Book Title: Shrutsagar 2019 08 Volume 06 Issue 03 Author(s): Hiren K Doshi Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR August-2019 संपादकीय रामप्रकाश झा आत्मा के ऊपर पड़े हुए कषायादि के आवरण को दूर करने के लिए सम्यक् ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना के महापर्व पर्युषण का प्रारम्भ हो रहा है। गुरुजनों के पावन सान्निध्य में की गई ध्यान-साधना और उपवास-पच्चक्खाण वर्षों से आत्मा के ऊपर पड़े हुए मिथ्यात्व के आवरण को दूरकर उसे मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर करते हैं। प्रस्तुत अंक में “गुरुवाणी” शीर्षक के अन्तर्गत आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के ग्रन्थ पत्रसदुपदेश से संकलित पर्युषण महापर्व से सम्बन्धित उनके विचार प्रस्तुत किए गए हैं। द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के प्रवचनों की पुस्तक 'Awakening' से क्रमबद्ध श्रेणी के अंतर्गत संकलित किया गया है, जिसमें जीवनोपयोगी प्रसंगों का विवेचन किया गया है। “ज्ञानसागरना तीरे तीरे” नामक तृतीय लेख में डॉ. कुमारपाल देसाई के द्वारा आचार्यदेव श्रीमद बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के जीवन, व्यक्तित्व एवं कृतित्व का परिचय दिया गया है। ___अप्रकाशित कृति प्रकाशन के क्रम में सर्वप्रथम पूज्य गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी म. सा. के द्वारा सम्पादित “पर्युषण स्तवन" प्रकाशित किया जा रहा है। इस कृति के कर्ता हेमसौभाग्य ने पर्युषणपर्व के अवसर पर किए जानेवाले धर्मानुष्ठान, कल्पसूत्र का वांचन आदि का वर्णन किया है। द्वितीय कृति के रूप में श्रीमती डिम्पल निरवभाई शाह के द्वारा सम्पादित कृति “आलोयणा सज्झाय” प्रकाशित की जा रही है। इस कृति के कर्ता न्यायसागर ने श्रावकजीवन के विविध अतिचारों को दूर करने के लिए किए जानेवाले प्रायश्चित का वर्णन किया है। पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत बुद्धिप्रकाश, ई.१९३४, पुस्तक-८२, अंक-२ में प्रकाशित “गुजराती माटे देवनागरी लिपि के हिंदी माटे गुजराती लिपि” नामक लेख के शेष भाग का पुनःप्रकाशन किया जा रहा है। इस लेख में गुजराती भाषा को देवनागरी लिपि में अथवा हिन्दी भाषा को गुजराती लिपि में लिखे जाने की उपयोगिता और औचित्य पर प्रकाश डाला गया है। पुस्तक समीक्षा के अन्तर्गत आचार्य श्री रत्नसंचयसूरिजी म. सा. द्वारा रचित “जैन ग्रंथों की गोद में भिन्नमाल की भव्यता” पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत की जा रही है। इस कृति में भीनमाल नगर की प्राचीनता तथा ऐतिहासिक व सांस्कृतिक भव्यता का वर्णन किया गया है। इस अंक में "श्रुतसेवा के क्षेत्र में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर का योगदान” नामक गतांक से चल रहे लेख को प्रकाशित किया जा रहा है। इस लेख के माध्यम से आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर के द्वारा किये जा रहे महत्त्वपूर्ण कार्यों का वर्णन किया गया है। हम यह आशा करते हैं कि इस अंक में संकलित सामग्रियों के द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से हमें अवगत कराने की कृपा करेंगे। For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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