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श्रुतसागर
अक्टुबर-२०१८ १३. हृदयङ्गमता- मनोहर, हृदय में ग्रहण करने योग्य अतिशय सुन्दर अर्थात्
हृदयस्पर्शी वचन। १४. देशकालाव्यतीतत्वं- देश-काल प्रसंगोचित वचन। १५. तत्त्वनिष्ठता- विवक्षित वस्तु स्वरूपानुसारी वचन । १६. अप्रकीर्णप्रसृतत्वम्- सुसम्बन्ध का विस्तार अथवा असम्बन्ध अधिकार
अतिविस्तार से रहित। १७. मिथः साकाङ्क्षता (अन्योन्यप्रगृहीतत्वं)- परस्पर पद-वाक्यों की सापेक्षता युक्त। १८. आभिजातत्वम्- वक्ता एवं प्रतिपाद्यभाव के अनुरूप वचन । १९. अतिस्निग्धमधुरत्वम्- स्नेह एवं माधुर्यपूर्ण वचन। २०. अपरमर्मवेधिता- दूसरों के मर्म को प्रकट न करने वाली। २१. धर्मार्थप्रतिबद्धता- धर्म तथा अर्थ से संयुक्त सम्बन्ध वाली। २२. औदार्यम्- अभिधेय वस्तुओं की तुच्छता से रहित। २३. अस्वश्लाघाऽन्यनिन्दिता- स्व प्रशंसा एवं पर निन्दा रहित । २४. प्रशस्यता- प्रशंसा के पात्र । २५. अनपनीतत्वं- कारक, काल, वचन, लिङ्ग इत्यादि के व्याकरण सम्बन्धी दोषों से
मुक्त वचन। २६. उत्पादिताच्छिन्नकौतूहलत्वं- श्रोतागण में अविच्छिन्न कुतूहल उत्पन्न करने वाली। २७. अद्रुतत्वम्- अतिशीघ्रता रहित। २८. अनतिविलम्बितत्व- अति विलम्ब से रहित। २९. विभ्रमविक्षेपकिलिकिच्चितादिविमुक्तत्वं- विभ्रम-विक्षेप-किलिकिच्चितादि
दोष रहित. (विभ्रम- वक्ता के मन की भ्रान्ति, विक्षेप- वक्ता की अभिधेय अर्थ के प्रति अनासक्ति, किलिकिंचित्- दोष, भय, अभिलाषा आदि मानसिक
भावों का प्रदर्शन आदि दोषरहित वचन)। ३०. अनेकजातिसंश्रयाद्वैचित्यम्- वर्णनीय वस्तु आश्रयी अनेक प्रकार की
विचित्रताओं वाली। ३१. आहितविशेषत्वं- वचनान्तर की अपेक्षा से स्थापित विशिष्टता वाली। ३२. साकारत्वं- विछिन्न वर्ण, पद, और वाक्य के द्वारा आकार प्राप्त वचन । ३३. सत्त्वपरिगृहीतत्वम्- साहस पूर्ण वचन)
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