Book Title: Shrutsagar 2019 08 Volume 06 Issue 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अगस्त-२०१९ 18 न्यायसागर कृत आलोयणा सज्झाय श्रीमती डिम्पल निरव शाह कृति परिचय जे सज्जनोनुं मन मळरहित थइने तत्वस्वरूपे तथा वास्तविक आनंदना निधानरूपे जिनेश्वरना स्मरणमां लीन होय, अनंत प्रभावशाळी महामंत्र जेमना होठे होय, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने सम्यग्चारित्ररूप मोक्षमार्गमां जेमनुं आचरण होय, तेवा सज्जनोने इच्छित विषयनी प्राप्तिमां विघ्न शेर्नु होय? आ प्रश्नना उत्तररूपे अहीं आलोयणा सज्झाय नामक कृतिनुं संपादन करवामां आवे छे । आराधना घणी करी होय पण जो तेमां जाणतां-अजाणतां दोष रही गयेल होय अने तेनु प्रायश्चित करवामां न आव्यु होय तो इष्टफलनी प्राप्तिमां विघ्न आवी शके छे। श्रावकजीवनमा लागेल विविध दोषो-अतिचारो अने तेनी आलोचना दर्शावती आ कृति छे। आ कृतिमा सामान्यथी लई नानामां नाना दोषनो पण समावेश करेल छ। जेमके गुरूने ज्ञानरूपी विराधना करी होय तो एकासणुं करवू । पारका द्रव्यनी चोरी, अन्य साथे कलह के अन्ननी चोरी करे तो उपवास करवो। बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरेन्द्रिय अने पंचेन्द्रियना जीव हण्या होय तो अनुक्रमे बे, त्रण, चार अने दस उपवास प्रमाण आलोचना करवी। जिनप्रतिमाने दीपकनो स्पर्श थई जाय अथवा तो प्रतिमानुं कोई अंग खंडित थई जाय तो लाख नवकार गणवा अने स्नात्रपूजा भणाववी। स्थापनाचार्य पडवा, नवकारवाळी खोवावी, देवगुरुने वंदन रही जवा जेवी आशातना वगेरेनो समावेश थाय छे। कर्ताए आवी अनेक प्रकारनी आलोचना माटे 'तत्वतरंगिणी' ग्रंथनो संदर्भ आप्यो छे। कृतिनी शरूआतथी अंत सुधी जाणतां-अजाणतां थयेला पापना प्रायश्चितरूपे कर्ताए जे आलोचना वर्णवी छे । तेने नीचे कोष्ठक प्रमाणे ढूंकमां दर्शाववानो प्रयत्न कर्यो छे For Private and Personal Use Only

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