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October-2018
॥५६॥
SHRUTSAGAR पेखत पेखत ते गईजी, पाछिल भूमि प्रवेसि। बइठो दीठो बंभणूजी, वचन कहइं प्रांणेस
मोहन... ॥५३॥ तो पणि ते बोलई नहीजी, नारी जई तसु पासि। कर फरसइं१०१ संभालियोजी, देखी हुईय निरास
मोहन..॥५४॥ सर्पि डस्यो ते बंभणूजी, जाण्यो तब तिणि नारि । हय उपरि बइंसी करीजी, हाथि लेइं तरवारि१०२ मोहन... ॥५५॥
॥चेला विषय न गंजीए-ए ढाल ॥६॥ निज हाथि मारी करी रे,राजानइं भरतार । सर्पि डस्यो जांणी करी रे, तो ही कठिन अपारो रि(रे?)* चेतन नहु धरई नयणे नीर न चेतो रि, संवर नवि करई [आंकणी] एकलडी परदेशनइं रे, चाली छंडी पालि। राति अंधारी भामिनी रे, नारी दिसि विकरालो रि
चेतन... ॥५७॥ गांम नगर पुर जोवती रे, कामपुरई संपत्त । माली घरि जई ऊतरी रे, सुख मानिउ तसु चीतो रि
चेतन... ॥५८॥ चोक अनइं त्रिक०३ चश्चरू१०४ रे, पोलि०५ अनइं प्राकार। वीथी१०७ विपणि१०८ सोहामणा रे, फिर दीठा सहकारो०९ रि चेतन... ॥५९॥ नाचंती इक थानकइं रे, वेस्या देखी जांम। लाख द्रव्यनी मूंदडी रे, दीधी दांनइं तामोरि
चेतन...॥६०॥ घरि लेई वेस्या गई रे, बंभणनारी साइं। तिणि वयणे वेश्या हूई रे, कर[म] तणइं अनुभाए(वइं) रि चेतन... ॥६१॥
॥ढाल-[७]।। हुं बलिहारी यादवा ॥ स्नान करीनई दिन प्रती, पहिरइं अनुपम नवला चीर कि। सोइ(व)नमइं सुंदर घडिउ, मस्तकि तिलक जडित तसु हीर कि ॥६२॥ मानवि(वी) रूपी सुरंगना ११, निरूपम सोहइं जसु तन तेज कि। गरवी१२ धन मद जोवनइ, करती सोल सिंगार सुहेज कि मानवि... ॥६३॥ १०१. स्पर्शथी, १०२. तलवार , १०३. त्रण रस्ता भेगा थाय ते स्थान, १०४. चोगान, १०५. पोळ, १०६. गढ, १०७. मार्ग, शेरी, १०८. दुकान, १०९. आंबाना वृक्षो, ११०. त्यारे, १११.देवी, ११२. गर्ववाळी
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