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SHRUTSAGAR
August-2019 तिहां बावन चैत्याला, ते नित्य अW त्रिहुं काला हो भवियण.... सहु सुरपति सुरवृंदा', निज चित्तमें धरी आणंदा हो भवियण.. ॥३॥ ते तिण थांनके आवै, प्रभु पेखी सीस नमावै हो भवियण...। पूजा विविध प्रकारें, इकचित्त करें सुविचारै हो भवियण... नाटिक बहु परकार, इंद्राणी करें तिण वार भवियण....।
अपछर जिनगुण गावें, तसु अंगे हरख न मा हो भवियण... विविध वाजित्र तिहां वाजें, ओपम कहिवा कुण साजें हो भवियण....। सुरपति सुरगण सारें, मुखसू(सु) जय जय उच्चारें हो भवियण... इण विध प्रभुनी सेवा, सहु इंद्र करें नितमेवा' हो भवियण....। ए श्रीसद्गुरुनी वाणी, नित सुणीयें अमिय समांणी हो भवियण... जे श्रावक व्रतधारी, वलि(ली) श्राविका ते सुविचारी हो भवियण....। परब(र्व) अट्ठाइ आयें, वर्ते निज धर्म-ऊपायें हो भवियण... ग्राम नगर सहु ठांमें, ढंढेरो ये निज हांमें हो भवियण....। सहुको लोक अमारि(री), पालेवी धर्म विचारी हो भवियण... ॥९॥ बंदीवान छु(छू)डावें, धन देई जीव उडा हो भवियण....। अभयदांन इम दीजें, सद्गुरुनी सेवा कीजें हो भवियण... ब्रह्मचर्यव्रत पालै, रागादिक अरी(रि)यण टालै हो भवियण....। छट्ठ अट्ठम तप कीजै, वली भावना शुभ भावीजै हो भवियण... ॥११॥ पडिकमणोंने जाप', कीजै बी(बि)हुं टंक आप हो भवियण...। पोसह करी मनरंगें, ए जस लीजै सहु संगे हो भवियण...
॥१२॥ देहरे स्नात्र करीजै, पुण्ये भंडार भरीजै हो भवियण...। द्रव्यपूजा भलें भावें, प्रभुनी कीजें चित्त चावें हो भवियण... ॥१३॥ साहमीवछल कीजै, सहुकोने आदर दीजै हो भवियण...। चित्तमें क्रोध न राखें, खामीजै सहुनी साखें हो भवियण...
॥१४॥ भाद(द्र)वा वदि चउदस दिवसें, सांझे पुस्तक ल्ये हरसें हो भवियण...। श्रीतपगछ क(व)मला खरतरनी, ए परिपाटी शुभ करनी हो भवियण... ॥१५॥ २. समर्थ थाय, ३. हमेशा, ४. उमेदथी, इच्छापूर्वक, ५. प्रसन्नताथी, ६. साक्षीए, ७. आनंद पूर्वक, पाठांतर-3. वंदे, 4. आणंदे, 5. पडिक्कमणाने जपे, 6. आपे,
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