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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर 28 अक्टुबर-२०१८ परवादी दूषण 'अविषय उत्तरदांन, ए अतिसय अपहृतं अन्योत्तर अभिधान 2 | अति विषम अरथ पणि परनई हियइं प्रवेस, कर तत्र हृदयंगम सुमनोहर गुण एस ॥९॥ नितु प्रस्तावोचित अर्थ कहइं अरिहंत । ए देसत कालत अव्यतीत गुण'4 संत । सुविसुद्ध परूपइ चउविह भाव सरूप। पन्नरम गुण ए पुण तत्वनिष्टता रूप'॥१०॥ संबंध मिलंत उपरि मित अत्थहिगार । अपइणपसरता ' सोलम अइसइ सार । वलि माहो माहे सगला पद साविक्ख। नयवाद करीनइ ए गुण मिथसाकंख ॥११॥ -16 ॥ भास ॥ विवखत अर्थ कथन सीलता, ए अभिजात नाम गुण "सता । हिव सुसद्धि मधुरता नाम " इगुणीसम अतिसय अभिराम , परना मर्म प्रकासइ नही, ते पर मर्म अवेधक सही 20 । अर्थ अनइं धर्मइ प्रतिबद्धं, इकवीसम अतिसय सुप्रसिद्ध जिम बुभुखित' घृत गुड भोजन, परम तृपति सुख पामइ मनई । तिम जिम (जिन) वयण भविक जां सुणई, ता नवि भूख तृषा सुख सुणई ॥१३॥ अत्थ अतुच्छ सुरचना जुत्त, ए उदारता 2 तिसय पवित्र । परनिंदा आतम उतकर्ष, गर्वरहित" जिनवचन सहर्ष Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अति विसिट्ठ गुणगण संजोगि, लद्ध सिलाघा' त्रिभुवन लोगि । ए प्रसस्यता4 अतिसय भलओ, चउवीसम कहियइ निरमलउ कारक वचन लिंग कालाइ, विपरीतइ जे दूषण थाइ । तिणि वर्जित जिन भाषित सार, ए अपनीततातिसय 25 विचार ॥ भास ॥ सुर नर तिरिनइं जे सुणत थाइ, कोतूहल नव नव मानि सुहाइ । स्युं कहिस्यइ आगिलि हिव जिणिंद, ए अचरिजकर " अतिसय अमंद अति वेगि कहतउ उत्ताल दोष, तिणि वर्जित अद्भूत” सुगुण पोष । तिम न करइं कहतां अति विलंब, ए अट्ठावीसम" गुण अबिंब ५. बुभुक्षित, भूखे, ६. श्लाघा, प्रशंसा, आत्मोत्कर्ष For Private and Personal Use Only ॥१२॥ ॥१४॥ ॥१५॥ ॥१६॥ ॥१७॥ ॥१८॥ ॥१९॥
SR No.525339
Book TitleShrutsagar 2018 10 Volume 05 Issue 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2018
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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