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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir October-2018 ॥२०॥ ॥२१॥ ॥२२॥ ॥२३॥ SHRUTSAGAR जे संभ्रम किल भय रोषाभिलास, अभिधेय अनादरता प्रकास। ते विभ्रम किलकिंचित् विखेव, पभिई मण दूषण रहित एव भूअंतरि जिम सम मेघ वृष्टि, पामइ वणांतर पमुह पुट्टि। तिम नियनिय भासा परिणमेय, जिनवय बहुजाति विचित्र केइ बहु वत्थ सरूवणाइ, तीसम गुण जातिविचित्रता। वचनांतरथी जे बहु विशेष, ते कहियइ गुण आहिति विशेष विच्छिन्न वर्ण पदनई प्रकारि, साकार नाम अतिसय विचारि। सादृस जुत सत्वपरिग्रहीत तेत्रीसम अतिसय ए वदीत जे कहतां न वि आयास थाइ। अपरिक्खेदी ते गुण कहाइ। जां सम्म विविक्षित अर्थ सिद्धि । थायइ तां भासइ जिन सुबुधि न वि कोइ अरउ रहइ अत्थ । ए अव्वुच्छेदक गुण पसत्थ। पणतीस बुधवयणातिसेष । समवाय अंग कहिआ असेष उववाइय रायपसेणिआ ण । वित्ती अणुसारइ ए वखाण। जिनभत्तइ विरचिय तवनबध । तिणि लोउ भविय (?) सुसाणु बंध इम गच्छ खरतर सुगुरु श्री जिनहंससूरि मुणीसरो, तसु सीस पाठक पुण्यसागर थुणिय जिन परमेसरो। अइसय सुसंपय एहवी मह तुह पसायइ थाइज्यो । वीनती सगली एह विहली सामि सफली होइज्यो इति श्री जिन ३५ वचनातिशय स्तवनम् ॥ ॥२४॥ ॥२५॥ ॥२६॥ ॥२७॥ ७. प्रभृति, आदि, वगैरह, ८. पृथ्वी पर, ९. पुष्टि, पोषण, १०. वस्तु For Private and Personal Use Only
SR No.525339
Book TitleShrutsagar 2018 10 Volume 05 Issue 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2018
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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