Book Title: Shrutsagar 2018 10 Volume 05 Issue 05
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra SHRUTSAGAR www.kobatirth.org 5 संपादकीय Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir October-2018 रामप्रकाश झा श्रुतसागर का यह नवीन अंक आपके करकमलों में समर्पित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है। इस अंक में गुरुवाणी शीर्षक के अन्तर्गत योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. की कृति “आध्यात्मिक पदो” की गाथा ६१ से ६६ तक प्रकाशित की जा रही हैं। इस कृति के माध्यम से साधारण जीवों को आध्यात्मिक उपदेश देते हुए अहिंसा, सत्यपालन, आहारादि से संबंधित प्रतिबोध कराने का प्रयत्न किया गया है। द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के प्रवचनों की पुस्तक 'Awakening' से क्रमबद्ध श्रेणी के अंतर्गत संकलित किया गया है, जिसके अन्तर्गत जीवनोपयोगी प्रसंगों का विवेचन किया गया है। अप्रकाशित कृति के रूप में इस अंक में गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी म. सा. के द्वारा सम्पादित कृति “कामलक्ष्मी चरित्र” प्रकाशित की जा रही है। कुल १०६ गाथाओं में निबद्ध इस कृति में कामलक्ष्मी ब्राह्मणी के चरित्र का आलेखन किया गया है। कामलक्ष्मी के जीवन में घटित होनेवाली रोमांचक घटनाओं का वर्णन तथा अन्त में पाप के प्रायश्चित हेतु दीक्षा ग्रहण कर तप - संयम का आचरण करते हुए मोक्षसुख की प्राप्ति तक का वर्णन अत्यन्त ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। द्वितीय कृति के रूप में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर के कार्यकर्त्ता श्री सुकुमार जगताप के द्वारा सम्पादित कृति “जिन ३५ वचनातिशय स्तवन" प्रकाशित की जा रही है। अपभ्रंश भाषा में रचित इस लघु कृति की कुल २६ गाथाओं के माध्यम जिनेश्वर प्रभु की वाणी के ३५ गुणों का वर्णन काव्य रूप में किया गया है। For Private and Personal Use Only पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत इस अंक में बुद्धिप्रकाश, पुस्तक ८२ के प्रथम अंक में प्रकाशित “सोलमा शतकनी गुजराती भाषा” नामक लेख प्रकाशित किया जा रहा है। ई.१९३४ में प्रकाशित इस लेख के माध्यम से सोलहवीं सदी की रचनाओं में प्रचलित गुजराती भाषा के स्वरूप तथा उच्चारणभेद का विस्तृत वर्णन किया गया है। गुजराती भाषा के क्षेत्र में संशोधन करनेवाले संशोधकों हेतु यह कृति बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। हम यह आशा करते हैं कि इस अंक में संकलित सामग्रियों के द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से हमें अवगत कराने की कृपा करेंगे, जिससे आगामी अंक को और भी परिष्कृत किया जा सके।

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