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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 20 ॥८९॥ ॥९०॥ श्रुतसागर अक्टुबर-२०१८ मूलथकी निय चरिय सुमंडी१४५, विषय तणी (म)ति सह ए छंडी। आपणपो१४६ तिणि नारि प्रकासिउ१४७, सह ए आगलि निरतो१४८ भास्यो१४९ ॥८८॥ दधिघड काजइं हिव स्युं रोऊ, हा ! हा ! जनम गमाया दोऊं। वात सुणी हुआ चकित लोया ५०, इण वातई किम होइं पमोया ५१ ॥धन धन हो जिनवर वाणी-ए ढाल॥१०॥ जाणी निय बंभणि(णी) पुत्तो, पुत्रि जाणिउ ए मुझ मातो। विषयारसथी ते विरता५२, निय निय घरि आइं पहूता धन धन ए बंभणि नारी, जिणि आपण आतम तारी। पहिलो नर जनम सुहारी, दुः(कृ)त करि जे क्रिय भारी धन... ॥११॥ कामलखमी भावन भावई, वइराग घणुं रि(रे?) सुहावइं। विषयारस हियडइं नावइं, पापकर्मथकी पछतावइं१५३ धन... ॥९२॥ ते वेदविचक्षण चीतइं, निरवेद'५४ हुवई जिणि हेतइं। हा! कवण अकारिज कीनो, माइंस्यु विषयारसि लीणो धन... ॥९३॥ कुल बंभण हुओ मुझ जम्म, अणजाणत करिउ कुकर्म। चंडाल न करइ जु काजो५५, मइं कीधो तेह अकाजो हिव कवण उपाय करीजइं, जिणे करतां दुःकृत छीजइं। माता अरू पुत्र विचारइं, गुरु आया तदा तिणि नयरइं धन... ॥१५॥ गुरुचरण जईनइं वंदई, सिरि अजंलि करि मनछंदइ१५६ । बइंठा जब उचित सुठामइं, गुरु धर्म कहइं सुखकांमइं ते संभलि श्रीगुरुवाणी, प्रतिबूधा उत्तम प्रांणी। गुरु पासइं लीघी दीख, मनि धारी गुरुनी शीख धन... ॥९७।।* तप संजम उग्र विहार, भवियण जण केरु निस्तार। सिवसौधइ१५७ जाई बइठा, धन धन ते जिणे ए दीठा धन... ॥९९॥ सुणिनई नर नारि चरित्र, सुत माइं तणो रे विचित्र। पाप करम करी पछतावइं, सिवपुरनां ते सुख पावइं धन... ॥१०॥ १४५. सारी रीते शरु करी, १४६. पोतानी जात (आपण पणुं), १४७. का, १४८. संपूर्ण, १४९. कह्यो, १५०. लोको, १५१. प्रमोदित थाय, १५२. विरक्त थया, १५३. पश्चाताप करे छे, १५४. निर्वेद, १५५. कार्य, १५६. मनना आनंदपूर्वक, १५७. मोक्ष रूपी घरे धन... ॥९४|| धन... ॥९६॥ For Private and Personal Use Only
SR No.525339
Book TitleShrutsagar 2018 10 Volume 05 Issue 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2018
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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