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श्रुतसागर
अगस्त-२०१९ गुरुवाणी
आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी जेनामां अहिंसा प्रगटे छे तेज क्षमापना करी शके छे
(स. १९७८ भाद्रपद सुदि ६. मु. महेसाणा.) क्षमापना बे भेदे छे, द्रव्यथी अने भावथी, क्षमापना शब्दनो अर्थ थाय छे जेनी साथे क्षमापना करवानी छे तेनी साथे ज्यां सुधी भावथी क्षमापना न थाय त्यां सुधी ते द्रव्य क्षमापना छ । खम, खमावq, उपशमवू अने उपशमावq ए चारित्रनो सार छ। आत्मज्ञानना उपयोगे जे जे जीवोनी साथे वैर विरोध थया छे, तेओने खमाववू, अपराधोनी माफी मागवी अने बीजीवार अपराध न थाय एवो भाव राखवो ते भाव क्षमापना छ।
सम्यग्दृष्टि आत्मा भाव क्षमापना करी शके छे। अज्ञानी मिथ्यादृष्टिजीव, भाव क्षमापनाने प्राप्त करी शकतो नथी। छद्मस्थ दशामां अनेक जीवोना अपराधो, दोषो, भूलो थाय छे, तेथी सर्वजीवोनी साथे मिथ्यादुष्कृत देवानी जरूर छे। अन्यजीवोने कोई पण रीते पीडा करवानो पोतानो-हक्क नथी। कोईपण जीवने नुकशान न पहोंचे, तेवी रीते जेम बने तेम वर्तवू जोईए। अनुपयोगदशामां थएला दोषोनो, अपराधोनो अंतःकरणमां पश्चात्ताप करवाथी हृदयनी, आत्मानी शुद्धि थाय छे । हृदयमा अत्यंत पश्चात्ताप थवाथी क्षमापनानी योग्यता प्रगटे छ।
अनंतानुबंधी कषायोना उपशमादिभावे भाव क्षमापना प्रगटे छे । सर्वदेहधारीओने सामान्यतः आत्मसाक्षीए खमाववाथी अनंतभवनां कृतकर्मोनी निर्जरा थाय छ । 'खामेमि सव्वजीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे, मित्ति मे सव्वभूएसु, वेरं मज्झ न केणइ' हुँ सर्व जीवोने खमावु छु अने सर्व जीवो मने खमावो। सर्व जीवोनी साथे मारे मैत्री छे, कोईनी साथे वैर नथी। मैत्री भावथी वैरनी शांति थाय छे अने वैरना वैररूप प्रतिबदलाथी वैरनी वृद्धि थाय छे । शुद्ध प्रेमथी वैर शमे छे । क्षमाथी वैर शमे छ।
पाक्षिक क्षमापनाथी संज्वलन क्रोधमानमायालोभनो उपशम तथा क्षयोपशम थाय छे । दैनिक क्षमापनाथी कषायोनी घणी मंदता थाय छे अने आत्मानी अतिविशुद्धि थाय छ । चातुर्मासिक क्षमापनाथी प्रत्याख्यानी कषाय अत्यंत उपशमे छ । सांवत्सरिक
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