Book Title: Shrutsagar 2018 10 Volume 05 Issue 05
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
अक्टुबर-२०१८ सोळमा शतकनी गुजराती भाषा
मधुसूदन चिमनलाल मोदी १. रा. जगजीवन नरभेराम बधेकाए ‘सोळमां शतकनी गुजराती भाषा' संबंधे 'गुजराती' पत्रमा केटलाक मुद्दाओ ऊठावी एम पूरवार करवा यत्न कर्यो केः
(अ) काठीआवाडमां सोळमा शतकमां बोलाती गुजराती भाषा अर्वाचीन गुजरातीना जेवी ज लगभग हती; अने ते माटे तेमणे प्रमाणो रजु कर्यां।
(ब) गुजरात तळमां सोळमा शतकमां बोलाती गुजराती भाषा अर्वाचीन गुजराती करतां जुदा प्रकारनी हती ए कबुल करवामां रा. बधेका संमत छे । तेम ज वधारामां ते एम पण कहेवा मागे छे के गुजरात तळमां संस्कृता गुर्जरी : ब्राह्मणोनुं गुजराती अने प्राकृता गुर्जरी : जैन गुजराती एम बे भाग पाडी शकाय।
उपरनां विधानोने रा. केशवराम का. शास्त्रीनो पण टेको छ ('गुजराती' २६१-४४) 'नगीचाणाना पावळिआ' नो लेख. पा. १७०८) एमना प्रस्तुत लेखमां एमणे जूनी गुजरातीना त्रण भाग पाड्या छे।
१. प्राकृतप्रचुर तल गुजरातनी साहित्यभाषा। २. संस्कृतप्रचुर तल गुजरातनी साहित्यभाषा। ३. तल काठियावाडनी लोकभाषा।
तल-काठिआवाडीनी समजावट करतां रा. शास्त्री एज लेखमां कहे छे के “तलगुजरातमां सं. १८२५ लगभगमा जूनी भाषाना संस्कारवाळी हाथप्रतो, पत्रो, लखतो वगेरे मळे छे, ज्यारे तल-काठियावाडमां छेक सं. १४५९ थी मांडी नवा संस्कार वाळी भाषा मळे छे.... अने नरसिंहनी भाषा ते ज संभवे छे।”
आ पूर्व पक्षमां केटली अयथार्थता छे ते बताववा नीचे यत्न करवामां आवे छे।
२. बोलाती भाषामां विकार न थाय ए मानवू ज मुश्केल छ। जीवंत वस्तुमां विकार थवो ते प्रकृतिनो नियम छ । दाखला तरीके कवि नर्मदाशंकरनी भाषा तो अर्वाचीन ज कहेवाय छतां पण अत्यारना लखाणमां अने तेमना लखाणमां अमुक जोडणी संबंधी फेरफार तो मालम पडे छे। दा. त. नर्मदाशकंर ‘मारी हकीकत' ९-९-२७. कांहां (=अत्यार- ‘क्यां'; सुरती भाषा कां' [सं. १९१९] भाएगाशाली (=अत्यार- ‘भाग्यशाली;' सुरती भाषामां 'भाएग' बोलातुं दीठामां आवे छे)
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