Book Title: Shrutsagar 2018 10 Volume 05 Issue 05
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR October-2018 ही जलार्द्र होने के कारण कई स्थानों पर स्याही फैली हुई है, जिससे अक्षर पढ़ने में कठिनाईं होती है। इस हस्तप्रत का सन्दर्भ 'आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा तीर्थ' से प्रकाशित कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची के खंड १.१.२१, पृ.क्र. २५६ पर से प्राप्त होता है । पाठक पुण्यसागर कृत श्री जिन पैंतीस वचनातिशय स्तवन विणयगुण पणय जणजणिय सुहसंपयं, संपयं नमवि सिरिपास पयपंकयं । थुणिऊं जिणवयण पणतीस गुण निम्मला, जेम सहली हवइ कावि मुझ मति कला ॥१॥ उपनइ केवलन्नाणि जिननइ सुरा, रचइउं सरण तिह ठाइ तित्थंकरा। अद्धमागधीइ भासाइ भासइ सदा, धम्मदेसण सुणइ बार वर परिषदा ॥२॥ संस्कृतादिक छ भाषा' अछइ जे भली, तेहने लक्षणे सहित निरुपम वली। खलिय' मिलियाइ दूषण रहित गहगहइ, प्रथम संस्कर गुण' एह गणधर कहइ ॥३॥ उच्चसर सार उच्चार सुर दुंदुही, नाद संवादि ओदात गुण ए सही। हीण ग्रामीण भाषा रहित वाणीइं, एह उपचारसुपरीतता (३) जाणीयइं ॥४॥ मेघ जिम मधुर गंभीरनिर्घोषता', एक जोयण अधिक पसर प्रतिनादता। सर्व श्रोतारनई सरल भाषा पणइं, परिणमइ स्वामिनी वाणि दक्खिण गुणइ ॥५॥ मालवक्केसिया पमुह सुह राग जे, सत्तसर गाम तिग मुच्छणा २१ अनु भजे। एह उपनीतरागत्त गुण जांणीयइ । सात गुण सबदथी एह वक्खाणीयइ ॥६॥ ॥ ढाल॥ हिव अरथ अपेक्षा करि गुण अट्ठावीस, मह अत्थ मियक्खरी अत्थ कहइ बहु ईस। पुव्वावर वचनइ न हुवइ जिहां विरोध, अव्याहतता गुण नवमउ जाणि सुबोध ॥७॥ अभिमत सिद्धं तह अत्थ निवेदक इट्ट, वाचकनई सूचइ उत्तमता वासिट्ठ । प्रगटारथ अक्षर कहिवाथी इकवार, सवि संसय भंजइ असंदिद्दद्ध) गण' सार ॥८॥ १. काव्य में, २. प्रतिलेखक के द्वारा हस्तप्रत की दाईं ओर पावरेखा के बाहर ६ भाषाओं का नामोल्लेख किया गया है, वह इसप्रकार है-संस्कृत १, प्राकृत २, सौरसेनी ३, मागधी ४, पिशाचिकी ५, अपभ्रंसी ६, ए ६ भाषा जाणवी ॥, ३. स्खलना, ४. ? For Private and Personal Use Only

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