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श्रुतसागर
( गतांक से आगे)
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आध्यात्मिक पदो
(हरिगीत छंद)
उपकारनां सूत्रो भलां ते शब्द वेदे शोभतां, ए शब्द वेदो विश्वमांहि सर्वं मन थोभतां; उपकारनी सहु वृत्तियो छे वेद श्रद्धा परवडी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. प्रामाण्य वर्तन वेद छे प्रमाण्य वर्तन देवता, प्रामाण्य वर्तन प्रगटतां देवो चरणने सेवता; प्रामाण्य वादी वेद छे जाशो नहीं बोली फरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. कामादि सर्वे वासनाओ ज्यां नथी ते सिद्ध छे, ए सिद्धनी वाणी विषे वेदो रह्या अविरूद्ध छे; आग्रह तजीने पक्षनो जोशो जरा दिल उतरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. विरूद्धता नजरे पडे ज्यां त्यां परस्पर देखतां, ज्यां ग्रंथमां ने बोलमां इश्वरपणुं ना पेखतां; जे 'जूठ नहि ते वेद छे चमको नहीं मन खळभळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. जेथी टळे छे राग ने द्वेष ज तथा मिथ्यामति, ते वेद शब्द ब्रह्म छे प्रगटे समाधि जे छती; सहु वासनाओ जे थकी क्षण क्षणविषे जाती बळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. उत्तम जीवननां शिक्षणो ते वेद विद्या जाणवी, उत्तम जीवन प्रगति करे ते वेद श्रद्धा मानवी; नीति जीवन जेथी वधे ते वेद विद्या गुण करी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी.
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आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी
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अक्टुबर-२०१८
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(क्रमशः)