहिइंरे स्व अस्त्रिसुंनी(नि)यम भांजतो, वेश्यागमन करंतो। हिन अस्त्रि वलि विधवा संगे, दश उपवासे वरतो जिन पडिमाने दिपक लागे, लाख गणे नवकार। स्नात्र करावे पुजा भणावे, तस आतम उधा(द्धा)र रे पडिमा पडे तो एक उपवास, पडिमा अंगुलि भांगे। लाख नवकार ने दश उपवास, देहरुं करावे रागे रे देवगुरुनो द्रव्य बिगाडे, तेटलुं पार्छ नहि आपे। तो आंबिल विस करंता, कुमतिने सवि कापे रे थापना अणपडिलेवि रहे तो, थापना पाडतां खोतो। अठम भाख्यो, नोकारवाली खोतां नीवि एक जोतां रे देवगुरुने वंद(न) भुले, कहुं एकासणुं एक। हरिहर पुजन तापस वंदन, आंबिल दोय अतिरेक रे मंचक तडके मुके प्राणी, चकलाना माला भांगे। कलंक चोरीनुं कहिने दंडावे, अधम व्यापारने काजे रे पुंजाना ढगला उपर, अगनि बाले कोलुं करतां । दव लगाडे सरोवर सुकावे, मीत्रनो भेद करंता रे ए करणी में बाविस बावीस, आंबिल आवे सारां । ग्रह भांजे वली कोलिया वडना, बाविस आंबिल धारो रे जलो मुकावण छ उपवास, कडकडा मोडे एक। खारं मीठं पाणी भेले तो, कह्यो उपवास समे एक रे लोकनें सराप देयंतां प्रांणि, वलि हाथ पाय उतारे। भांगे अथवा अंग ज मोडे, च्यार आंबिल करो रागे रे घंटी उखल मुशल चुलो, अणपुंजे वलि वस्तु । अणगल जलमां तेह पखाले, परने मारे स(श)स्त्रे रे एहनें बार बार आंबिल आवे, बलदने खासी करावे। ॥१९॥भ०.. ॥२०॥भ०.. ॥२१॥भ०.. ॥२२॥भ०.. ॥२३॥भ०.. ॥२४॥भ०. ॥२५॥भ०.. For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 24 अगस्त-२०१९ ॥२६॥भ०.. ॥२७॥भ०.. ॥२८॥भ०.. ॥२९॥भ०.. श्रुतसागर नाक विधीने वीवाह जोडे, आंबील तस होय दोय रे चोपद उपर अधिको भार, वासी गार ज राखे। वासी अन्ननुं भोजन करतां, छठ करो जिन साखे रे छांणां इंधण अन्न ज सर्वे, अणपुंज्यां अणसोध्यां। बाले रांधे कर्म करे तो, बाविस आंबिल बोध्यां रे श्री जिनबिंबने उथापन करतां, आंबिल त्रीशनी सीम। पडिमा उथापकने अन्न देतां, सो आंबिल नीम रे लगभग वेलाए वालु करतां, सामायक व्रत खंडे। काम कुचेष्टा माठि करतो, जोरथी विषयने मंडे रे दुतिपणुं ते नारि करति, मैथुननी वली चिंता। कुवारी कन्यासुं रंगे रमतां, धातु वस्त्र हरतां रे एक एक उपवास एहने कहींई, धारो आलोयण सारी। तत्वतरंगणी ग्रंथमां जोईने, पालो सहू नरनारी रे सागरगछपति उदयसागरसुरी, सुरगुरु समश्रुत प्यारी। पंडित विवेकसागर सुपसाई, न्यायसागर जयकारी रे ॥ संपूर्ण ॥ ॥३०॥भ०.. ॥३१॥भ०.. ॥३२॥भ०.. ॥३३॥भ०.. क्षमा याचना सांवत्सरिक पर्युषण महापर्व के पावन प्रसंग पर ज्ञानमन्दिर के वाचक, श्रुतसागर के पाठक, विश्वकल्याण प्रकाशन के पाठक, ह्स्तप्रत के ग्रंथसूचि के लाभार्थी, दाता, प्रदाता, लेखक आदि हमसे जुड़े तमाम वाचकों-संशोधकों-संपादकों से हमारा विनम्र निवेदन है कि आपकी अपेक्षाओं, आवश्यकताओं को समझने में, समझने के बाद भी प्रमाद या कार्यव्यस्ततादि कारणों से साहित्य भेजने में हुए विलंब, अपेक्षित की जगह भूलवश अनपेक्षित सूचनाएँसाहित्य भेज देना आदि के संदर्भ में हमारे ट्रस्टीगण, व्यवस्थापक एवं कार्यकर्ताओं के द्वारा मन-वचन-काया से जाने अनजाने वर्ष दौरान हुई किसी भी प्रकार के अपराध व क्षति के लिए हम सभी, आप सभी के क्षमाप्रार्थी हैं। त्रिविध मिच्छामि दक्कडं For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 25 August-2019 SHRUTSAGAR गुजराती माटे देवनागरी लिपि के हिन्दी माटे गुजराती लिपि? हिन्दवी (गतांकथी आगळ..) गुजराती अने देवनागरी लिपि आपणा विचार विषय, ते बे वच्चे सरखामणी सारु सामान्य कसोटी मळे एवा हेतुथी ज आ लीजी वात अहीं आणी छे । देवनागरी लिपिमां अक्षरे अक्षरे माथु बांधवानु ते चालती लेखणे थई ज शके नहीं। जूनी पोथीओ जोतां स्पष्ट जणाय छे के घणा लहिया माथां दोरवानो अंश बाकी राखता अने पानु लखाई रह्या पछी के थोडी थोडी लीटीए साथे लागो करी नाखता आम देवनागरी लिपि धीमे धीमे ज लखी शकाय । लगभग बेवडो वखत लई ले छे । ए लिपिनी थोडी आकृतिओ पण एवी अने एवी झीणवटे समालवानी विगतो वाळी छे के तेय वखत खाय छे अने लेखकने व्हेलो थकवे छ। लिपिनो बीजो गुण तेनी सुंदरता। अद्यतन गुजरातीओए पोते भणता'ता त्यारे पोतानी मातृभाषा पोते केवे अक्षरे लखे छे ते बाबतमां मन दीर्छ ज नहीं, अने आखी ओधना अक्षर कथळी गया छे । एटले आ जमानाना गुजरातीओने पोतानी लिपिनी सुंदरता विषे पूछवानुं नकामु छ । पण आगला अक्षरो जुवो। पेला जयंतीगंडु अने हवे वनप्रविष्ट रा. रा चंद्रशंकर पंड्या जेवाना 'छापेला' अक्षरने हुं वखाणनारो नथी। एवा अक्षरमां समरेखता-रूपसुंदरता हशे; स्वच्छता छ ज पण ए स्वच्छता अने समरेखता सजीवनताने भोगे साधेली छे। ए पहेलांना नमूना जुवो, स्वच्छता एटली ज अने साथे वैयक्तिक मरोड । दरेक पाका लहियाना अक्षर भिन्न, तथापि बधाय पोतपोतानी सजीवन छटाए सुंदर। आपणा हवे तो लगभग अदृश्य थई गयेला क्षत्रिय कायस्थो दरेक पोतपोतानी पाघडी माथे बांधता ते काळनी ए दरेके दरेक पाघडी जेम सुंदर, अने खींटीए होय तो पण कही शकातुं जे आ पाघडी तो फलाणां राजेश्रीनी, ते प्रमाणे (अथवा लिपि तो नारीजातिनो शब्द, एटले एने माटे मरदनी पाघडीनी उपमा विचित्र गणो तो बीजी उपमा आपीश) अथवा हिन्दवाणीओनी पोतपोतानां वस्त्र पहेरवानी छटामां जेम गुजरातणनी साडी सारा हिन्दमां तेम बहार पण सुंदरता अने औचित्ये उत्तमोत्तम गणाय छे, तेम गुजराती भाषानी लिपि पण हिन्दनी भाषाओनी लिपिओमां सर्वोत्तम छ । ए साडीनी छटा दरेक सुघड गुजरातणना व्यक्तित्व- पण भूषण बने छे For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अगस्त-२०१९ तेम गुजराती लिपिनो मरोड दरेक लहियानुं व्यक्तित्व पण प्रकाशे छ। बंगाळीओ पोतानी लिपि संबंधे गुजरातीओ जेवा नफकरा थया नथी, तेमने पूछो तेओ कहे छे, अमे देवनागरी लिपि नहीं स्वीकारीए, अमारी लिपि वधारे सुंदर छ । पोतानी लिपिना केटलाक दोष तेमने नथी खूचता एम नथी, तो पण तेओ आम मक्कम रहे छे । आपणे पण आपणां छोकरांना अक्षर विषे काळजी राखी रखावी होत तो ए जुवान थयेल छोकरां जाते आजे बोली ऊठत, “ऊंह, ए देवनागरी डपका डाघा कोने गमे, गुजराती लखाणनी सुंदरतानो त्याग करवो शु ए जड बीबांओ माटे? मेना उडाडी दईने कागडीने ते कोण संघरे !” । लिपिनो लीजो गुण सुवाच्यता । कोई पण बे के वधारे आकृतिओ एटली समान न होवी जोईए के तेथी वांचता अक्षर विषे भूल थाप थई जाय। आ गुण मोडी (मराठी भाषानी लखवा माटे वपराती लिपि)मां नथी; ऊर्दुमां नथी, नुकताओ वाळी लिपिओमां ओछो ज होय । बंगाळीमां पण आ सुवाच्यता दश-बार टका ऊणी छे । केटलाक अक्षर अने गुच्छ सारा लहियाने हाथे पण संदिग्ध बनी जाय छ। लखाण तथा मुद्रण बे ये दृष्टिये लिपिनो चोथो गुण ध्यानमा राखवानो बंने कार्य माटेनी लिपिमां एकता होय ते । मराठीनी बे लिपि जुदी जुदी ज पडी जाय छे। अने तेमांनी लेखन माटेनी लिपि मोडीमां सुवाच्यता केटली तो ओछी छे । ते आपणे हमणां ज नोंधी गया। वळी एमां बीजा दोषो पण छ । टुंकामां कहीये तो समुत्क्रान्तिथी उलटो ते क्रमे क्रमे विनिपात । गुजराती लिपि बुद्धिगर्भ बलोए साधेली समुत्क्रान्तिनो नमूनो छे, तो मराठी भाषानी मोडी लिपि बुद्धिरुचिशून्य अकस्मात परंपराथी परिणमता विनिपात (डिवोल्यूशन Devolution) नो नमूनो छ । प्रजा एने जेम व्हेली फेंकी दे अथवा सधारी ले तेम सारुं, तथापि हजी लगण तो ए अस्मिताप्रधान प्रजा पोतानी लेखनलिपि जेवी छे तेवीने ज वळगी रहेवा मागे छे। युरोपीय भाषाओनी लखवानी इटालिक लिपि अने मुद्रणनी (रोमन) लिपि वच्चे फेर नथी एम तो न कहेवाय, परंतु ते न जेवो छ । एटले तदेवता थोडी ज ऊणी छे एम व्यवहारनी रीते कही शकाय । अने छेल्ले मुद्रणमां समय वधारे लागे, जगा वधारे रोके, खर्च वधु थाय, तेम लिपिओ ए कार्यने माटे सरखामणीमां एक बीजीथी चडती ऊतरती गणाय। २) आटली सामान्य चर्चा बस । हवे ए गुणदोषोनी कसोटीए देवनागरी साथे For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 27 SHRUTSAGAR August-2019 गुजरातीनी तुलना करीए मुद्रणमां देवनागरी गुजराती करतां वधारे कागळ खाय, वधारे समय ले, वधारे खर्च करावे एवी लिपि छे। छापेलां तेम लखेलां बन्ने रूपमां देवनागरी लिपि गुजराती करतां वधारे जड छे, ओछी सुंदर छ । बंगाळीओ पण पोतानी लिपिनी आवी सरसाई आगळ करे छे अने जो तेमना दावामां पचास टका पण वजुद होय, तो गुजराती लिपि माटे आपणे ओछामां ओछा साठ टका जेटलो दावो निःशंक करी शकीए । गुजराती लिपि बंगाळी करतां सजीवनता अने सुघडतामा दश टका चडियाती तो छ ज । पोतानुं अने वळी सुपरिचित ते पारकुं ने अपरिचित होय तेना करतां चडियातुं लागे ज, ए कुदरती पक्षपातनी रीते आ दावो हुं नथी करतो। तटस्थ लिपि निष्णातनो मत मेळवातां ते आवो ज होवानो, ए म्हारुं वक्तव्य छ। वळी आ एक ज सरसाई आखी बाबतनो निर्णय आणी देवाने माटे पूरती गणाय एवी छ। जीवन व्यवहारने माटे छे, उपरांत साहित्य कला अगर सुंदरता अने अनुपम साधना माटे पण निःसंशय छे । जीवे छे तो सौ कोई। जीवनने केळवी जाणे सुधारी जाणे उद्धारी जाणे तेनुं जीवन सफळ, ते ज साचुं माण्यो। कुदरत तो छे ज, कोटे वळगेली, लोहीने टीपे टीपे भरेली। कुदरतने संयमी नाथी खिलवाय, लोकोत्तर फल उपजावाय, तेज कुदरतनो साचो परिपाक अने मोक्ष। प्राचीन ग्रीक अने आर्य बन्ने तत्त्वदर्शननी आ शिखरे एक वाक्यता छ । मोक्ष परिपाक कला सुंदरता आदिने रात-दिवसना दुन्यवी व्यवहारनी साथे शुं लागे वळगे, एम कहेनारा तो गमार छ। भले तेओ माने के पोतानो प्रश्न अनुत्तर छ । उत्तर समजवा पचाववा अपनाववानी बुद्धिना ज सांसा, तेवाने उत्तर मेळववानो य अधिकार नथी। अने तो पण हुं पोते गुजराती लिपिनी विशिष्ट सुंदरता उपर भार दईश नहीं, केम के हुं गुजराती छु। पोतानी कोईपण वस्तु के करामत उत्तमोत्तम होय तोय ते एवी छे एम दुनिया आगळ गुजराती पोते बोलतो नथी। एवी वाचाळताने गुजराती तो धृष्टता गणे छे, मौन पाळे छ । अने चारित्रमा साची विनम्रता एवी तो अमूल्य बरकत छे, के ते अजुगता दाखलाओमां प्रतीत थती होय, तथापि टीकापात्र नथी लागती। भलेने आखा सवालना निर्णयमां आ मुद्दो रही जतो। बाकीना मुद्दा थोडा नथी अने ते तपासतां जे निर्णय आवे ते पण स्वीकारी लेवाने राजी छु । (क्रमशः) For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 28 श्रुतसागर अगस्त-२०१९ श्रुतसेवा के क्षेत्र में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का योगदान राहुल आर. त्रिवेदी (गतांक से आगे) संस्था के महत्त्वपूर्ण कार्य विश्वकल्याण प्रकाशनः- आचार्य श्री भद्रगुप्तसूरिजी म.सा. प्रियदर्शन' के द्वारा लिखित साहित्य, जो विश्वकल्याण प्रकाशन ट्रस्ट, मेहसाणा से प्रकाशित होते थे, पूज्यश्री के कालधर्म के बाद उन साहित्यों का पुनर्प्रकाशन आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर से किया जाता है, जिससे जैन व जैनेतर समाज के वाचक लाभान्वित होते हैं। श्रुतसागर (मासिक पत्रिका)- अप्रकाशित लघुकृतियों व शोधपरक सामग्री को प्रकाश में लाने के लिए प्रति मास 'श्रुतसागर' मासिक पत्रिका का प्रकाशन हो रहा है, जिसमें विद्वानों व संशोधकों के द्वारा अप्रकाशित कृतियों का सम्पादन कर उन्हें प्रकाशित किया जाता है। इसके नियमित स्तंभों में से गुरुवाणी स्तंभ के अन्तर्गत योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म.सा. का प्रासांगिक व आध्यात्मिक संदेश तथा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के साहित्य में से लोकोपयोगी व प्रेरक औपदेशिक अंशों का प्रकाशन किया जाता है। पुनर्प्रकाशन अन्तर्गत वर्षों पूर्व प्रकाशित दुर्लभ प्रसिद्ध मैगजीन के अंकों में से महत्त्वपूर्ण लेखों का चयन करके पुनःप्रकाशन किया जाता है, प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के विहारस्थिरता, बोधदायक प्रवचनों, प्रतिष्ठा महोत्सवों आदि कार्यक्रमों के समाचार तथा ज्ञानमंदिर की विविध गतिविधियों को प्रस्तुत किया जाता है। रासपद्माकर- इसके अन्तर्गत अप्रकाशित रास, चौपाई जैसी कृतियों को प्रकाशित किया जाता है। रासपद्माकर के अबतक तीन भाग प्रकाशित किए जा चुके हैं। निकट भविष्य में चौथे भाग का भी प्रकाशन करने की योजना है। इसके अन्य भाग भी समय-समय पर प्रकाशित किए जाएंगे। तीर्थरक्षा में योगदानः- सरकार व विविध संप्रदायादि कारणों से विवादों में घिरे हूए, खतरों में पडे हुए हमारे प्राचीन, पवित्र व ऐतिहासिक तीर्थस्थानों की सुरक्षा एक जटिल प्रश्न बनकर रह गई है। सदियों से चले आ रहे इन विवादों में हमारे पूर्वजों ने For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 29 SHRUTSAGAR August-2019 तन-धन-बुद्धिबलादि से राजा-रजवाडा, बादशाह व अंग्रेजी हुकुमत के समय सुरक्षा के लिए सुदृढ़ कदम उठाये थे व फरमान आदि प्राप्त किये थे। आज पुनः नये-नये विवाद खड़े होते जा रहे हैं। हमारे ही तीर्थों हेतु हमें लड़ना पड रहा है। ऐसे में प्राचीनअर्वाचीन फरमान, दस्तावेज, लेख, शिलालेख, प्राचीन महापुरुषों के ग्रंथ, हस्तप्रत, पुराने मासिक अंक, प्राचीन मुद्रित ग्रन्थ आदि से संदर्भो को ढूँढ ढूँढकर, कड़ी से कड़ी मिलाकर संकलन करके शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी को उपलब्ध कराया जा रहा है। इसमें शिखरजी तीर्थ, गिरनारजी, केसरियाजी, पालिताणा रिसोर्ट जैसे मुद्दों पर विपुल मात्रा में दिए गए प्रमाणों के कारण आज प्रतिपक्षी की दलीलें कमजोर होती जा रही हैं, आगे भी प्रयास जारी है। आशा है कि इन सत्प्रयासों से अपेक्षित समय में जैन समाज को सुखद परिणाम प्राप्त होंगे। वंशावली प्रोजेक्टः- सैकड़ों वर्षों से चली आ रही वंशावली, वहीवंचा लेखन प्रथा जिसमें हमारे दादा-परदादा आदि की लंबी परंपरा, ऐतिहासिक घटनाओं आदि का समावेश होता है। लुप्तप्रायः होते जा रहे इस इतिहास को जीवंत रखने का एक प्रयास संस्था द्वारा किया जा रहा है। आज समाज में अपने कुलदेवता, गोत्र, उत्पत्ति, वंशावली इतिहास आदि की जिज्ञासा प्रदीप्त होती नजर आ रही है। लेकिन पूर्ण जानकारी के अभाव में वे अपने वंश के गौरवपूर्ण इतिहास को नहीं जान पाते हैं। इस क्षेत्र में भी आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में उल्लेखनीय कार्य हो रहे हैं। महाजनी, जैनदेवनागरी आदि प्राचीन लिपियों में लिखित विविध वंशावलियों से सम्बन्धित कई हस्तलिखित रोल उपलब्ध हैं। लिपि विशेषज्ञ पंडितों के द्वारा इसका लिप्यन्तर किया जा रहा है। इस परियोजना के पूर्ण हो जाने पर जैनसमाज को अपनी वंशावली के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होगी। (क्रमशः) स्वारथ सब ज्युग बल्लहो नाही बल्लभ कोय। मात पिता आदर नही ज्युवती आदर होय॥ प्रत क्र. १२३५२६ भावार्थ- प्रत्येक युग में स्वार्थ ही प्रिय होता है, इसके अतिरिक्त और कुछ भी प्रिय नहीं होता है। लोग माता-पिता का आदर नहीं करते हैं, पत्नी का ही आदर करते हैं। ___ For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 30 अगस्त-२०१९ पुस्तक समीक्षा प्रकाशक - हिन्दी डॉ. हेमन्त कुमार पुस्तक नाम - जैन ग्रंथों की गोद में भिन्नमाल की भव्यता कर्ता आचार्य श्री रत्नसंचयसूरिजी म. सा. श्री रंजनविजयजी जैन पुस्तकालय, मालवाड़ा, जालोर, राजस्थान प्रकाशन वर्ष- वि.सं. २०७२ मूल्य १३००/भाषा जैसा कि ग्रंथ के नाम से ही पता चलता है कि इस ग्रंथ में धनकुबेरों का नगर प्राचीन काल के साहित्य जगत में मरुमंडल की धारानगरी के नाम से विख्यात भीनमाल का ऐतिहासिक वर्णन किया गया है। राजस्थान के दक्षिण भाग में स्थित जालोर जिले के भीनमाल नगर की स्वर्णिम पृष्ठभूमि रही है। यह नगर विभिन्न कालों में विभिन्न नामों से प्रसिद्ध रहा है, जैसे - श्रीमाल, रत्नमाल, पुष्पमाल, भिन्नमाल आदि। प्रस्तुत ग्रंथ में आचार्य श्री रत्नसंचयसूरिजी महाराज ने अनेक ऐतिहासिक एवं साहित्यिक ग्रंथों के आधार पर ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक आदि विभिन्न क्षेत्रों में इस नगर की उत्कृष्टता को तो उजागर किया ही है, साथ ही यह भूमि जिन महापुरुषों की जन्मभूमि, कर्मभूमि रही है, उन सभी का विस्तृत विवरण संकलित किया है। पूज्यश्री ने अनेक साक्ष्यों के आधार पर इस नगर की भव्यता का सांगोपांग वर्णन किया है। पज्य आचार्यश्री ने भीनमाल नगर की प्राचीनता, नगर की तत्कालीन सामाजिक एवं सांस्कृतिक समरसता आदि के वर्णन के साथ-साथ वर्तमानकालीन सामाजिक, सांस्कृतिक सम्पन्नता एवं नगर में स्थित जिनालयों आदि का भी बहुत ही सुंदर एवं विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया है। ___भारतवर्ष में ऐसे अनेक नगर हैं, जो प्राचीन काल से जैननगर के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं, उन नगरों में भीनमाल अग्रिम पंक्ति में स्थित है। पूज्यश्रीजी का यह कार्य जैन समाज एवं साहित्य जगत में एक सीमाचिह्नरूप प्रस्तुति है। भीनमाल नगर का अनेक साक्ष्यों के साथ इतना विस्तृत वर्णन करने का पूज्यश्री ने जो अनुग्रह किया है, वह For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR August-2019 सराहनीय एवं स्तुत्य है। ___पुस्तक की छपाई बहुत सुंदर ढंग से की गई है। आवरण भी कृति के अनुरूप बहुत ही आकर्षक बनाया गया है। विस्तृत विषयानुक्रमणिका, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक रंगीन चित्रों, भीनमाल नगर वर्णन से सम्बन्धित प्राचीन कृतियों, संदर्भग्रंथों आदि की सूची देने से यह पुस्तक बहूपयोगी हो गई है। श्रीसंघ, विद्वद्वर्गव जिज्ञासु इसी प्रकार के और भी उत्तम प्रकाशनों की प्रतीक्षा में हैं। भविष्य में भी जिनशासन की उन्नति एवं इतिहास सर्जन के उपयोगी ग्रन्थों के प्रकाशन में इनका अनुपम योगदान प्राप्त होता रहेगा, ऐसी प्रार्थना करते हैं। पूज्य आचार्यश्री के इस कार्य की सादर अनुमोदना के साथ कोटिशः वंदन। (अनुसंधान पृष्ठ क्रमांक. ३४ से) विशेष रूप से अर्बन नक्सलिज्म' नहीं बढे, इसके लिए हमें जाग्रत रहना होगा। उदार हृदय के साथ हमें समाज की एकता को बनाए रखनी है। जैन समाज सदा से राष्ट्रवाद के लिए तत्पर रहा है। विशाल हिन्दु समाज में जो भी समस्या होगी, उसके निदान के लिए हमें साधु-सन्तों के मार्गदर्शन में चलना होगा। हिन्दु विचार समन्वय का विचार है, अतः बुद्धिभेद के लिए किए जानेवाले षडयन्त्रों के विरुद्ध सतत् जाग्रत रहना वर्तमान समय में अत्यन्त आवश्यक है। श्री संवेगभाई लालभाई ने बताया कि हमें अपनी अमूल्य विरासत को सुरक्षित रखने का प्रयास करना है। पूज्य मुनि पद्मरत्नसागरजी महाराज साहेब की तृतीय वार्षिक पुण्यतिथि पूज्य राष्ट्रसन्त जैनाचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा के शिष्यरत्न मुनि श्री पद्मरत्नसागरजी महाराज साहेब की तृतीय वार्षिक पुण्यतिथि का आयोजन किया गया । गणिवर्य श्री प्रशान्तसागरजी महाराज साहेब ने बताया कि पुण्यतिथि के निमित्त राजनगर के गुरुभक्तों की तरफ से जीवदया हेतु पांजरापोलों में घास का वितरण, गरीबों के लिए दस दिनों तक चलने योग्य सम्पूर्ण भोजनसामग्री किट तथा अनाथ बालकों के लिए फल वितरण किया गया। पज्य मुनि पद्मरत्नसागरजी महाराज साहेब ने श्रमण संस्थान के लिए अत्यन्त उपयोगी स्वाध्याय, स्तोत्र तथा भक्तियोग से सम्बन्धित पुस्तिकाओं का सम्पादन भी किया था। पुष्पदन्त जैनसंघ में प्रवचन के दौरान गुणानुवाद किया गया था, जिसमें ट्रस्टी श्री कल्पेशभाई वी. शाह ने मुनिश्री के विशेष गुणों की चर्चा की। संघ के युवामहिलामंडल के द्वारा परमात्मा की पूजा और आंगी की गई तथा साबरमती, रामनगर के पास महुडी उपाश्रय में समूह-सामायिक का आयोजन भी किया गया था। For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 32 श्रुतसागर अगस्त-२०१९ समाचारसार परम पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा का ___चातुर्मासिक रविवारीय प्रवचन वर्तमान भविष्य के निर्माण के लिए है अहमदाबाद : अदाणी शान्तिग्राम २१ जुलाई प्रातः १०.०० बजे राष्ट्रसन्त जैनाचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा ने जीवन में उपयोगी मार्गदर्शन देते हुए कहा कि आज का वर्तमान, कल के भविष्य का निर्माण करने के लिए है। समय बहुत मूल्यवान है। समय को व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए। विशेष रूप से वाणी के आठ गुणों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि वाणी का उपयोग सौहार्द्र और प्रेमपूर्वक करना चाहिए, जिससे दूसरों के द्वारा सद्भावना मिले । पाँच हजार वर्ष के इतिहास में, पन्द्रह हजार से अधिक युद्ध, मात्र वाणी के असंयमित होने के कारण हुए हैं। आज के समय में वाणी के ऊपर संयम रखना अत्यन्त आवश्यक है। हमारे पूर्वज विचारपूर्वक बोलते थे। साधनामार्ग में मौन का बहुत अधिक महत्त्व है। विचार करने का समय भी मौन के द्वारा मिलता है। पुराने जमाने में टेलीग्राम लेंग्वेज का उपयोग किया जाता था। कम शब्दों में अपनी भावना को प्रस्तुत किया जाता था। राष्ट्रसन्त ने पण्डित और मूर्ख का उदाहरण देते हुए कहा कि पण्डित बोलने से पहले विचार करते हैं कि बोलने के बाद इसका क्या परिणाम आएगा और मूर्ख बोलने के बाद विचार करते हैं कि इसका क्या रिएक्शन आएगा। वाणी के व्यापार के द्वारा सद्गुणों का प्रोफीट होना चाहिए। प्रवचन के प्रारम्भ में मुनि भगवन्तों ने सुन्दर वाणी में तस्मै श्रीगुरवे नमः' की धुन से भक्तिपूर्ण माहौल बना दिया था। इस अवसर पर अहमदाबाद शहर से अनेक श्रद्धालुओं ने दर्शन-वंदन का लाभ लिया था। मंडप श्रोताओं के समूह से पूरा भरा हुआ था। सत्य से धर्म का जन्म होता है अहमदाबाद : अदाणी शान्तिग्राम २८ जुलाई प्रातः १०.०० बजे राष्ट्रसंत जैनाचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि परमात्मा और सत्पुरुषों की वाणी सुनना, एक साधना है। श्रवण से हमारे अन्दर के दुर्गुण दूर होते हैं, क्रोध-कषाय आदि दुर्गुण हमारे अच्छे गुणों को जलाकर राख कर देते हैं। धर्म का मर्म समझाते हुए उन्होंने कहा कि – धर्म क्या है? अपने For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR August-2019 कर्तव्यों का प्रामाणिकतापूर्वक पालन करना ही धर्म है। धर्म का पालन करने से मन में करुणा, दया, वात्सल्य, प्रेम और दूसरों की मदद करने का भाव जागृत होता है। आज के समय में लोगों को धार्मिक कहलाना पसंद है, परन्तु धर्म का पालन करना किसी को पसंद नहीं। प्रत्येक प्राणी का दुःख हमें अपना लगना चाहिये। संसार के प्रत्येक धर्म का यही सार है। सत्य से धर्म का जन्म होता है। आज के समय में हमारा जीवन-व्यवहार ही असत्य की भूमिका पर चल रहा है। यहाँ उल्लेखनीय है कि सत्य का जन्म भारत में हुआ और परम सत्य का प्रकाश तीर्थंकरों और सद्रुओं ने हमें दिखाया है। राष्ट्रसंतश्री ने आगे कहा कि जीवन के प्रत्येक व्यवहार में धर्म होना चाहिए। हमें दूसरों के दुःखों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। शिबिर के प्रारंभ में गणिवर्य श्री प्रशांतसागरजी महाराज ने परमात्मा और उनकी भक्ति के विषय में सभा को विशेष जानकारी प्रदान की। प्रवचन से जीवन में परिवर्तन आता है अहमदाबाद : अदाणी शान्तिग्राम ४ अगस्त प्रातः १०.०० बजे राष्ट्रसन्त जैनाचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा ने कहा कि प्रवचन तथा सद्वचनों के श्रवण से जीवन में परिवर्तन आता है। जीवनयात्रा की सही राह और समझ मिलती है। जिस प्रकार दैनिक जीवन व्यवहार में हम योजना पूर्वक लक्ष्य के साथ चलते हैं, उसी प्रकार जीवन का भी एक लक्ष्य बनाना आवश्यक है, जिसके द्वारा हमें हमारी सद्गति या दुर्गति का ख्याल आ सके। प्रवचन के दौरान उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि संसार में दो प्रकार के व्यक्ति होते हैं - एक चलनी जैसे और दूसरा सूपडा जैसे। चलनी सार वस्तु को बाहर निकाल देती है और असार वस्तु को अपने अन्दर रखती है, जबकि सूपडा असार वस्तु को बाहर निकाल देता है और सार वस्तु को अपने अन्दर रखता है। आचार्यश्री ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि हमारा जीवन चलनी जैसा नहीं, बल्कि सूपड़े जैसा होना चाहिए, जो सार वस्तु को ग्रहण कर असार वस्तु को बाहर निकाल देता है। प्रवचन के अन्त में धर्म की बातें करते हुए उन्होंने कहा कि क्षमाभाव के द्वारा ही धर्म की स्थापना होती है तथा क्रोध, लोभ और कषाय के द्वारा धर्म का नाश होता है। शिबिर के प्रारम्भ में आचार्य श्री हेमचन्द्रसागरसूरीश्वरजी महाराज ने अपनी विशिष्ट शैली में जीवन व्यवहार के विषय में प्रवचन दिया। गणिवर्य श्री प्रशान्तसागरजी महाराज ने उपस्थित आराधकों को पर्युषणपर्व के दौरान एक महीने के उपवास का For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अगस्त-२०१९ पच्चक्खाण दिया। शिबिर में उद्योगपति श्री वसन्तभाई अदाणी सहित उत्तर गुजरात, महेसाणा-गांधीनगर-अहमदावाद-साणंद तथा बोपल से भी श्रद्धालुगण पधारे थे। विशेष जानकारी देते हुए शान्तिग्राम के कार्यकर्ता श्री हेमलभाई शाह ने बताया कि जैन कल्चर ग्रुप अहमदाबाद के द्वारा रविवार सन्ध्या ४.३० से ५.३० बजे राष्ट्रसन्त आचार्यश्री का विशिष्ट प्रवचन, उसके बाद जिनालय में सन्ध्या भक्ति तथा महाआरती का भी आयोजन किया गया था, जिसमें राकेशभाई आर. शाह सहित बड़ी संख्या में ग्रुप के सदस्यों ने परिवार सहित पधारकर लाभ लिया था। विश्व हिन्दू परिषद के पदाधिकारियों की बैठक में पूज्य राष्ट्रसंतश्री के उद्गार पहले मन्दिर तोड़े जाते थे, आज वैचारिक आक्रमण हो रहे हैं राष्ट्रसन्त जैनाचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज ने दि. १-८-१९ गुरुवार को आदिनाथ तपागच्छ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक शांतिग्राम जैन संघ, अदाणी शांतिग्राम टाउनशिप में विश्वहिन्दु परिषद के प्रतिनिधि तथा मंडल पदाधिकारियों के साथ हुई चर्चा के दौरान कहा कि “हजारों वर्ष पहले भारत में आक्रमण होते थे, हमारे मन्दिर तोड़े जाते थे, मन्दिर टूटते रहे और हम बनवाते रहे, परन्तु वर्तमान समय में मन्दिर तो सुरक्षित हैं, परन्तु हमारी भावनाओं को तोड़ने का वैचारिक आक्रमण हो रहा है। ऐसे समय में हमें संगठित होकर एकता बनाए रखनी है।” इस प्रसंग पर आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी म. सा., गणिवर्य श्री प्रशान्तसागरजी म. सा. तथा अन्य साधु भगवन्त भी विराजमान थे। उल्लेखनीय है कि विश्वहिन्दु परिषद के केन्द्रीय महामन्त्री श्री मिलिंदजी परांदे, गुजरात प्रदेश महामन्त्री श्री अशोकभाई रावल तथा विश्वहिन्दु परिषद के श्री केतनभाई शाह आदि अग्रगण्य कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रसन्त आचार्य पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा से आशीर्वाद एवं समग्र हिन्दू समाज के व्यापक हितो के लिए मार्गदर्शन प्राप्त करने आए थे। शेठ आणंदजी कल्याणजी पेढी के प्रमुख श्री संवेगभाई लालभाई, ट्रस्टी श्री श्रीपालभाई शाह, जैन श्रेष्ठी वसन्तभाई अदाणी सहित अनेक महानुभावों ने परम पूज्य राष्ट्रसन्त से आशीर्वाद प्राप्त किया था। ___ इस प्रसंग पर विश्वहिन्दु परिषद के केन्द्रीय महामन्त्री श्री मिलिंदजी परांदे ने बताया कि वर्तमान में हिन्दु समाज को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। यह प्रयास सफल न हो, इसके लिए यह आवश्यक है कि समग्र हिन्दु समाज संगठित बने। (अनुसंधान पृष्ठ क्रमांक. ३१ पर) For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir LG पूज्य राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा के र अदाणी-शांतिग्राम अहमदाबाद में रविवारीय चातुर्मासिक प्रवचन 69 9 मुनि श्री पद्मरत्नसागरजी म. सा. की तृतीय पुण्यतिथि पर ( दि. २४ जुलाई को गुणानुवाद किया गया 35 For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Registered Under RNI Registration No.GUJMUL/2014/66126 SHRUTSAGAR (MONTHLY). Published on 15th of every month and Permitted to Post at Gift City SO, and on 20th date of every month under Postal Regd. No. G-GNR-334 issued by SSP GNR valid up to 31/12/2021. श्री शांतिग्राम के प्रांगण में जन-जन को सद्भावना की प्रेरणा देनेवाले राष्ट्रसंत आचार्यप्रवर श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा के 85वें जन्मवर्ष के प्रवेशप्रसंगपर गुरुभक्तों को गौरवपूर्ण आमंत्रण -मंगल घडी 8सितम्बर 2019 रविवार, प्रातः 10.00 बजे ROOG पथदर्शक है। शिरसा वन्दे सूरीश्वरम् निमंत्रक व स्थल श्री आदिनाथ तपागच्छ घेताम्बर मूर्तिपूजक शान्तिग्राम जैन संघ, ट्रस्ट SHREE AADINATH JINALAY, Adani Shantigram Township, Nr. Vaishanodevi Temple, S. G. Highway, Ahmedabad - 382421. BOOK-POST / PRINTED MATTER प्रकाशक श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा जि. गांधीनगर 382007 फोन नं. (079)23276204, 205, 252 फेक्स (079)23276249 Website : www.kobatirth.org email: gyanmandir@kobatirth.org Printed and Published by: HIREN KISHORBHAI DOSHI, on behalf of SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, New Koba, Ta.&Dist. Gandhinagar, Pin-382007, Gujarat. And Printed at : NAVPRABHAT PRINTING PRESS, 9, Punaji Industrial Estate, Dhobighat, Dudheshwar, Ahmedabad-380004 and Published at : SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, New Koba, Ta.& Dist. Gandhinagar, Pin-382007, Gujarat. Editor : HIREN KISHORBHAI DOSHI 36 For Private and Personal Use Only