Book Title: Shrutsagar 2018 10 Volume 05 Issue 05
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
13
॥८॥
॥९॥
SHRUTSAGAR
October-2018 पाइक्कि पकणि३१ ग्रही नारी रूपइं अदभूत पदमिनी। रोवतां तेणई कस प्रहारइं करी आगलि चल्लए३३, सुभ असुभ कृतक्रम भोगव्या विणुं परीणाम न पिल्लए५ साइ२६ आणी रे, पाइकि तिणि निय सामिनइ, प्रणमीनइं रे, दीधी हरषित निय मनइं, ते देखी रे, पल्लीपति राजा कहइ, मुझ पोतइ रे, पूरब पुन्यसु गहगहइ। गहगहइ पूरब पुन्य मोरइ नारि जे आवी इसी, अपछर समाणी मनइं जाणी सइरि२९ रोम-समुल्लसी । अभिषेक करिनइं घरणि थापी हार पहरि उदार ए, बंभणी हरखी अंगि व(वि)रचइ नव-नवां सिंगारु ए
॥भास ॥ श्रीजिनवदन निवासइंनी-ए ढाल ॥२॥ पटरांणी हूइ तबई, भोगवइ भोग अपारा रे। राजा साथइ अनुदिनइं४२, विषयारसि चित्त धार्या रे विषयसुखई मन मोहीयउ, सील अनइं कुल हार्या रे। पुत्र अनइं तिम प्रिय तणां, सब ही दुक्ख वि[सा]र्या रे विषय...[आंकणी]॥११॥ तउ पणि३ बंभण ऊपरइं, राग धरइ मनमांहइं रे। परवसि कछुअ न कहि सक्कइ४, नयणे देखण" चाहइ रे विषय...॥१२॥ इक दिनि राजा वीनव्यउ६, बे कर जोडी भावइं रे। दानसाल जउ मंडीए, तउ मुझ मनई सुहावइ रे विषय... ॥१३॥ राइ करावी तब पीछइ, नयर समीपि विसेषइं रे । दानसाल अति विस्तरइं, भोजन हुइ अणलेखई"रे, विषय... ॥१४॥ दिन प्रति पडहउ वाजई, सहुए लोक सुणावइरे। दानसाल आवी करी, जीमिवउ जे मनि भावइ रे विषय... ॥१५॥ कृपण बणीमग बंभणा, पंथीनइं परदेसी रे। बहु परवारइ'२ परवरी, राणी तिहं कणि बइसी रे
विषय... ॥१६॥
॥१०॥
३०. सुभटे, ३१.?, ३२. चाबुक, ३३. चलावी, ३४. कर्म, ३५ ?, ३६. पकडी, ३७. पोताना, ३८. मारा, ३९. शरीरथी, ४०. विकसित रोमवाळी, ४१. त्यारे, ४२. रोज, ४३. तो पण, ४४. शके, ४५. जोवा, ४६. विनंती करी, ४७. खोलावीये, ४८. हिसाब वगरनु, ४९. संभळावयूँ, ५०. जमवू, ५१ भिखारी, ५२. परिवार साथे
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36