Book Title: Shrutsagar 2018 10 Volume 05 Issue 05
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra RNI: GUJMUL/2014/66126 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर | श्रुतसागर SHRUTSAGAR (MONTHLY ) October-2018, Volume 05, Issue 05, Annual Subscription Rs. 150/- Price Per copy Rs. 15/EDITOR: Hire Kisborbbal Doshi For Private and Personal Use Only ISSN 2454-3705 कामलक्ष्मी की कर्मकहानी का एक दृश्य आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर BOOK-POST/PRINTED MATTER 1 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राष्ट्रसंत प. पू. आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के ८४ वें जन्मोत्सव की कुछ झलकें For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra SHRUTSAGAR RNI : GUJMUL/2014/66126 www.kobatirth.org वार्षिक सदस्यता शुल्क - रु. १५०/ अंक शुल्क - रु. १५/ संपादक हिरेन किशोरभाई दोशी आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का मुखपत्र) श्रुतसागर શ્રુતસાગર SHRUTSAGAR (Monthly) वर्ष-५, अंक-५, कुल अंक-५३, अक्टुबर-२०१८ Year-5, Issue-5, Total Issue-53, October-2018 Yearly Subscription - Rs.150/Price per copy Rs. 15/आशीर्वाद फ्र 3 राष्ट्रसंत प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. * सह संपादक जैन महावीर रामप्रकाश झा एवं ज्ञानमंदिर परिवार १५ अक्टुबर, २०१८, वि. सं. २०७४, आश्विन शुक्ल - ६ आराधना अमृतं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तु विद्या केन्द्र, October-2018 ISSN 2454-3705 कोबा For Private and Personal Use Only * संपादन सहयोगी राहुल आर. त्रिवेदी प्रकाशक आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर (जैन व प्राच्यविद्या शोध-संस्थान एवं ग्रन्थालय) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर-३८२००७ फोन नं. (079) 23276204, 205, 252 फैक्स : (079) 23276249, वॉट्स-एप 7575001081 Website : www.kobatirth.org Email : gyanmandir@kobatirth.org Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अक्टुबर-२०१८ अनुक्रम रामप्रकाश झा 6 7 1. संपादकीय 2. आध्यात्मिक पदो 3. Awakening 4. कामलक्ष्मी चरित्र 5. श्री जिन ३५ वचनातिशय स्तवन । 6. सोळमा शतकनी गुजराती भाषा 7. समाचार सार आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी Acharya Padmasagarsuri गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी सुकुमार शिवाजीराव जगताप मधुसूदन चिमनलाल मोदी आया आदर ना दीयै जाता नहीं जीकार। मिलिया मलक न बोलणो अधमघरा आचार ॥ हस्तप्रत नं.१२००९० भावार्थ – जिस घर में आनेवाले (अतिथि) को आदर नहीं दिया जाता हो, जानेवाले को जीकार (पुनः पधारना) जैसे शब्द नहीं बोले जाते हों तथा मिलने पर परस्पर मुस्कुराकर बातें नहीं किया जाता हो, ऐसा अधम घरों का || आचार है। प्राप्तिस्थान आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर तीन बंगला, टोलकनगर, होटल हेरीटेज़ की गली में डॉ. प्रणव नाणावटी क्लीनीक के पास, पालडी अहमदाबाद - ३८०००७, फोन नं. (०७९) २६५८२३५५ For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra SHRUTSAGAR www.kobatirth.org 5 संपादकीय Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir October-2018 रामप्रकाश झा श्रुतसागर का यह नवीन अंक आपके करकमलों में समर्पित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है। इस अंक में गुरुवाणी शीर्षक के अन्तर्गत योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. की कृति “आध्यात्मिक पदो” की गाथा ६१ से ६६ तक प्रकाशित की जा रही हैं। इस कृति के माध्यम से साधारण जीवों को आध्यात्मिक उपदेश देते हुए अहिंसा, सत्यपालन, आहारादि से संबंधित प्रतिबोध कराने का प्रयत्न किया गया है। द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के प्रवचनों की पुस्तक 'Awakening' से क्रमबद्ध श्रेणी के अंतर्गत संकलित किया गया है, जिसके अन्तर्गत जीवनोपयोगी प्रसंगों का विवेचन किया गया है। अप्रकाशित कृति के रूप में इस अंक में गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी म. सा. के द्वारा सम्पादित कृति “कामलक्ष्मी चरित्र” प्रकाशित की जा रही है। कुल १०६ गाथाओं में निबद्ध इस कृति में कामलक्ष्मी ब्राह्मणी के चरित्र का आलेखन किया गया है। कामलक्ष्मी के जीवन में घटित होनेवाली रोमांचक घटनाओं का वर्णन तथा अन्त में पाप के प्रायश्चित हेतु दीक्षा ग्रहण कर तप - संयम का आचरण करते हुए मोक्षसुख की प्राप्ति तक का वर्णन अत्यन्त ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। द्वितीय कृति के रूप में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर के कार्यकर्त्ता श्री सुकुमार जगताप के द्वारा सम्पादित कृति “जिन ३५ वचनातिशय स्तवन" प्रकाशित की जा रही है। अपभ्रंश भाषा में रचित इस लघु कृति की कुल २६ गाथाओं के माध्यम जिनेश्वर प्रभु की वाणी के ३५ गुणों का वर्णन काव्य रूप में किया गया है। For Private and Personal Use Only पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत इस अंक में बुद्धिप्रकाश, पुस्तक ८२ के प्रथम अंक में प्रकाशित “सोलमा शतकनी गुजराती भाषा” नामक लेख प्रकाशित किया जा रहा है। ई.१९३४ में प्रकाशित इस लेख के माध्यम से सोलहवीं सदी की रचनाओं में प्रचलित गुजराती भाषा के स्वरूप तथा उच्चारणभेद का विस्तृत वर्णन किया गया है। गुजराती भाषा के क्षेत्र में संशोधन करनेवाले संशोधकों हेतु यह कृति बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। हम यह आशा करते हैं कि इस अंक में संकलित सामग्रियों के द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से हमें अवगत कराने की कृपा करेंगे, जिससे आगामी अंक को और भी परिष्कृत किया जा सके। Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर ( गतांक से आगे) www.kobatirth.org 6 आध्यात्मिक पदो (हरिगीत छंद) उपकारनां सूत्रो भलां ते शब्द वेदे शोभतां, ए शब्द वेदो विश्वमांहि सर्वं मन थोभतां; उपकारनी सहु वृत्तियो छे वेद श्रद्धा परवडी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. प्रामाण्य वर्तन वेद छे प्रमाण्य वर्तन देवता, प्रामाण्य वर्तन प्रगटतां देवो चरणने सेवता; प्रामाण्य वादी वेद छे जाशो नहीं बोली फरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. कामादि सर्वे वासनाओ ज्यां नथी ते सिद्ध छे, ए सिद्धनी वाणी विषे वेदो रह्या अविरूद्ध छे; आग्रह तजीने पक्षनो जोशो जरा दिल उतरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. विरूद्धता नजरे पडे ज्यां त्यां परस्पर देखतां, ज्यां ग्रंथमां ने बोलमां इश्वरपणुं ना पेखतां; जे 'जूठ नहि ते वेद छे चमको नहीं मन खळभळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. जेथी टळे छे राग ने द्वेष ज तथा मिथ्यामति, ते वेद शब्द ब्रह्म छे प्रगटे समाधि जे छती; सहु वासनाओ जे थकी क्षण क्षणविषे जाती बळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. उत्तम जीवननां शिक्षणो ते वेद विद्या जाणवी, उत्तम जीवन प्रगति करे ते वेद श्रद्धा मानवी; नीति जीवन जेथी वधे ते वेद विद्या गुण करी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी For Private and Personal Use Only अक्टुबर-२०१८ 61 62 63 64 65 66 (क्रमशः) Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra SHRUTSAGAR www.kobatirth.org 7 Awakening Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (from past issue...) Acharya Padmasagarsuri Doubting anything is not Mithyatwa but keeping the doubt in one's mind without expressing it is Mithyatwa. Man must place his doubts before the Gurudev who knows the meaning of everything and get his doubts cleared through questions and answers. This helps man to develop faith in Reality and that will bring about in him Rightness or thoroughness (Samyaktwa). It also proves to be a source of inspiration for the right conduct and the performance of austerities. October-2018 The man who lives according to Dharma does not experience loneliness whether he is at home or in a forest. Dharma or Right conduct will always be his companion. There will be unity in his thought, word and deed. मनस्येकं वचस्येकम् कर्मण्येकं महात्मनाम् । मनस्यन्यद्वचस्यन्यत् कर्मण्यन्यद् दुरात्मनाम् ॥ (Manasyekam Vachasyekam, Karmanyekam Mahatmanam Manasyandwachasyanyath, Karmanyanyad duratmanam) There will be unity or oneness in thought, word and deed in the case of great men (Mahatmas); but in the case of wicked men (Duratmas) there will be a divorce between thought and word; and word and deed. A noble person speaks out what he thinks; and acts according to what he says; but a wicked man does not possess this unity of thought, word and deed. His speech is different from his thought; his action is different from his words; and he is not trust worthy. For Private and Personal Use Only The words spoken by men of experience and spiritual excellence brighten our lives; show new ways to us; and lead us on the right path. Hence everybody should spend some time in the company of good men. In the world, the rich man as well as the poor man has to face miseries and misfortunes. One dies of over eating; and the other dies of hung. But no one can be happy if he does not mix with good men. (Continue...) Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर www.kobatirth.org 8 जयनिधान गणि कृत कामलक्ष्मी चरित्र Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अक्टुबर-२०१८ गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी 'सुख पछी दुःख अने दुःख पछी सुख' आ घटमाळ दरेक व्यक्तिना जीवननी अवश्यंभावी घटना छे। आजे जे व्यक्तिने आपणे सुखी जोईए छीए ते काले सुखी ज हशे तेवुं नथी, तो जे व्यक्तिने आजे दुःखी जोईए छीए ते काले दुःखी होय तेवुं पण नथी । पूर्व संचित कर्मोंने कारणे ज जीवने आवा सुख दुःख प्राप्त थाय छे। जो के महत्तम जीवोने आवा प्रसंगे राग द्वेष थाय छे एटले के सुख मळे तो राग अने दुःख मळे तो द्वेष थाय छे, अने आ ज राग द्वेषनी बुद्धि जीवने फरी नवा कर्मोंना बंधनो करावी संसार समुद्रमां डूबाडे छे। कोई वळी समजु आत्मा आवा सुख दुःखना अवसरे मनने प्रयत्नपूर्वक समभावमां लावी उत्तरोत्तर आत्मगुणना विकास करतो मोक्षसुखनो भोक्ता बने छे। प्रस्तुत कृतिमां कविए सुख दुःखनी आ घटमाळमां फसायेली कामलक्ष्मी ब्राह्मणीना चरित्रने संक्षेपमां आलेख्युं छे । मनवांछित भोगसुखोने मेळववा जीव कई रीते प्रेराय छे? तेनुं, तथा ते मेळववानी तालावेली करतो जीव ज्ञात के अज्ञातपणे केवा अकार्यो करी बेसे छे, तेनुं तादृश चित्रांकन थयेलुं अहीं जोई शकाय छे। प्रान्ते दुःख पछी सुखनी प्राप्ति पण निश्चित छे ज अने ए क्रम मुजब अहिं ब्राह्मणीना जीवने मळता सद्गुरुना संयोगने सुख कहीशुं अने परमपदनी प्राप्तिने सुखनी पराकाष्ठा कहीशुं । कथासार अने कृति परिचय भरत खंडना वसंत नगरमां वेदसार नामनो एक ब्राह्मण रहेतो हतो । ते अद्भुत रूप लावण्यवाळी कामलक्ष्मी नामनी पत्नी हती। पूर्वभवमां उपार्जित करेला कोई पाप कर्मने लीधे ते निर्धन ब्राह्मण भिक्षावृत्तिथी आजीविका चलावतो । एकवार सांसारिक सुखोने भोगवता तेनी पत्नीने ज्यारे गर्भ रह्यो त्यारे बाळकना सूतिकर्मादिने माटे द्रव्यनी व्यवस्था केम करवी तेनी पण ते वेदसारने चिंता थवा लागी । अंते अन्य कोई पण उपाय न मळता गाममांथी भिक्षावृत्तिथी घृत गोळ आदि मांगी लावी ते भेगु करवा लाग्यो। आम केटलोक काळ पसार थये छते एक शुभ दिवसे तेनी पत्नीए पुत्रने जन्म आप्यो । तेओए ते बाळकनुं वेदविचक्षण एवं नाम पाड्यं । I For Private and Personal Use Only एकवार पुत्र जन्मने एक महिनो थता ज्यारे कामलक्ष्मी पाणी भरवा सरोवरे गई त्यारे नजीकनी पल्लिनी सेनाए आवीने गामने लूंट्युं । आ वातथी अजाण ते ब्राह्मणी Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 9 October-2018 I | पाणी भरी ते ज मार्गेथी पाछी फरती हती त्यारे नगर लूंटीने पाछा वळता सैनिकोए कामलक्ष्मी ब्राह्मणीने पकडी पोताना राजाने सोंपी । तेणीना अद्भुत लावण्यने जोई राजाए तेणीने पोतानी पट्टराणी बनावी । तेणी पण त्यां राजा साथे वैषयिक सुखोने भोगवती दिवसो पसार करवा लागी । जो के हजु पण तेणीना चित्तमांथी पोताना पूर्वपति वेदसार प्रत्येनो राग ओसर्यो न हतो। ऊंडे रहेला ते रागे एक दिवस तेणीना मनमां पोताना पूर्वपतिनी शोध करवानी उत्कंठा जगाडी। हृदयमां प्रच्छन्नपणे पतिनी शोधनुं निमित्त राखी तेणीए राजाने पोताना मननी शांति माटे दानशाळा खोलवा जणाव्यं। स्त्री प्रत्येना तीव्र रागथी राजाए तेणीना वचनने कबूली नगरनी समीपमां एक दानशाळा बनावडावी राणी अहीं बेसी गुप्तपणे पोताना पतिनी शोध करती गरीब ब्राह्मणादिकने दान करवा लागी । आ बाजु सेना वडे कामलक्ष्मनीनुं अपहरण कराता एक मासना ते बाळकना लालनपालननी संपूर्ण जवाबदारी तेना पिता वेदसार ब्राह्मण पर आवी पडी। घणुं कष्ट वेठीने जेम तेम दिवसो पसार करतो वेदसार ते बाळकने उछेरवा लाग्यो । हवे ते बाळक युवान थये छते एक दिवस तेने लईने पोताना गाममांथी निकळीने भ्रमण करतो वेदसार पण ते ज चोरोनी पल्लिमां आव्यो । अहीं राणी वडे सत्त्रागारमां ब्राह्मणोने अपाता भोजननी वात सांभळी ते पुत्र साथे भोजन माटे त्यां गयो । तेने जोता ज राणी कामलक्ष्मीए तेने ओळखी भोजन पछी पृच्छा करवाना बहाने एकांतमां बोलाव्यो । पत्नीने न ओळखी सकता वेदसारे ज्यारे राणी वडे पूछायेला बधा ज प्रश्नोना उत्तर आप्या त्यारे विश्वस्त थयेली राणीए ते ब्राह्मणने पोतानो तेनी पत्नी तरीकेनो साचो परिचय आपी तेनी साथे जवानी पोतानी तीव्र उत्कंठा व्यक्त करी, तेमज साथे जवानी पूर्व तैयारी रूपे थोडुं धन आपी तेने फरी अहीं लेवा आववा जणाव्यं । वेदसार पण पत्नीने पाछी मेळ्ववानी इच्छाथी धन सहित पुत्रने घरे मुकी फरी पाछो ते पल्लिमां आव्यो अने राणीए आपेला चौदशना संकेत मुजब संध्या समये आवीने चंडी देवीना मंदिरे रह्यो । तो बीजी बाजु राणी कामलक्ष्मी पण शिरोवेदनानुं बहानुं काढी राजाने साथे लईने संकेत मुजब ते ज चंडी देवीना मंदिरमां पूजा माटे आवी । अहीं पहेला राणीए चंडीदेवीनी पूजा करी अने पछी राजाए पूजा करी । हवे ज्यारे राजा ज्योति (दीवो) करवा माटे वांका वळ्या त्यारे राजानी ज तलवारथी राणी कामलक्ष्मीए राजानुं मस्तक छेदी नाख्युं अने पछी पोताना पूर्वपतिना नामनी बूमो पाडती, तेमने शोधती तेणी मंदिरना पाछळना भागे पहोंची। अहीं तेणीए दिवालने अडकीने बेठेला पोताना पूर्व पतिने सर्पदंशथी मृत्यु पामेला जोया । आम तीर अने नीर बन्नेथी भ्रष्ट थयेला कागडानी For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 श्रुतसागर अक्टुबर-२०१८ पेठे बन्ने पतिओथी भ्रष्ट थयेली तेणी राजसैनिकोना डरथी घोडा पर बेसी त्यांथी भागी विविध गामोमां परिभ्रमण करती कामपुरमां पहोंची अने त्यां एक वेश्याने घेर स्थिर थई फरी पाछी वैषयिक सुखोमां लुब्ध बनी। हवे वेदसारनो पुत्र वेदविचक्षण पण पिताना मृत्यु बाद भमतो भमतो आ ज नगरमां आवीने रह्यो। अहीं पोतानी माताने न जाणतो ते माता साथे ज भोगसुखो भोगववा लाग्यो । वेश्याने त्यां रहेली माता कामलक्ष्मी पण पुत्रने न ओळखती तेनामां विषयाशक्त बनी । तेवामां एक दिवस कामलक्ष्मीए वेदविचक्षणने तेना ग्रामादिकनो परिचय पूछ्यो। सरळमना वेदविचक्षणे तेणीनी आगळ पोताना पूर्वजीवननी बधी घटनाओ कही संभळावी। ते वात सांभळता ज पोतानी भोगाभिलाषा संतोषवा अजाणपणे पुत्र साथे बंधायेला संबंधोना विचारथी कामलक्ष्मीनुं मन उद्विग्न बन्यु । अंते आ पाप, प्रायश्चित्त करवा माटे आत्मघातने ज श्रेष्ठ विकल्प मानी तेणी वनमां गुप्तपणे चिता सळगावी तेना उपर बेठी। जो के हजुय तेना भोगावली कर्मो बाकी हता तेथी आत्मघात माटे सळगावेली ते चिता अचानक ज चढी आवेला नदीना पूरमां तणाइ गई। साथे साथे कामलक्ष्मी पण ते पाणीमां तणाई। पाणीमां डूबती तेणीने कोई गोवाळ द्वारा बचावाता ते उपकारी गोवाळमां वळी ते कामलक्ष्मी अनुरागवाळी थई। अहीं तेनी साथे भोगसुखो भोगवती तेणी दूध, दही, घी आदी वेचीने पोतानुं जीवन पसार करवा लागी। __एकवार दहींथी भरेलो घडो लई तेणी अन्य गोवाळण साथे नगर तरफ जती हती त्यारे अचानक ज मदमस्त बनेलो राजानो हाथी आलान स्थंभने उखेडी वन तरफ दोडतो आव्यो। राजादि पण कौतुकथी तेनी पाछळ आव्या। आ अफडातफडीमां संभ्रांत थयेली ते गोवाळणो पण ते मार्गथी पाछा जवा जेवी उतावळी थई के तेटलामां ज तेमना माथा परनो घडो सरकीने नीचे पडी जता फूटी गयो। एक गोवाळणी तो तेनो खाली घडो फुटेथी पण रडवा लागी ज्यारे कामलक्ष्मी पोतानो दहीं भरेला घडाने फूटेलो जोई हसती छती त्यां ज उभी रही । भवितव्यताए वेदविचक्षण पण त्यां आवी पहोंच्यो। पेली गोवाळण- हसवानुं कारण न समजाता तेणे गोवाळणने तेम करवानुं कारण पूछ्यु । परस्पर एक बीजाने न ओळखी शकता माता कामलक्ष्मीए विषयाधिनपणाथी पोताना वडे जीवनमा आचरायेला कार्य-अकार्यनी सघळी बीना पुत्रने कही संभळावीने छल्ले कडं के जेना बेय जन्मो बगड्या होय तेने वळी आ घडो फूटे शेर्नु रडवु आवे? ____ माता पासेथी सघळी वात जाणी वेदविचक्षणने पण पोताना अकार्य माटे धिक्कार थयो अने तेनुं मन पण मातानी जेम भोगसुखोथी विरक्त थयु । हवे आ अकार्यना For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 11 SHRUTSAGAR October-2018 प्रायश्चित्त माटे बन्नेने ज्यारे तीव्र तालावेली जागी त्यारे ज त्यां गुरु भगवंत पधार्या । तेमनी अमृतमय वाणी सांभळी प्रतिबोध पामी ते बन्ने दीक्षा लेवा तत्पर थया । दीक्षा बाद गुरुनी शीख हृदयमां धारण करता तप, संयमनुं पालन करता तेओ बन्ने मोक्षसुखना भोक्ता बन्या । उपरोक्त कथा ज प्रस्तुत कृतिमां पद्यरूपे वर्णवायेली अद्भुत रचना छे। कृतिकारनी नोंध मुजब मूळे ऋषभ देशना अने पक्खीसूत्र (टीका ? ) मांथी आ कृति उद्धृ करायेली छे। कथाघटकोने विविध रागोमां तेमज देशीओमां १० ढालरूपे अहीं गूंथी लेवामां आव्या छे। खास करी अहीं काव्यमां जोवा मळती कविनी शब्द पसंदगी, प्रासनी गोठवण, पदार्थ सांकळवानी कला खरेखर कविनी विद्वत्ता माटे मान उभुं करे छे। वळी कृतिना शब्दो रसाळ तो छे ज साथै सरळ पण छे। थोडा शब्दोनो जो आपणे अभ्यास करीए तो प्रासमां के छंद बंधारणमां शब्दने कई रीते प्रयोजी शकाय ते अहीं शिखवा मळशे । काव्यमां जोवा मळता उ, इ के ए ना स्पष्ट उच्चारणवाळा प्रयोगो (दा.त चउ, दूरइं, पालए) तेमज 'आ' कारनी जग्याए अनुस्वारना प्रयोगवाळी (दा.त तिहं-तिहां) लढण पण अहीं जोवा मलशे । प्रान्ते संपादनार्थ प्रस्तुत कृतिना हस्तप्रत फोटोकोपी आपवा बदल श्री अगरचंदजी नाहटा ज्ञानभंडारना व्यवस्थापक श्रीऋषभजी आदि सर्वेनो खूब खूब आभार । खास आवा कथा आलंबनोने पामी, समझी आपणे पण भोगसुखोने त्यागनारा बनीए ए ज शुभेच्छा । जयनिधान गणि कृत श्री कामलक्ष्मी चरित्र Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥८०॥ सरसति सरस सुहामणी, वांणी अमीय रसाल । जिनवर केरी मन धरी, सुखदायक सुविसाल कहिस्युं बंभण' नारिनउ, सुंदर चरीय' विचार । रिसह जिणेसर देसनां, पखीव सुअ [अ]नुसारि विषयारसि राची करी, जे विरचई' नर नारि । आणी निय मनि चेतनां, तरइं तिके' संसार १. ब्राह्मण, २. चरित्र, ३ पक्खिसूत्र, ४. विरत थाय, ५. ते, For Private and Personal Use Only 11211 ॥२॥ ॥३॥ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 12 ॥४॥ ॥५॥ श्रुतसागर अक्टुबर-२०१८ भावित-मंगल धर्म छइ, मनवंछित दातार । करतां बंभणिनी परइं, लहिए सिवगति सार ॥ढाळ-१॥ थुलिभद्रना एकवीसा री ॥ इणि भरतइं रे, नयर वसंत छइ भलउ, गढ मंदिर रे, चेई वन गुणिजन-निलउ। राजा तिहं रे, जितशत्रु राजइ सुंदरू, न्यांइ-वच्छल रे, सरलाचारी गुणकरू । गुणकरू उत्तम नयरि तिहं कणि वसइ बंभण एकु ए, धनहींन नांमइं पुव्व करमइं वेदसार विवेकुए। तसु कामलखमी नारि सुंदरि रूप-गुण रति जीपए', परपुरुष वयण न हिइ लागइ लेपि गयण न छीपए° सुकुलीणी रे, मगनयणां१ गयगांमिणी, ससिवयणी रे, जनमन-नयन-सुहामणी। अन२ दिवसइ रे, गरभवती नारी हूई, बंभण मनि रे, बहुली चिंता तब थई। तब थई चिंता केम करिस्युं द्रविण ३ विणु निरवाह ए, कणवृत्ति५ करतउ रयणि दिवसई मनइं एह ऊमाह'६ ए। सुई-कर्म करिवा घीउ गुल तिम वेसवार ति मेलए१८, चउहटइं हाटइं२ घरइं जाची वस्तु सहु ए भेल ए२२ ॥६॥ इम करतां रे, पूरे मासे जनमीयउ, तिणि बंभणि रे, पुत्र भलउ मन हरखियउ, नाम दीयउरे, पियरइं२३ वेदविचक्षणू नर नारी रे, हरख्यां देखि सुलक्षणू। लक्षणइं सहिय सुजात देखी माइं मोहइं पालए, प्रिय नारि बेऊ सयल मननी चींत दूरइं टालए। इक मास वउल्या पछइ जे हुइ ते निसुणउ भवियणां, कृतकर्म आगलि कोई न छूटइ चेति चेति विचक्षणा ॥७॥ इक दीहइं२५ रे, कलस लेइ सरवरि गई, आणेवारे, जल नारी साथइं थई, तदनंतरि रे, पल्लीपति सेनां मिली,आवीनइंरे, पुरवरमांहे ते भिली। पुर भेलि“ लूसी चलिय पाछी सेन तिणि खिणि बंभणी, ६. चैत्य, ७. त्यां, ८. जीते, ९.लेप वडे, १०.रंगाय, ११. मृग जेवा लोचनवाळी, १२. अन्य, १३. पैसा, १४. निभाव, १५. भिक्षाचर्या, १६. आतुरता, १७. सूतिकर्म, १८. मोकले, १९. चौटामां,चोकमां, २०. दुकानमां, २१. याचना करी, २२. भेगुं करवू, २३. माता-पिताए, २४. वित्या बाद, २५. दिवसे, २६. लाववा, २७. भळी (प्रवेशी गई), २८. भांगी, २९. लूंटी For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 13 ॥८॥ ॥९॥ SHRUTSAGAR October-2018 पाइक्कि पकणि३१ ग्रही नारी रूपइं अदभूत पदमिनी। रोवतां तेणई कस प्रहारइं करी आगलि चल्लए३३, सुभ असुभ कृतक्रम भोगव्या विणुं परीणाम न पिल्लए५ साइ२६ आणी रे, पाइकि तिणि निय सामिनइ, प्रणमीनइं रे, दीधी हरषित निय मनइं, ते देखी रे, पल्लीपति राजा कहइ, मुझ पोतइ रे, पूरब पुन्यसु गहगहइ। गहगहइ पूरब पुन्य मोरइ नारि जे आवी इसी, अपछर समाणी मनइं जाणी सइरि२९ रोम-समुल्लसी । अभिषेक करिनइं घरणि थापी हार पहरि उदार ए, बंभणी हरखी अंगि व(वि)रचइ नव-नवां सिंगारु ए ॥भास ॥ श्रीजिनवदन निवासइंनी-ए ढाल ॥२॥ पटरांणी हूइ तबई, भोगवइ भोग अपारा रे। राजा साथइ अनुदिनइं४२, विषयारसि चित्त धार्या रे विषयसुखई मन मोहीयउ, सील अनइं कुल हार्या रे। पुत्र अनइं तिम प्रिय तणां, सब ही दुक्ख वि[सा]र्या रे विषय...[आंकणी]॥११॥ तउ पणि३ बंभण ऊपरइं, राग धरइ मनमांहइं रे। परवसि कछुअ न कहि सक्कइ४, नयणे देखण" चाहइ रे विषय...॥१२॥ इक दिनि राजा वीनव्यउ६, बे कर जोडी भावइं रे। दानसाल जउ मंडीए, तउ मुझ मनई सुहावइ रे विषय... ॥१३॥ राइ करावी तब पीछइ, नयर समीपि विसेषइं रे । दानसाल अति विस्तरइं, भोजन हुइ अणलेखई"रे, विषय... ॥१४॥ दिन प्रति पडहउ वाजई, सहुए लोक सुणावइरे। दानसाल आवी करी, जीमिवउ जे मनि भावइ रे विषय... ॥१५॥ कृपण बणीमग बंभणा, पंथीनइं परदेसी रे। बहु परवारइ'२ परवरी, राणी तिहं कणि बइसी रे विषय... ॥१६॥ ॥१०॥ ३०. सुभटे, ३१.?, ३२. चाबुक, ३३. चलावी, ३४. कर्म, ३५ ?, ३६. पकडी, ३७. पोताना, ३८. मारा, ३९. शरीरथी, ४०. विकसित रोमवाळी, ४१. त्यारे, ४२. रोज, ४३. तो पण, ४४. शके, ४५. जोवा, ४६. विनंती करी, ४७. खोलावीये, ४८. हिसाब वगरनु, ४९. संभळावयूँ, ५०. जमवू, ५१ भिखारी, ५२. परिवार साथे For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर 14 दान दिइ म दिन प्रती, बंभण जाति विसेषइं रे । खीर खंड धृत घेवरइं३, भाव धरी सा पोषई रे बंभण प्रियमुख पेखिवा', कीया एह उपाया ए । इम करती सा सुखि रहइ, राय तणइ मनि भाया रे राणीनउ जसु विस्तर्यउ, देसि अनई परदेसई रे । वेदसार बंभण तणी, वात कहुं लवलेस " रे वेदसार तिणि बंभणइं, कष्टइं पुत्र जीवाय रे । चतुर सु वेदविचक्षणू, बीजी-वय"" जब आयउ रे वेदसार लेई पुत्रनइं, पालि“ मांहे ते आवइ रे । सत्रूकार" सुणी करी, भोजनस्युं मन लावइ° रे ५६ .६० बंभण वात आमूलथी कही, अनइं कहइ सुणि मात रे । दानसाला सुणी आवीआ, भोजन काजि हुओ सात" रे कामलखमी कहइ तुझ तणी, बंभाणी नारि किहं साइ रे । निरति अछइ अथवा नही, कहि कहि साचु मुझ लाइ रे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अक्टुबर-२०१८ राणीय सुणओ बंभण कहइ, जाणुं नही हुं कांइ सार रे । कामलखमी कहइ बंभणा, हुं अछु" तुह्म (म्ह) तणी नारि रे विषय.........॥१७॥ For Private and Personal Use Only विषय......॥१८॥ विषय......॥१९॥ विषय... ॥ बंधवा गज थकी उतरु - ए ढाल ।।३॥ कामलखमी राणी जिहं अछइ, आवियउ तिहं कणि सोइ रे । कामलखमी राणी ओलखिउ, प्रियतम बंभण होइ रे मोह जागिउ हिए" नारिनई, निरखिय प्रिय अनइं पुत्र रे । ६४ नयनकमल विकसित हुआ, पुलकित हुआ तसु गरे मोह...[ आंकणी ] || २३ || धन धन जीविय मुझ तणउ, धन धन आजु ए दीह रे । भोयण सरस कारावीया, पूछिवा तसु भणी हरे मोह...।।२४।। 112011 विषय.........॥२१॥ विषय... अवसर देखी एकंतलो", पूछइ ए बंभण वात रे । कहिन" मुझ किहां थकी आविया, कारण कविणि कुण जाति रे मोह...॥२५॥ मोह.......।।२६। ॥२२॥ मोह...।।२७।। मोह.......।।२८।। ५३. घेबर वडे, ५४. जोवा, ५५. थोडी, ५६. जीवाड्यु, ५७. यौवन पामता, ५८. पल्ली, ५९. दानशाळा, ६०. लावे, ६१. ओळख्यो, ६२. हृदयमां, ६३. गात्र, ६४. आजनो, ६५. एकांतवाळो, ६६. कहोने, ६७. शातावाळो, ६८. छं Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 15 October-2018 मोह... ॥२९॥ मोह... ॥३०॥ ॥३२॥ ॥३३॥ ॥३४॥ SHRUTSAGAR काई हसई९ मोरी सामिणी, तुम्हि अछउ राउनी राणि रे। परमदातार गुणि आगली, कलपलता समी जांणि रे बंभाणी नारि जे मुझ तणी, रूपिहिई तुम्ह अनुसारि रे। तउ पणि अम्ह कुलें ऊपनी, जाचिनइ करइ आहार रे ॥रामचंद कइ वागि-ए ढाल ॥४॥ सपथ करी ते नारी, घर-संकेत कहीरी। वेदसार मनमांहि, हरखित हुओ सहीरी कंता तुझस्युं राग, मुझ मन नितइं वसइंरी। आजु अम्हारउ भाग २, नारी कहइ तिमं(म)हरी७३ आइसुॐ हुं तुझ साथि, अवसर पेखि करीरी। द्रव्य लेई घरि जाहि, साथइं पुत्र धरीरी मूंकी निय घरि पुत्र, आइजे मुज्झ भणीरी। लेइवा प्रियतम वेगि, मोरइ तुहि जि धणीरी द्रव्य लेई तसु पासि, तिम हीं सीख सुणीरी। चलियउ बंभण तेह, नयर वसंत भणीरी अनुक्रमि निय घरि आइ, लिय विश्राम तिणइंरी। पुत्र भणी देइ सीख, दिन संकेत गिणइरी पल्लीपति राय नयरि, बीजी वार गयउरी। नारी लेवा काजि, बंभण सज्ज थयउरी दानसाल ते जाइ, मिलीयउ नारि प्रतइंरी। भोयण करि एकंत, मंत्रण तेह मतइंरी चउदसि केरी राति, काली संझ समइंरी। प्रियात]म चंडी५ गेहि, जाइंवा मन्न रमइंरी ॥३५॥ ॥३६॥ ॥३७॥ ॥३८॥ ॥३९॥ ॥४०॥ ६९. मश्करी करो छो, ७०. रूपथी, ७१. प्रतिज्ञा, शपथ, ७२. नशीब, ७३. तेम, ७४. आवीश, ७५. जा, ७६. आवजे, ७७. लेवा, ७८. चाल्यो, ७९. तेणे, ८०. गणे छे, ८१. गयो, ८२. थयो, ८३. विचारवं, मानवं, ८४. समये, ८५. चंडी देवी, ८६. जवा माटे For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥४१॥ ॥४२॥ श्रुतसागर अक्टुबर-२०१८ तूं पुणि जइ तसु पूठि, बइसे चित्त खरइंरी। पूजानि मिसि सामि, आइसुं देव-घरइंरी ॥सो सामी अरहंत आयो जगगुरु वीर-ए ढाल ॥५॥ बंभण वचन ति मानीयोजी, नारि तणो संकेत। बइंठो जाइ ते तिमइंजी, मोह तणो ए हेतु मोहनी मोहि रही सब लोइं, विषय विषम विष पूरियाजी, चेतइ कोइक जोइं मोहनी...[आंकणी] ॥४३॥ सांझ समइं चोदसि दिनिजी, रांणी करीय पाखंड। मस्तकि पीड हुई घणूंजी, दरि किई१० ते चंडि मोहनी...॥४४॥ राजा आगलि इंम कहीजी, बंभणि(णी) वलीय भणंत। सामि चलहु जइ पूजिएजी, चंडी देव महंत मोहनी... ॥४५॥ नेवज२ कारिय३ तिणि खिणइंजी, राजा रांणी लेय। अश्व चडीनइं चालियाजी, देवघरि पहुता तेय मोहनी.. ॥४६॥ अश्व थकी ते ऊत्तरीजी, मूल गभारइं जाई। अंजलि सिरि जोडी करीजी, प्रणमइं राय मन भाइं९६ मोहनी...॥४७॥ नारि भणी रायई दियोजी, आपणउ खडग उदार । पूज करी [जोती] करीजी, राजाइं जिण वार मोहनी...॥४८॥ निरदय बंभणि जे कीयोजी, निसुणो तेह विचार। राजा मस्तक छेदयोजी, खडगइ तीखी धार मोहनी...॥४९॥ अबलायइं तिणि जे कीयोजी, सबल न करइ कोई। काज अकाज न कांई गिणिउजी, पाप न गिणियो लोइं मोहनी.. ॥५०॥ बंभण निज प्रिय तेडीयो जी, आवो वहिला सामि। बोलाविउ बोलई नहींजी, मनई विमासिउ ताम मोहनी... ॥५१॥ मुझ संकेत न मानीयोजी, राजानइं जाय जोइं। हिवइं किस्यु मई कीजस्यइजी, चिंतातुर मनि होइं मोहन... ॥५२॥ ८७. बहाने, ८८. तेम, ८९. चौदसना, ९०. करशे, ९१. चालो, ९२. नैवेद्य, ९३. करावी, ९४. क्षणे, ९५. लईने, ९६. गमी, ९७. ज्योति, ९८. बोलाव्यो, ९९. विचारवं, १००. कराशे For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir October-2018 ॥५६॥ SHRUTSAGAR पेखत पेखत ते गईजी, पाछिल भूमि प्रवेसि। बइठो दीठो बंभणूजी, वचन कहइं प्रांणेस मोहन... ॥५३॥ तो पणि ते बोलई नहीजी, नारी जई तसु पासि। कर फरसइं१०१ संभालियोजी, देखी हुईय निरास मोहन..॥५४॥ सर्पि डस्यो ते बंभणूजी, जाण्यो तब तिणि नारि । हय उपरि बइंसी करीजी, हाथि लेइं तरवारि१०२ मोहन... ॥५५॥ ॥चेला विषय न गंजीए-ए ढाल ॥६॥ निज हाथि मारी करी रे,राजानइं भरतार । सर्पि डस्यो जांणी करी रे, तो ही कठिन अपारो रि(रे?)* चेतन नहु धरई नयणे नीर न चेतो रि, संवर नवि करई [आंकणी] एकलडी परदेशनइं रे, चाली छंडी पालि। राति अंधारी भामिनी रे, नारी दिसि विकरालो रि चेतन... ॥५७॥ गांम नगर पुर जोवती रे, कामपुरई संपत्त । माली घरि जई ऊतरी रे, सुख मानिउ तसु चीतो रि चेतन... ॥५८॥ चोक अनइं त्रिक०३ चश्चरू१०४ रे, पोलि०५ अनइं प्राकार। वीथी१०७ विपणि१०८ सोहामणा रे, फिर दीठा सहकारो०९ रि चेतन... ॥५९॥ नाचंती इक थानकइं रे, वेस्या देखी जांम। लाख द्रव्यनी मूंदडी रे, दीधी दांनइं तामोरि चेतन...॥६०॥ घरि लेई वेस्या गई रे, बंभणनारी साइं। तिणि वयणे वेश्या हूई रे, कर[म] तणइं अनुभाए(वइं) रि चेतन... ॥६१॥ ॥ढाल-[७]।। हुं बलिहारी यादवा ॥ स्नान करीनई दिन प्रती, पहिरइं अनुपम नवला चीर कि। सोइ(व)नमइं सुंदर घडिउ, मस्तकि तिलक जडित तसु हीर कि ॥६२॥ मानवि(वी) रूपी सुरंगना ११, निरूपम सोहइं जसु तन तेज कि। गरवी१२ धन मद जोवनइ, करती सोल सिंगार सुहेज कि मानवि... ॥६३॥ १०१. स्पर्शथी, १०२. तलवार , १०३. त्रण रस्ता भेगा थाय ते स्थान, १०४. चोगान, १०५. पोळ, १०६. गढ, १०७. मार्ग, शेरी, १०८. दुकान, १०९. आंबाना वृक्षो, ११०. त्यारे, १११.देवी, ११२. गर्ववाळी For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अक्टुबर-२०१८ नयने कज्जल कुंडलू१३, सोवनमइं बिहुँकांने जाणि कि। निगरिणि १४ हार थनि(?) (हा)सलो, नासा मुत्तिय १५ निरतइं११६ मानि किमानवि... ॥६४॥ कुश(सु)म हार कंठई ठविउ, रणझण नेउर १७ पाइं सोहंति कि। कटि-तटि पहिरी मेखला १८, कांमिय-जन-मृग-मन मोहंति कि मानवि... ॥६५॥ धरम-मरम जांणइं नही, मदमाती रहती दिन राति कि। मनवंछित सुख भोगवइं, लोपीइ निय कुल जातिरू११९ लाज कि मानवि... ॥६६॥ वेदविचक्षण पुत्र जे, आयो तिणि ही नयर मझारि कि। वसतो तिहं कणि सुखि रहइं, कांइ न जाणइं नीसार कि मानवि... ॥६७॥ विषयारसे रातो१२० रहइं, माइं१२१ साथइं अनुदिन मन लाइ कि। माइं न जाणइ पुत्र मुझ, पुत्र न जाणइं मोरी माइं कि मानवि... ॥६८॥ विषम विषयरसि मोहिया, हा ! हा ! पेखो कवण अकाज कि। इंद्रिय दुरजय जीपतां, जीव न गिणइ पापहं राजि कि मानवि...॥६९॥ बहु काल वोलिउ जिसइं, इंम रहितां एक दि तिणि माइ कि। वेदविचक्षण पूछीउ, कहिनइं तुझ कुण जातिरू ताय२२ कि मानवि... ॥७०॥ नयरि कवणि तुम्हि जनमीया, कवण अछइं तुझ माइडी१२३ नाम कि। मुझ आगलि आमूलथी, वात कहो तुम्हि सहू ए सामि कि मानवि... ॥ ७१।। वेदविचक्षण मूलथी, वात कही निय सरल सहाव कि। माइं सुणीनइं पुत्रनइं, कहियो कांइ आपण भाव कि मांनवि... ॥७२॥ ॥चंद सुहवा सुणि चंदला-ए ढाल ॥८॥ चेती मनि तव बंभणी, मोहनिद्रा-भर१२४ छंडी रे। विषयारसथी ऊभगी२५, मनि वइंरागसुं मंडी१२६ रे ॥७३॥ हियइ विचारी बंभणी, वनमांहि चिता करावई रे। बइंठी जाई ऊपरइं, चिहुं दिशि अगनि लगावइं रे चेती... ॥७४॥ विश्वानर'२७ जब परजलिउ, हरखी सा तव नारी रे। पाप बहुल मल धोए(य)वा, जाणिउ१२८ एह जि वारी रे चेती... ॥७५॥ ११३. कुंडळ, ११४. ?, ११५. मोतीनी, ११६. निश्चे, ११७. झांझर, ११८. कंदोरो, ११९. जातीनी, १२०. आसक्त, १२१. मातामां, १२२. पिता, १२३. माता, १२४. घोर मोहनिद्रा, १२५. निर्वेद पामी १२६. युक्त थई, १२७. अग्नि, १२८. जाण्यो For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 19 पूर नदीनो आवीयो, चिह १२९ तिणि सबलि १३० वहाई १३१ रे । बंभणि नारी डूबती, जई गोवालि गहाई १३२ रे काढी निय घरि ले१३३ गयो, मानिउ तसु उपगार रे । घरण हुई घरि तेहनइं, प्रगटिउ विषयविकारो रे विषयविकारसु बंभणी, निसुणी चरिय विचार रे । विषयन जे जगि राचइं नही, धन धन ते नर नारी रे राची विषयारसि रहइं, अजीय१३४ न चेतइं बाली रे । दूध दही घीउ वेचई, नयर गई गोवाली रे T रंगई रमती सा रहइं, वच्छर १३५ 'बहुय गमाया१३६' दान शीयल न भावना, विणु तप पोषइ काया रे दहीय कलस लेइ सिरू वहइ, अन दिनि बंभणे (णी) नारी रे। चाली नयर भणी मिली, गूजरस्युं१३७ परिवारी रे ।।ढाल-संधिनी॥॥[९]॥ पंथइं रामति१३८ सहूइं करती, वात विनोद रंगि हसती । इणि अवसरि राजानो गयवर, साते ठांमे छइ जसु मदभर त्रोडी बंधण नयरि चीरंतो १३९, आयो वनमांहि रमलि१४० करंतो । लारइं१४९ सुभटनइं पीलवांण १४२, आयो केडई ४३ राय सुजांण देखी गूजरि हूई भयभ्रंति, पाछी फिरि दिसि एक लियंति । इणि अवसरि बीजी इक नारी, ठालि१४४ घडि सिरूवरि हुई भारी मरण समो भय अवर न कोई, वात विमासीनई इम जोई। बंभणि(णी) दधिघड साथइ भागी, ठालो तसु घड गयुं ते भागी इणि अवसरि ते वेदविचक्षण, आविउ हाथी लार सुलक्षण । ठाला घडानी नारि रूवंती, दीठी तिणि निय माइ हसंती October-2018 For Private and Personal Use Only चेती... चेती.... चेती... चेती... ॥७६॥ अणजांणत माइं पूछि तिणि खिणि, कांई हसइं तूं मुझ कहि कामिणि । कुंभ दहीनो भागो तो पणि, तुझ किम अ (आ) वई हासी भामिणि ॥७७॥ 119211 ॥७९॥ चेती....... ॥८०॥ चेती.........॥८१॥ ॥८२॥ ॥८३॥ 112811 ॥८५॥ ॥८६॥ ॥८७॥ १२९. चिता, १३०. भारे, १३१. वहावी, १३२. ग्रहण कराई, १३३. लई, १३४. हजी पण, १३५. वर्षो, १३६. गुमाव्या, १३७. गोवाळणीओनी साथे, १३८. रमत, १३९. ( नगरमांथी) मार्ग काढतो, १४०. तूफान, १४१. पाछळ, १४२. पहेलवान (?), १४३. पाछळ, १४४ १ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 20 ॥८९॥ ॥९०॥ श्रुतसागर अक्टुबर-२०१८ मूलथकी निय चरिय सुमंडी१४५, विषय तणी (म)ति सह ए छंडी। आपणपो१४६ तिणि नारि प्रकासिउ१४७, सह ए आगलि निरतो१४८ भास्यो१४९ ॥८८॥ दधिघड काजइं हिव स्युं रोऊ, हा ! हा ! जनम गमाया दोऊं। वात सुणी हुआ चकित लोया ५०, इण वातई किम होइं पमोया ५१ ॥धन धन हो जिनवर वाणी-ए ढाल॥१०॥ जाणी निय बंभणि(णी) पुत्तो, पुत्रि जाणिउ ए मुझ मातो। विषयारसथी ते विरता५२, निय निय घरि आइं पहूता धन धन ए बंभणि नारी, जिणि आपण आतम तारी। पहिलो नर जनम सुहारी, दुः(कृ)त करि जे क्रिय भारी धन... ॥११॥ कामलखमी भावन भावई, वइराग घणुं रि(रे?) सुहावइं। विषयारस हियडइं नावइं, पापकर्मथकी पछतावइं१५३ धन... ॥९२॥ ते वेदविचक्षण चीतइं, निरवेद'५४ हुवई जिणि हेतइं। हा! कवण अकारिज कीनो, माइंस्यु विषयारसि लीणो धन... ॥९३॥ कुल बंभण हुओ मुझ जम्म, अणजाणत करिउ कुकर्म। चंडाल न करइ जु काजो५५, मइं कीधो तेह अकाजो हिव कवण उपाय करीजइं, जिणे करतां दुःकृत छीजइं। माता अरू पुत्र विचारइं, गुरु आया तदा तिणि नयरइं धन... ॥१५॥ गुरुचरण जईनइं वंदई, सिरि अजंलि करि मनछंदइ१५६ । बइंठा जब उचित सुठामइं, गुरु धर्म कहइं सुखकांमइं ते संभलि श्रीगुरुवाणी, प्रतिबूधा उत्तम प्रांणी। गुरु पासइं लीघी दीख, मनि धारी गुरुनी शीख धन... ॥९७।।* तप संजम उग्र विहार, भवियण जण केरु निस्तार। सिवसौधइ१५७ जाई बइठा, धन धन ते जिणे ए दीठा धन... ॥९९॥ सुणिनई नर नारि चरित्र, सुत माइं तणो रे विचित्र। पाप करम करी पछतावइं, सिवपुरनां ते सुख पावइं धन... ॥१०॥ १४५. सारी रीते शरु करी, १४६. पोतानी जात (आपण पणुं), १४७. का, १४८. संपूर्ण, १४९. कह्यो, १५०. लोको, १५१. प्रमोदित थाय, १५२. विरक्त थया, १५३. पश्चाताप करे छे, १५४. निर्वेद, १५५. कार्य, १५६. मनना आनंदपूर्वक, १५७. मोक्ष रूपी घरे धन... ॥९४|| धन... ॥९६॥ For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir October-2018 SHRUTSAGAR निधिसायररसससि(१६७८) संखइं, संवच्छरि गिणती लेखइं। सिवपुरीयइं पंचमि जाणी, पोह१५८ मासइं ऊलट आणी। धन... ॥१०१।. सिरि संति जिणिंद पसाई, खरतरगच्छ सब हि सुहाई। जिनमाणिकसूरि सुपाटई, गुरु सोहए मुणिवर थाटइं१५९ धन... ॥१०२॥ दिल्लीपति भूपति मांनइं, साहिब अकबर सहु कोई जाणइं। वादी जिणि अरियण जीता, पुर नयरि देसि वदीता ६० धन... ॥१०३॥ जिणसासणमांहे दीवो, जिनचंदसूरि चिरंजीवो। तसु पायकमल प्रणमीजइ, मनवंछित जिम सहु सीझइ ॥१०५॥ वाचक श्री रायचंद सीसई, जयनिधान गणी सुभ दीसइं। वाचई जे निसुणइं भावई, मणचिंतिय सब सुख पावई ॥ इति श्रीकामलक्ष्मीचरित्रं सम्पूर्ण:(म्) ॥छ। कल्याणमस्तु॥ श्रीरस्तु ॥ छः॥ श्रीः॥छ॥ ॥१०६॥ श्रुतसागर के इस अंक के माध्यम से प. पू. गुरुभगवन्तों तथा अप्रकाशित कृतियों के ऊपर संशोधन, सम्पादन करनेवाले सभी विद्वानों से निवेदन है कि आप जिस अप्रकाशित कृति का संशोधन, सम्पादन कर रहे हैं अथवा किसी महत्त्वपूर्ण कृति का नवसर्जन कर रहे हैं, तो कृपया उसकी सूचना हमें भिजवाएँ, जिसे हम अपने अंक के माध्यम से अन्य विद्वानों तक पहुँचाने का प्रयत्न करेंगे, जिससे समाज को यह ज्ञात हो सके कि किस कृति का सम्पादनकार्य कौन से विद्वान कर रहे हैं? इस तरह अन्य विद्वानों के श्रम व समय की बचत होगी और उस समय का उपयोग वे अन्य महत्त्वपूर्ण कृतियों के सम्पादन में कर सकेंगे. निवेदक सम्पादक (श्रुतसागर) मा १५८. पोष, १५९. समुहथी, १६०. प्रसिद्ध, For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 22 पाठक पुण्यसागर कृत श्री जिन ३५ वचनातिशय स्तवन अक्टुबर-२०१८ सुकुमार शिवाजीराव जगताप प्रस्तावना : आजतक जितने भी जीव मुक्तिमार्ग को प्राप्त हुए हैं, हो रहे हैं व होंगे, उन सभी के पीछे प्रबल कारण एवं प्रकृष्ट उपकार जिनवाणी का है. 'सवि जीव करुं शासन रसी जगत के समस्त जीवों के कल्याण की उत्कृष्ट भावना के फलस्वरूप आत्मा सर्वदोष मुक्त, सर्वगुण संपन्न तीर्थंकरत्व को प्राप्त करती है और वे ३४ अतिशय एवं ३५ वचनातिशय से युक्त होते हैं. उन ३५ वचनातिशयों की बात प्रस्तुत कृति में की गई है। ‘अतिशय' शब्द का अर्थ; बृहद् संस्कृत हिंदी शब्द कोष - भाग १, पृ. २५ पर- १. ‘अतिशय (वि॰) आधिक्य, अधिकता, प्रमुखता, उत्कृष्टता {सुदर्शनोदय पृ० ८२}; २. अतिशय (वि०) श्रेष्ठ, प्रमुखता, प्रशंसा युक्त {जयोदय महाकाव्यम् वृत्ति २२ / १६} में प्राप्त होता है । ‘शब्दरत्नमहोदधिः' में भी अतिशय का अर्थ 'अतिशय (पुं०) [ अति शीङ् अच् ] अधिकपणुं, अतिरेक, प्रमुखता, उत्कृष्टता' इस प्रकार स्पष्ट किया है । ‘अतिशय’ के सन्दर्भ में जैनागम की परिभाषा की दृष्टि से स्वीकृत अर्थ 'उत्कृष्ट, श्रेष्ठ अथवा अलौकिक' ज्ञात होता है । जो सर्वसामान्य मनुष्य, देवतादि गणों के लिए भी अप्राप्य अथवा विशेष हो, ऐसे लक्षणों को 'अतिशय’ कह सकते हैं । अतिशय युक्त अर्हंत भगवंत दिव्य देशना समवसरण में बैठकर देते हैं । उसमें करोड़ों देवी-देवता, मनुष्य एवं तिर्यंचों का समावेश हो जाता है । और वे परस्पर संकोच एवं विघ्नरहित तथा सुख एवं आनंद के साथ बैठकर देशना सुनते हैं । For Private and Personal Use Only पैंतीस गुणों से युक्त, सात नय और सात सौ भांगों वाली सप्तभंगी तथा दिव्य संगीतमय, अर्धमागधी (प्राकृत) भाषा में कही गई जिनवाणी एक योजन विस्तार में उपस्थित सर्व जीवों को एक ही समान ध्वनि में श्रोतव्य होती है । देवता दिव्य भाषा में, मनुष्य अपनी मानुषी भाषा में और विविध प्रकार के तिर्यंच जीव अपनी अपनी प्राकृतिक अर्थात् स्वाभाविक भाषा में इस अमृतरूपी जिनवाणी को ग्रहण करके तृप्त होकर आत्मकल्याण के पथ पर स्वयं को स्थापित कर शिवसुख को प्राप्त करते हैं । १. शब्दरत्नमहोदधिः - भाग १, श्री विजयनीतिसूरिश्वरजी जैन पुस्तकालय ट्रस्ट, अहमदाबाद; पृ.४१ २. समवसरणं (नपुं॰) अर्हदुपाश्रय, अर्हत् सभामण्डप (जयोदय महाकाव्यम् २६/५७}; अरहंत की दिव्य देशना का स्थल । महाकवि आ. ज्ञान सागर बृहद् संस्कृत हिंदी शब्द कोष - भाग ३, प्रो. उदयचन्द्र जैन, पृ. ११४८ । Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 23 October-2018 यह कृति प्राचीन मारुगुर्जर भाषा में लिखी गई है। परंतु इसमें अपभ्रंश भाषा का भी कुछ प्रभाव परिलक्षित होता है। सुगमता हेतु यहाँ ३५ गुणों का संक्षिप्त वर्णन किया गया है। मूल पाठ में विद्यमान अतिशय नामों को Bold किया गया है। प्रत में प्रतिलेखक के द्वारा गुण नामोल्लेख के साथ १ से ३५ तक क्रमांक भी दिये गए हैं। उसी क्रम में यहाँ भी गुणों का संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है, जिससे वाचक सुगमता से अनुसंधान कर अर्थ को ग्रहण कर सकें । प्रस्तुत कृति के गाथाक्रमांक १९ में २७वें गुण के लिए अर्थ तो सही दिया है, परंतु प्रतिलेखक ने गुण के लिए शब्द प्रयोग 'अद्भुत' की जगह ‘अद्भुत' लिखा है। ऐसा अन्य संपादित समवायांग की टीकाओं में भी मिलता है। लेकिन जंबूविजयजी म.सा. के द्वारा संपादित समवायांग टीका में गुण संगति हेतु उचित शब्द प्रयोग करते हुए 'अद्भुतत्वम्' दिया है। ३५ अतिशयों का संक्षिप्त वर्णन शब्दाश्रयी ७ वचनातिशय १. संस्कारवत्- संस्कृतादि लक्षणों से युक्त । २. उदात्त - शब्दों में उच्च वृत्तित्व । ३. उपचारोपेत- अग्राम्य वचन । (ग्रामीण भाषा रहित) ४. मेघगम्भीरघोषत्वम्- मेघ सदृश गम्भीर घोष वाली । ५. अनुनादित्वं (प्रतिनादता) - प्रतिध्वनि उत्पन्न करने वाली ६. दक्षिणत्वम्- सरलता युक्त । ७. उपनीतरागत्वम्- मालकोश आदि राग, संगीत के ७ ग्राम, २१ मूर्च्छना संयुक्त । अर्थाश्रयी २८ अतिशय ८. महार्थता - अल्प शब्दों में अत्यधिक अभिधेय कहने योग्य अर्थों का समावेश । ९. अव्याहतत्वम्- पूर्वापर वाक्यों में अविरोधी वचन । १०. शिष्टत्वम्- अभिमत सिद्धान्तोक्त वचन अथवा शिष्ट-वचन युक्त । ११. असन्दिग्धत्वं- सन्देह रहित । १२. अपहृताऽन्योत्तरत्वम् - पुनः स्पष्टता न करनी पड़े व अन्य के दूषणों को प्रगट न करनेवाले वचन । For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 24 श्रुतसागर अक्टुबर-२०१८ १३. हृदयङ्गमता- मनोहर, हृदय में ग्रहण करने योग्य अतिशय सुन्दर अर्थात् हृदयस्पर्शी वचन। १४. देशकालाव्यतीतत्वं- देश-काल प्रसंगोचित वचन। १५. तत्त्वनिष्ठता- विवक्षित वस्तु स्वरूपानुसारी वचन । १६. अप्रकीर्णप्रसृतत्वम्- सुसम्बन्ध का विस्तार अथवा असम्बन्ध अधिकार अतिविस्तार से रहित। १७. मिथः साकाङ्क्षता (अन्योन्यप्रगृहीतत्वं)- परस्पर पद-वाक्यों की सापेक्षता युक्त। १८. आभिजातत्वम्- वक्ता एवं प्रतिपाद्यभाव के अनुरूप वचन । १९. अतिस्निग्धमधुरत्वम्- स्नेह एवं माधुर्यपूर्ण वचन। २०. अपरमर्मवेधिता- दूसरों के मर्म को प्रकट न करने वाली। २१. धर्मार्थप्रतिबद्धता- धर्म तथा अर्थ से संयुक्त सम्बन्ध वाली। २२. औदार्यम्- अभिधेय वस्तुओं की तुच्छता से रहित। २३. अस्वश्लाघाऽन्यनिन्दिता- स्व प्रशंसा एवं पर निन्दा रहित । २४. प्रशस्यता- प्रशंसा के पात्र । २५. अनपनीतत्वं- कारक, काल, वचन, लिङ्ग इत्यादि के व्याकरण सम्बन्धी दोषों से मुक्त वचन। २६. उत्पादिताच्छिन्नकौतूहलत्वं- श्रोतागण में अविच्छिन्न कुतूहल उत्पन्न करने वाली। २७. अद्रुतत्वम्- अतिशीघ्रता रहित। २८. अनतिविलम्बितत्व- अति विलम्ब से रहित। २९. विभ्रमविक्षेपकिलिकिच्चितादिविमुक्तत्वं- विभ्रम-विक्षेप-किलिकिच्चितादि दोष रहित. (विभ्रम- वक्ता के मन की भ्रान्ति, विक्षेप- वक्ता की अभिधेय अर्थ के प्रति अनासक्ति, किलिकिंचित्- दोष, भय, अभिलाषा आदि मानसिक भावों का प्रदर्शन आदि दोषरहित वचन)। ३०. अनेकजातिसंश्रयाद्वैचित्यम्- वर्णनीय वस्तु आश्रयी अनेक प्रकार की विचित्रताओं वाली। ३१. आहितविशेषत्वं- वचनान्तर की अपेक्षा से स्थापित विशिष्टता वाली। ३२. साकारत्वं- विछिन्न वर्ण, पद, और वाक्य के द्वारा आकार प्राप्त वचन । ३३. सत्त्वपरिगृहीतत्वम्- साहस पूर्ण वचन) For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra SHRUTSAGAR www.kobatirth.org 25 October-2018 ३४. अपरिक्खेदीतत्वं- अनायास निकला हुआ वचन, खिन्नता से रहित । ३५. अव्युच्छेदित्वम्- विवक्षित अर्थ की सिद्धि होने तक अनवच्छिन्न प्रवाह वाला वचन। इस प्रकार कुल ३५ गुणों से युक्त जिनवाणी होती है । कृति परिचय : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७ गाथा निबद्ध प्रस्तुत कृति का छंद (काव्य) प्रकार स्तवन है, जिसकी स्पष्टता कर्त्ता ने स्वयं ‘जिनभत्तइ विरचिय तवनबध' वाक्य से की है। कृति के प्रारंभ में जिनवाणी के निर्मल पैंतीस गुणों की स्तवना हेतु कर्त्ता ने मङ्गलाचरण करते हुए कहा है कि- काव्य में अपनी मति कला सरल, सहजसुलभ बोधगम्य हो एतदर्थ विनय गुणों से पूर्ण ऐसे जनसमूह के लिए वन्दनीय, सुखसम्पदा के कारक, सम्पदायुक्त पार्श्वजिन के चरणकमलों में नमन करता हूँ । प्रथम गाथा के तृतीय चरण- ‘थुणिऊं जिणवयण पणतीस गुणनिम्मला' से कृति का विषय ज्ञात हो जाता है । जिनवाणी के ३५ गुणों अथवा अतिशयों का वर्णन प्रस्तुत कृति में किया गया है । कृति के अंत में कर्त्ता ने कृति विषय के आधार के रूप में समवायांगसूत्र, औपपातिकसूत्र और रायपसेणियसुत्त (राजप्रश्नीयसूत्र ) वृत्ति का संदर्भ दिया है । इस कृति की भाषा अपभ्रंश एवं मा.गु. संमिश्र है, किन्तु अपभ्रंश की प्रधानता एवं आधिक्य होने के कारण इस कृति की भाषा के रूप में अपभ्रंश को स्वीकार कर सकते हैं । कर्त्ता परिचय : कृति की अंतिम गाथा क्र. २७ में कर्त्ता ने अपना निम्नलिखित परिचय दिया है“इम गच्छ खरतर सुगुरु श्री जिनहंससूरि मुणीसरो । तसु सीस पाठक पुण्यसागर थुणिया जिन परमेसरो ॥ अइसय सुसंपय एहवी मह तुह पसायइ थाइज्यो । वीनती सगली एह विहली सामि सफली होइज्यो ॥२७॥” ‘आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा' के संशोधक एवं पण्डितों के द्वारा संकलित कर्त्ता एवं विद्वानों की सूची में कुल ३७ पुण्यसागरजी का नामोल्लेख प्राप्त होता है, किन्तु इस कृति की प्रशस्ति में कर्ता के द्वारा स्वयं को खरतरगच्छीय जिनहंससूरि के शिष्य के रूप में उद्घोषित किया है और इस सन्दर्भ के साथ केवल एक कर्त्ता साम्यदर्शी है जो 'जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति की (सं.) टीका' के रचयिता पुण्यसागरजी For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 26 अक्टुबर-२०१८ महोपाध्याय है । ‘जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति की (सं.) टीका' की प्रशस्ति में विस्तृत गुरु परम्परा का उल्लेख मिलता है, जिसमें चन्द्रकुलीय बृहत्खरतरगच्छीय श्री उद्योतनसूरिजी की पट्टावली अर्थात् शिष्य परम्परा में लक्ष्मीतिलकजी - जिणमाणिक्यजी जिनचन्द्रसूरिजी - जिनहंससूरिजी और उनके शिष्य के रूप में पुण्यसागरजी स्वयं का उल्लेख करते हैं और साथ ही टीका की रचना का प्रयोजन अपने शिष्य पद्मराजजी के अध्ययन हेतु स्पष्ट करते हैं । प्रत में इस कृति का रचनासंवत् वि. सं. १६७५ लिखा हुआ प्राप्त होता है, जिससे पुण्यसागरजी का समय निर्धारण वि. सं. १७वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से वि. सं. १८वीं शताब्दी के पूर्वार्ध के मध्य में अनुमानित रूप से स्वीकार किया जा सकता है। - 'आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा' में उपरोक्त कर्त्ता पुण्यसागरजी के द्वारा रचित मुख्य कृतियों का सन्दर्भ इस प्रकार है; - १. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति की (सं.) टीका, २.प्रश्नशतकप्रकरण की (सं.) कल्पलतिका वृत्ति, ३ . आदिजिन स्तवन, ४.जिनचंद्रसूरि अष्टक, ५. जिन पैंतीस वचनातिशय स्तवन, ६ . जिनदत्तसूरि स्तुति, ७. सुबाहुकुमार संधि, ८. चौदह गुणस्थान विचारगर्भित आदिजिन स्तवन, ९.अजितजिन स्तवन, १०. महावीरजिन स्तवन, ११. क्षुल्लककुमार सज्झाय इत्यादि । इनकी प्रमुख कृतियाँ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, तथा मारुगुर्जर भाषाओं में प्राप्त होती हैं । उपर्युक्त सभी कृतियों में कर्ता के रूप में पुण्यसागरजी का उल्लेख मिलता है, किन्तु वह खरतरगच्छीय जिनहंससूरि के शिष्य ही हैं अथवा कोई अन्य पुण्यसागरजी हैं, इसकी स्पष्टता वर्त्तमान समय में विद्वज्जनों के लिए संशोधन का विषय है । हस्तप्रत परिचय : For Private and Personal Use Only प्रस्तुत कृति का संपादन आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा स्थित ज्ञानभंडार की एकमात्र हस्तप्रत क्र. ८७६५५ के आधार पर किया गया है । प्रत में कुल पत्र संख्या ४ है । प्रस्तुत कृति हस्तप्रत के द्वितीय अनुक्रम पर पत्र क्र. २आ से ३आ में उल्लिखित है । लिपिविन्यास, लेखनकला तथा कागज आदि के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि यह हस्तप्रत वि.सं. १९वी शताब्दी में लिखी गई होनी चाहिए, प्रतिलेखक एवं लेखनस्थल अनुपलब्ध है । पंक्तियों की संख्या १५ और अक्षरों की संख्या ५२ तक प्राप्त होती है । प्रत की अवस्था फफुंदग्रस्त है साथ ३. प्रशस्ति सन्दर्भ - हस्तप्रत पृ. क्र. २५७आ से २५८अ - 'आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा तीर्थ' से प्रकाशित 'कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची' के खंड १.१.१, हस्तप्रत क्र. ११९, पृ. I क्र. १८ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR October-2018 ही जलार्द्र होने के कारण कई स्थानों पर स्याही फैली हुई है, जिससे अक्षर पढ़ने में कठिनाईं होती है। इस हस्तप्रत का सन्दर्भ 'आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा तीर्थ' से प्रकाशित कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची के खंड १.१.२१, पृ.क्र. २५६ पर से प्राप्त होता है । पाठक पुण्यसागर कृत श्री जिन पैंतीस वचनातिशय स्तवन विणयगुण पणय जणजणिय सुहसंपयं, संपयं नमवि सिरिपास पयपंकयं । थुणिऊं जिणवयण पणतीस गुण निम्मला, जेम सहली हवइ कावि मुझ मति कला ॥१॥ उपनइ केवलन्नाणि जिननइ सुरा, रचइउं सरण तिह ठाइ तित्थंकरा। अद्धमागधीइ भासाइ भासइ सदा, धम्मदेसण सुणइ बार वर परिषदा ॥२॥ संस्कृतादिक छ भाषा' अछइ जे भली, तेहने लक्षणे सहित निरुपम वली। खलिय' मिलियाइ दूषण रहित गहगहइ, प्रथम संस्कर गुण' एह गणधर कहइ ॥३॥ उच्चसर सार उच्चार सुर दुंदुही, नाद संवादि ओदात गुण ए सही। हीण ग्रामीण भाषा रहित वाणीइं, एह उपचारसुपरीतता (३) जाणीयइं ॥४॥ मेघ जिम मधुर गंभीरनिर्घोषता', एक जोयण अधिक पसर प्रतिनादता। सर्व श्रोतारनई सरल भाषा पणइं, परिणमइ स्वामिनी वाणि दक्खिण गुणइ ॥५॥ मालवक्केसिया पमुह सुह राग जे, सत्तसर गाम तिग मुच्छणा २१ अनु भजे। एह उपनीतरागत्त गुण जांणीयइ । सात गुण सबदथी एह वक्खाणीयइ ॥६॥ ॥ ढाल॥ हिव अरथ अपेक्षा करि गुण अट्ठावीस, मह अत्थ मियक्खरी अत्थ कहइ बहु ईस। पुव्वावर वचनइ न हुवइ जिहां विरोध, अव्याहतता गुण नवमउ जाणि सुबोध ॥७॥ अभिमत सिद्धं तह अत्थ निवेदक इट्ट, वाचकनई सूचइ उत्तमता वासिट्ठ । प्रगटारथ अक्षर कहिवाथी इकवार, सवि संसय भंजइ असंदिद्दद्ध) गण' सार ॥८॥ १. काव्य में, २. प्रतिलेखक के द्वारा हस्तप्रत की दाईं ओर पावरेखा के बाहर ६ भाषाओं का नामोल्लेख किया गया है, वह इसप्रकार है-संस्कृत १, प्राकृत २, सौरसेनी ३, मागधी ४, पिशाचिकी ५, अपभ्रंसी ६, ए ६ भाषा जाणवी ॥, ३. स्खलना, ४. ? For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर 28 अक्टुबर-२०१८ परवादी दूषण 'अविषय उत्तरदांन, ए अतिसय अपहृतं अन्योत्तर अभिधान 2 | अति विषम अरथ पणि परनई हियइं प्रवेस, कर तत्र हृदयंगम सुमनोहर गुण एस ॥९॥ नितु प्रस्तावोचित अर्थ कहइं अरिहंत । ए देसत कालत अव्यतीत गुण'4 संत । सुविसुद्ध परूपइ चउविह भाव सरूप। पन्नरम गुण ए पुण तत्वनिष्टता रूप'॥१०॥ संबंध मिलंत उपरि मित अत्थहिगार । अपइणपसरता ' सोलम अइसइ सार । वलि माहो माहे सगला पद साविक्ख। नयवाद करीनइ ए गुण मिथसाकंख ॥११॥ -16 ॥ भास ॥ विवखत अर्थ कथन सीलता, ए अभिजात नाम गुण "सता । हिव सुसद्धि मधुरता नाम " इगुणीसम अतिसय अभिराम , परना मर्म प्रकासइ नही, ते पर मर्म अवेधक सही 20 । अर्थ अनइं धर्मइ प्रतिबद्धं, इकवीसम अतिसय सुप्रसिद्ध जिम बुभुखित' घृत गुड भोजन, परम तृपति सुख पामइ मनई । तिम जिम (जिन) वयण भविक जां सुणई, ता नवि भूख तृषा सुख सुणई ॥१३॥ अत्थ अतुच्छ सुरचना जुत्त, ए उदारता 2 तिसय पवित्र । परनिंदा आतम उतकर्ष, गर्वरहित" जिनवचन सहर्ष Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अति विसिट्ठ गुणगण संजोगि, लद्ध सिलाघा' त्रिभुवन लोगि । ए प्रसस्यता4 अतिसय भलओ, चउवीसम कहियइ निरमलउ कारक वचन लिंग कालाइ, विपरीतइ जे दूषण थाइ । तिणि वर्जित जिन भाषित सार, ए अपनीततातिसय 25 विचार ॥ भास ॥ सुर नर तिरिनइं जे सुणत थाइ, कोतूहल नव नव मानि सुहाइ । स्युं कहिस्यइ आगिलि हिव जिणिंद, ए अचरिजकर " अतिसय अमंद अति वेगि कहतउ उत्ताल दोष, तिणि वर्जित अद्भूत” सुगुण पोष । तिम न करइं कहतां अति विलंब, ए अट्ठावीसम" गुण अबिंब ५. बुभुक्षित, भूखे, ६. श्लाघा, प्रशंसा, आत्मोत्कर्ष For Private and Personal Use Only ॥१२॥ ॥१४॥ ॥१५॥ ॥१६॥ ॥१७॥ ॥१८॥ ॥१९॥ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir October-2018 ॥२०॥ ॥२१॥ ॥२२॥ ॥२३॥ SHRUTSAGAR जे संभ्रम किल भय रोषाभिलास, अभिधेय अनादरता प्रकास। ते विभ्रम किलकिंचित् विखेव, पभिई मण दूषण रहित एव भूअंतरि जिम सम मेघ वृष्टि, पामइ वणांतर पमुह पुट्टि। तिम नियनिय भासा परिणमेय, जिनवय बहुजाति विचित्र केइ बहु वत्थ सरूवणाइ, तीसम गुण जातिविचित्रता। वचनांतरथी जे बहु विशेष, ते कहियइ गुण आहिति विशेष विच्छिन्न वर्ण पदनई प्रकारि, साकार नाम अतिसय विचारि। सादृस जुत सत्वपरिग्रहीत तेत्रीसम अतिसय ए वदीत जे कहतां न वि आयास थाइ। अपरिक्खेदी ते गुण कहाइ। जां सम्म विविक्षित अर्थ सिद्धि । थायइ तां भासइ जिन सुबुधि न वि कोइ अरउ रहइ अत्थ । ए अव्वुच्छेदक गुण पसत्थ। पणतीस बुधवयणातिसेष । समवाय अंग कहिआ असेष उववाइय रायपसेणिआ ण । वित्ती अणुसारइ ए वखाण। जिनभत्तइ विरचिय तवनबध । तिणि लोउ भविय (?) सुसाणु बंध इम गच्छ खरतर सुगुरु श्री जिनहंससूरि मुणीसरो, तसु सीस पाठक पुण्यसागर थुणिय जिन परमेसरो। अइसय सुसंपय एहवी मह तुह पसायइ थाइज्यो । वीनती सगली एह विहली सामि सफली होइज्यो इति श्री जिन ३५ वचनातिशय स्तवनम् ॥ ॥२४॥ ॥२५॥ ॥२६॥ ॥२७॥ ७. प्रभृति, आदि, वगैरह, ८. पृथ्वी पर, ९. पुष्टि, पोषण, १०. वस्तु For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अक्टुबर-२०१८ सोळमा शतकनी गुजराती भाषा मधुसूदन चिमनलाल मोदी १. रा. जगजीवन नरभेराम बधेकाए ‘सोळमां शतकनी गुजराती भाषा' संबंधे 'गुजराती' पत्रमा केटलाक मुद्दाओ ऊठावी एम पूरवार करवा यत्न कर्यो केः (अ) काठीआवाडमां सोळमा शतकमां बोलाती गुजराती भाषा अर्वाचीन गुजरातीना जेवी ज लगभग हती; अने ते माटे तेमणे प्रमाणो रजु कर्यां। (ब) गुजरात तळमां सोळमा शतकमां बोलाती गुजराती भाषा अर्वाचीन गुजराती करतां जुदा प्रकारनी हती ए कबुल करवामां रा. बधेका संमत छे । तेम ज वधारामां ते एम पण कहेवा मागे छे के गुजरात तळमां संस्कृता गुर्जरी : ब्राह्मणोनुं गुजराती अने प्राकृता गुर्जरी : जैन गुजराती एम बे भाग पाडी शकाय। उपरनां विधानोने रा. केशवराम का. शास्त्रीनो पण टेको छ ('गुजराती' २६१-४४) 'नगीचाणाना पावळिआ' नो लेख. पा. १७०८) एमना प्रस्तुत लेखमां एमणे जूनी गुजरातीना त्रण भाग पाड्या छे। १. प्राकृतप्रचुर तल गुजरातनी साहित्यभाषा। २. संस्कृतप्रचुर तल गुजरातनी साहित्यभाषा। ३. तल काठियावाडनी लोकभाषा। तल-काठिआवाडीनी समजावट करतां रा. शास्त्री एज लेखमां कहे छे के “तलगुजरातमां सं. १८२५ लगभगमा जूनी भाषाना संस्कारवाळी हाथप्रतो, पत्रो, लखतो वगेरे मळे छे, ज्यारे तल-काठियावाडमां छेक सं. १४५९ थी मांडी नवा संस्कार वाळी भाषा मळे छे.... अने नरसिंहनी भाषा ते ज संभवे छे।” आ पूर्व पक्षमां केटली अयथार्थता छे ते बताववा नीचे यत्न करवामां आवे छे। २. बोलाती भाषामां विकार न थाय ए मानवू ज मुश्केल छ। जीवंत वस्तुमां विकार थवो ते प्रकृतिनो नियम छ । दाखला तरीके कवि नर्मदाशंकरनी भाषा तो अर्वाचीन ज कहेवाय छतां पण अत्यारना लखाणमां अने तेमना लखाणमां अमुक जोडणी संबंधी फेरफार तो मालम पडे छे। दा. त. नर्मदाशकंर ‘मारी हकीकत' ९-९-२७. कांहां (=अत्यार- ‘क्यां'; सुरती भाषा कां' [सं. १९१९] भाएगाशाली (=अत्यार- ‘भाग्यशाली;' सुरती भाषामां 'भाएग' बोलातुं दीठामां आवे छे) For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 31 जूनुं नर्मगद्य पा. ३८०-८१ [सं. १९२०]; 'नर्मपत्रावली' गुजराती-दीवाळी सने १९२३ पृ ७ ‘छउं’ अने ‘छु' नो सहप्रयोग [सं. १९२५] आ प्रमाणे वाक्यरचनामां, विभक्तिदर्शक अनुषंगी शब्दो (Post - positions) इत्यादिमां अणदेखातां य विकार तो थता ज रहे छे; तो पछी चारसें वर्षना गाळामां आ रीते शुं खास नहि जेवा ज फेरफार थया हशे? आ संदेह कोई पण भाषाचिकित्सकने मन नानोसूनो नथी । आपणने प्रेमानंदादिनां काव्यो पण मूळ हाथप्रतोने चोकसाईथी वापरी संपादित करी आपवामां आव्यां नथी एटले भाषाना अदृष्ट अने झीणा फेरफारोनी तारवणी काढवी जरा आपणने मुश्केल छे। में संपादन करवा धारेला मृगाङ्कलेखा रास (पंदरमी सदीना अंत के सोळमीनी शरूआतमां लखायलुं वच्छ कविनुं काव्य) खातर सोळमा अने सत्तरमां सैकानी नवेक प्रतो तपासी हती । तेमांथी हुं जोडणीना केटलाक विकल्पो नीचे आपवा मांगु छु: दा. त. इसिइ अइसइ, इसे, इशइ, इशि= हिं. ऐसी; गु. आवी; सांभलु, सांभलो, सांभलउ, सभलो = गु. सांभळो; आज्ञार्थ बीजो पुरुष अनेक वचन; सुणे बधी य हाथप्रतोमां = अप्रभ्रंश सुणि आज्ञार्थ. बीजो पु. एकवचन गु. 'सुण्य' के 'सुण'; केटलीक वार सुणि पण मालूम पडे छे । जूनी हाथप्रतोमां आ प्रकारना जोडणीना विकल्पो वारंवार मालूम पडे छे । आम बसो वर्षना गाळामां पण केटकेटला फेरफार थता जाय छे। October-2018 लखाण तो उच्चारनुं कामचलाउ प्रतीक छे; अने जूनां लखाण उपरथी ज उच्चारनो मेळ बेसाडवो ए वसमुं छे; अइ अने अउ ने माटे सोळमा सैकानी अने सत्तरमानी शरुआतनी हाथप्रतोमां करइ, करि, करे तथा करउ करु अने करो एम लखाणो दीठामां आवे छे। अइ अने इ नो प्रयोग ए करतां वधारे होवाथी अनुमान एम कराय के ए स्वरयुग्मनो उच्चार ए अने इ नी वचटनो हशे, आथी करीने कोइ लखाणमां ए नी बहुलता होय ने कोइमां अइ के इ नी बहुलता होय तेथी बे बोलीओ (dialects)नुं जुदापणुं तर्कसिद्ध थतुं नथी । For Private and Personal Use Only एक स्थळे 'नगीचाणाना पावळीआ' वाळा लेखमां रा. शास्त्री कहे छे के “करइ परथी काठिआवाडमां करे. करइ उपरथी मारवाडना संपर्कवाळी गुजराती भाषामां (त्रीजी भूमिकामां) करि रूप स्थापित थयुं, करि परथी करे ऊतरी शके ज नहि । आम त्रीजी भूमिकामां रूपोनो त्याग करी तल गुजरातना कविओये जुना काळथी स्वीकाराइ चूकेला काठिआवाडना करे रूपने स्वीकारी लीधुं.” आ दलील आगला फकरामां बताव्या प्रमाणे टकी शकती नथी। बीजुं बिजि, शनि, वारि, तसउ, नोमि, Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर 32 अक्टुबर-२०१८ 1 ठामि, मिहपा जेने रा. शास्त्री जूना संस्कारवाळां रूप कहे छे ते यथार्थ नथी । ते रूपो वैकल्पिक लेखनपद्धतिना स्वरूपनो अणसारो छे । आ प्रकारनी पद्धति दर्शावता दाखला माटे सं. १५८२ आषाढ सुदि ५ ने रविनी लखेली मृगांकलेखारास नी हाथप्रतमांथी ऊतारा आपुं छुः (पत्र. १ (ब) पं. ४-६ ] तु कहि वछड़ कांइ किसिऊं लज्जा कांइ आणि । आज तां सहू इ मइ हुइ ते तु तुह्ये जाणो ॥ कुमरि कहि मझ सूखडी तु गरथ अणावो तात तह्यारा वन मांहि प्रासाद करावु ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपरना अवतरण परथी मालूम पडशे के अइ, इ, ए, ओ, उ, ऊ, अउ एक ज हाथप्रतमां विकल्पे वपरायला मालूम पडे छे; एटले मारवाडी शैली के काठिआवाडी शैलीना आ बाबतमां भेद लावी काल्पनिक असरो उपजावी काढवानी जरूर नथी । बीजुं करइ मांथी करि अने करे रूप थयां तेनी वचटनुं रूप कयुं हशे तेने माटे हुं सं. १६१६ मां लखेली वसुदेव चउपइ नी हाथप्रतमांथी अवतरण आपुं छं । [पत्र १६ ब पं. ३-४] सिरपाखलि परदक्षण देय, ते आवी हरि हाथ रहेय । बलतुं तेह ज हरि मूकेय, प्रतिवासुदेव प्राण चूकेय ॥ देय, रहेय, चूकेय (=दिइ, रहइ, मकइ, मूकइ) ए वचगाळानां रूपमांथी दे, रहे, चुकेय ए विकार थयो। आ बधीय जोडणी वैकल्पिक पण उच्चार तो एकज ते काळे हता। दे, रहे ए कांइ काठिआवाडी भाषानां लीलां रूप नथी। आज कारणे जूना संस्कारवाळी तळ गुजरातनी भाषा अने नवा संस्कारवाळी काठियावाडनी लोकभाषा ए भेद ज अमान्य छे । कोइक एवां लखाणो मळे के जोडणी जरा जुदी होय तेथी करी एम पूरवार करवाने आपणी पासे प्रमाणो नथी के ते काळे ए जोडणी प्रमाणे ज उच्चार हशे । भाषाशास्त्रीनी गणतरीए लखायली भाषा करतां उच्चारायली भाषानुं मूल्य वधारे छे। रा. शास्त्री एम बतावी शकशे के धातुनां रूपो, अनुषंगी शब्दो (Post-positions) ईत्यादिनी काठिआवाडी विशिष्टताओ प्रेमानंदादिनां लखाणोमां मालम पडे छे? के काठिआवाडी हलक प्रेमानंदादिनी देशी के ढालमां मालम पडे छे? (क्रमशः) बुद्धिप्रकाश, पुस्तक - ८२ अंक - १ मांथी साभार For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 33 October-2018 समाचारसार भायंदर, मुम्बई की पुण्यधरा पर प.पू. राष्ट्रसंत आचार्य भ. श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. का ___८४वाँ जन्मदिवस हर्षोल्लासपूर्वक सम्पन्न योगनिष्ठ आचार्यदेव श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म.सा., आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. तथा परमात्मभक्तिरसिक आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी म.सा. के दिव्य आशीर्वाद से राष्ट्रसन्त प.पू. आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. के ८४वें जन्मदिवस के निमित्त भाद्रपद शुक्लपक्ष-१३, दि. २३-९-२०१८ रविवार को श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ बावन जिनालय जैनसंघ के तत्त्वावधान में धर्मनगरी भायंदर के कस्तूरी गार्डन के विशाल प्रांगण में विशिष्ट महानुभावों की उपस्थिति में अत्यन्त हर्षोल्लास के साथ 'गुरु उपकार स्मरण उत्सव' मनाया गया। पूज्य गुरुदेवश्री ने अपने ८४वें जन्मदिवस के अवसर पर विश्व को सन्देश देते हुए कहा कि आज वर्तमान में मैं जिस स्थिति में हूँ, यह मात्र गुरुजनों के आशीर्वाद का परिणाम है। मैं कुछ भी नहीं, मेरा कुछ भी नहीं। I am nothing, I have nothing. जो भी है, वह गुरु महाराज की कृपा है। उनके आशीर्वाद का ही परिणाम है कि जिनशासन की थोड़ी-बहुत सेवा हो सकी। परमात्मा के विचारों का प्रचार करने का कुछ अवसर मिल सका, घूमता रहा, फिरता रहा, पोस्टमैन की तरह घरघर, प्रत्येक व्यक्ति तक परमात्मा का सन्देश पहुँचाने का प्रयास करता रहा। अनेक तीर्थंकर भगवन्तों की आत्मा ने इस भारतभूमि पर जन्म लिया, महान ऋषि-मुनियों ने अपने पावन चरणों से इस धरती को पावन किया। मेरा भी कुछ महान पुण्य होगा कि मैंने इस भूमि में जन्म लिया। श्रेष्ठ गुरुजनों का सहयोग मिला, उनका आशीर्वाद मिला, साधना के केन्द्र में प्रवेश करने का सौभाग्य मिला, किसी भी राजकीय पक्ष से मेरा कोई सम्बन्ध नहीं, किसी भी सम्प्रदाय से मेरा कोई मतलब नहीं। मेरी एकमात्र भावना है, आज की वर्तमान स्थिति को देखकर यह विचार आता है कि यह देश व्यसनों से मुक्त हो जाए। व्यसनमुक्त भारत बने। सारे पापों का जन्मस्थान, जितने भी क्राईम आप देखते हैं, उसका सबसे बड़ा कारण व्यसन है। For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 34 श्रुतसागर अक्टुबर-२०१८ इस पावन अवसर पर धर्म, कला और श्रुतज्ञान के त्रिवेणीसंगम रूप श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र-कोबा में संग्रहित हस्तप्रतों के तीन Catalogue कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची, भाग-२४, २५ व २६ का विमोचन मध्यप्रदेश के गवर्नर श्रीमती आनंदीबेन पटेल और महाराष्ट्र के मुख्यमन्त्री श्री देवेन्द्र फडणवीस के करकमलों से किया गया। श्रीमती आनन्दीबेन पटेल और श्री देवेन्द्र फडणवीसजी ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि पूज्य गुरुदेव के जन्मदिवस के शुभ अवसर पर हमें उपस्थित रहने का अवसर प्राप्त हुआ है, यह हमारा परम सौभाग्य है। प.पू. राष्ट्रसन्त श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा के ८४वें जन्मदिवस के पावन अवसर पर ११ आचार्य भगवन्त एवं ७० से अधिक श्रमण-श्रमणियों की विशेष उपस्थिति में मध्यप्रदेश के गवर्नर श्रीमती आनन्दीबेन पटेल, महाराष्ट्र के मुख्यमन्त्री श्री देवेन्द्र फडणवीस, श्री बावन जिनालय ट्रस्टमंडल, आनंदजी कल्याणजी पेढी ट्रस्टमंडल, श्री शौर्यपुरी ट्रस्टमंडल, श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, श्री महुडी (मधुपुरी) जैन श्वे. मू. संघ ट्रस्ट मंडल, श्री सीमंधरस्वामी जैन पेढी, महेसाणा ट्रस्ट मंडल, 'तारक महेता का उल्टा चश्मा' के 'टपु' भव्य गांधी एवं 'गोगी' समय शाह, महाभात सीरियल के दुर्योधन अर्पित रांका ‘साईन शो' परिवार तथा भारत भर के समस्त जैनसंघों के पदाधिकारियों और विविध राज्यों से पधारे हुए ५००० से अधिक गुरुभक्तों ने बड़ी संख्या में उपस्थित रहकर पूज्य गुरुदेव को जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ दी और गुरु आशीष ग्रहण किए। पूज्यश्री के जन्मदिवस के पावन अवसर पर जीवदया, अनुकंपा एवं अभयदान की विविध प्रवृत्तियों व समाजोपयोगी विशेष कार्य किए गए, जिसमें १३६ जीवों को अभयदान, ८४ साधर्मिकों की साधर्मिक भक्ति, बावन जिनालय के सभी सेवकों का सम्मानपूर्वक द्रव्य से बहुमान, भायंदर के पांजरापोल में मिष्टान्न भोजन, स्व. हिम्मतलाल हरजीवनदास मोदी चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा संचालित श्रवण टिफिन सेवा के १८० वृद्धों को मिष्ट भोजन, मीरा भायंदर शिखरबंधी सभी जिनालयों में परमात्मा की मनोहारी – दर्शनीय अंगरचना, अनुकंपा दान, अनाथाश्रम, सरकारी हॉस्पीटल में फल-मिष्टान्न प्रदान, नाकोडा भैरव चेरिटेबल सेन्टर द्वारा निःशुल्क त्रिदिवसीय मेडीकल कैम्प जैसे अनेक सुकृत किए गए। For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राष्ट्रसंत प. पू. आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के ८४वें जन्मोत्सव की कुछ झलक For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Registered Under RNI Registration No. GUJMUL/2014/66126 SHRUTSAGAR (MONTHLY). Published on 15th of every month and Permitted to post at Get City SO, and on 20th date of every month under Postal Regd. No. G-GNR-334 issued by SSP GNR valid up to 31/12/2021. प. पू. राष्ट्रसंत आचार्य श्रीपद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. के ८४वें जन्मोत्सव के शुभ अवसर पर भायंदर जैन संघ, मुंबई में कैलासश्रुतसागर ग्रन्थसूची भाग-२४,२५ व 26 का विमोचन करते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री देवेन्द्र फड़णवीस, मध्यप्रदेश के राज्यपाल श्रीमती आनंदीबहन पटेल तथा श्री नरेन्द्रभाई लालचंदजी मेहता आदि महानुभाव BOOK-POSTIPRINTED MATTER प्रकाशक श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्य श्री कैलाचारवागारसूरि ज्ञानमंदिर, कोया जि.गांधीनगर 382007 फोन नं.(०७१) 23276204, 205,252 फैक्स (079) 23276249 Website: www.kobatirth.org gyanmandir@kobatirth.org Printed and Published by : HIREN KISHORBHAI DOSHI, on behalf of SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, New Koba, Ta.&Dist. Gandhinagar, Pin-382007. Gujarat. And Printed at : NAVPRABHAT PRINTING PRESS, 9, Punaji Industrial Estate, Dhobighat, Dudheshwar, Ahmedabad-380004 and Published at : SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, New Koba, Ta.& Dist. Gandhinagar, Pin-382007, Gujarat. Editor : HIREN KISHORBHAI DOSHI For Private and Personal Use Only