________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
24
अगस्त-२०१९ ॥२६॥भ०..
॥२७॥भ०..
॥२८॥भ०..
॥२९॥भ०..
श्रुतसागर नाक विधीने वीवाह जोडे, आंबील तस होय दोय रे चोपद उपर अधिको भार, वासी गार ज राखे। वासी अन्ननुं भोजन करतां, छठ करो जिन साखे रे छांणां इंधण अन्न ज सर्वे, अणपुंज्यां अणसोध्यां। बाले रांधे कर्म करे तो, बाविस आंबिल बोध्यां रे श्री जिनबिंबने उथापन करतां, आंबिल त्रीशनी सीम। पडिमा उथापकने अन्न देतां, सो आंबिल नीम रे लगभग वेलाए वालु करतां, सामायक व्रत खंडे। काम कुचेष्टा माठि करतो, जोरथी विषयने मंडे रे दुतिपणुं ते नारि करति, मैथुननी वली चिंता। कुवारी कन्यासुं रंगे रमतां, धातु वस्त्र हरतां रे एक एक उपवास एहने कहींई, धारो आलोयण सारी। तत्वतरंगणी ग्रंथमां जोईने, पालो सहू नरनारी रे सागरगछपति उदयसागरसुरी, सुरगुरु समश्रुत प्यारी। पंडित विवेकसागर सुपसाई, न्यायसागर जयकारी रे
॥ संपूर्ण ॥
॥३०॥भ०..
॥३१॥भ०..
॥३२॥भ०..
॥३३॥भ०..
क्षमा याचना सांवत्सरिक पर्युषण महापर्व के पावन प्रसंग पर ज्ञानमन्दिर के वाचक, श्रुतसागर के पाठक, विश्वकल्याण प्रकाशन के पाठक, ह्स्तप्रत के ग्रंथसूचि के लाभार्थी, दाता, प्रदाता, लेखक आदि हमसे जुड़े तमाम वाचकों-संशोधकों-संपादकों से हमारा विनम्र निवेदन है कि आपकी अपेक्षाओं, आवश्यकताओं को समझने में, समझने के बाद भी प्रमाद या कार्यव्यस्ततादि कारणों से साहित्य भेजने में हुए विलंब, अपेक्षित की जगह भूलवश अनपेक्षित सूचनाएँसाहित्य भेज देना आदि के संदर्भ में हमारे ट्रस्टीगण, व्यवस्थापक एवं कार्यकर्ताओं के द्वारा मन-वचन-काया से जाने अनजाने वर्ष दौरान हुई किसी भी प्रकार के अपराध व क्षति के लिए हम सभी, आप सभी के क्षमाप्रार्थी हैं।
त्रिविध मिच्छामि दक्कडं
For Private and Personal Use Only