________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रुतसागर
26
अक्टुबर-२०१८
महोपाध्याय है । ‘जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति की (सं.) टीका' की प्रशस्ति में विस्तृत गुरु परम्परा का उल्लेख मिलता है, जिसमें चन्द्रकुलीय बृहत्खरतरगच्छीय श्री उद्योतनसूरिजी की पट्टावली अर्थात् शिष्य परम्परा में लक्ष्मीतिलकजी - जिणमाणिक्यजी जिनचन्द्रसूरिजी - जिनहंससूरिजी और उनके शिष्य के रूप में पुण्यसागरजी स्वयं का उल्लेख करते हैं और साथ ही टीका की रचना का प्रयोजन अपने शिष्य पद्मराजजी के अध्ययन हेतु स्पष्ट करते हैं । प्रत में इस कृति का रचनासंवत् वि. सं. १६७५ लिखा हुआ प्राप्त होता है, जिससे पुण्यसागरजी का समय निर्धारण वि. सं. १७वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से वि. सं. १८वीं शताब्दी के पूर्वार्ध के मध्य में अनुमानित रूप से स्वीकार किया जा सकता है।
-
'आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा' में उपरोक्त कर्त्ता पुण्यसागरजी के द्वारा रचित मुख्य कृतियों का सन्दर्भ इस प्रकार है; - १. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति की (सं.) टीका, २.प्रश्नशतकप्रकरण की (सं.) कल्पलतिका वृत्ति, ३ . आदिजिन स्तवन, ४.जिनचंद्रसूरि अष्टक, ५. जिन पैंतीस वचनातिशय स्तवन, ६ . जिनदत्तसूरि स्तुति, ७. सुबाहुकुमार संधि, ८. चौदह गुणस्थान विचारगर्भित आदिजिन स्तवन, ९.अजितजिन स्तवन, १०. महावीरजिन स्तवन, ११. क्षुल्लककुमार सज्झाय इत्यादि । इनकी प्रमुख कृतियाँ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, तथा मारुगुर्जर भाषाओं में प्राप्त होती हैं । उपर्युक्त सभी कृतियों में कर्ता के रूप में पुण्यसागरजी का उल्लेख मिलता है, किन्तु वह खरतरगच्छीय जिनहंससूरि के शिष्य ही हैं अथवा कोई अन्य पुण्यसागरजी हैं, इसकी स्पष्टता वर्त्तमान समय में विद्वज्जनों के लिए संशोधन का विषय है । हस्तप्रत परिचय :
For Private and Personal Use Only
प्रस्तुत कृति का संपादन आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा स्थित ज्ञानभंडार की एकमात्र हस्तप्रत क्र. ८७६५५ के आधार पर किया गया है । प्रत में कुल पत्र संख्या ४ है । प्रस्तुत कृति हस्तप्रत के द्वितीय अनुक्रम पर पत्र क्र. २आ से ३आ में उल्लिखित है । लिपिविन्यास, लेखनकला तथा कागज आदि के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि यह हस्तप्रत वि.सं. १९वी शताब्दी में लिखी गई होनी चाहिए, प्रतिलेखक एवं लेखनस्थल अनुपलब्ध है । पंक्तियों की संख्या १५ और अक्षरों की संख्या ५२ तक प्राप्त होती है । प्रत की अवस्था फफुंदग्रस्त है साथ ३. प्रशस्ति सन्दर्भ - हस्तप्रत पृ. क्र. २५७आ से २५८अ - 'आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा तीर्थ' से प्रकाशित 'कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची' के खंड १.१.१, हस्तप्रत क्र. ११९, पृ.
I
क्र. १८