Book Title: Shrutsagar 2018 10 Volume 05 Issue 05
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रुतसागर
अक्टुबर-२०१८ नयने कज्जल कुंडलू१३, सोवनमइं बिहुँकांने जाणि कि। निगरिणि १४ हार थनि(?) (हा)सलो, नासा मुत्तिय १५ निरतइं११६ मानि किमानवि... ॥६४॥ कुश(सु)म हार कंठई ठविउ, रणझण नेउर १७ पाइं सोहंति कि। कटि-तटि पहिरी मेखला १८, कांमिय-जन-मृग-मन मोहंति कि मानवि... ॥६५॥ धरम-मरम जांणइं नही, मदमाती रहती दिन राति कि। मनवंछित सुख भोगवइं, लोपीइ निय कुल जातिरू११९ लाज कि मानवि... ॥६६॥ वेदविचक्षण पुत्र जे, आयो तिणि ही नयर मझारि कि। वसतो तिहं कणि सुखि रहइं, कांइ न जाणइं नीसार कि मानवि... ॥६७॥ विषयारसे रातो१२० रहइं, माइं१२१ साथइं अनुदिन मन लाइ कि। माइं न जाणइ पुत्र मुझ, पुत्र न जाणइं मोरी माइं कि मानवि... ॥६८॥ विषम विषयरसि मोहिया, हा ! हा ! पेखो कवण अकाज कि। इंद्रिय दुरजय जीपतां, जीव न गिणइ पापहं राजि कि मानवि...॥६९॥ बहु काल वोलिउ जिसइं, इंम रहितां एक दि तिणि माइ कि। वेदविचक्षण पूछीउ, कहिनइं तुझ कुण जातिरू ताय२२ कि मानवि... ॥७०॥ नयरि कवणि तुम्हि जनमीया, कवण अछइं तुझ माइडी१२३ नाम कि। मुझ आगलि आमूलथी, वात कहो तुम्हि सहू ए सामि कि मानवि... ॥ ७१।। वेदविचक्षण मूलथी, वात कही निय सरल सहाव कि। माइं सुणीनइं पुत्रनइं, कहियो कांइ आपण भाव कि मांनवि... ॥७२॥
॥चंद सुहवा सुणि चंदला-ए ढाल ॥८॥ चेती मनि तव बंभणी, मोहनिद्रा-भर१२४ छंडी रे। विषयारसथी ऊभगी२५, मनि वइंरागसुं मंडी१२६ रे
॥७३॥ हियइ विचारी बंभणी, वनमांहि चिता करावई रे। बइंठी जाई ऊपरइं, चिहुं दिशि अगनि लगावइं रे
चेती... ॥७४॥ विश्वानर'२७ जब परजलिउ, हरखी सा तव नारी रे। पाप बहुल मल धोए(य)वा, जाणिउ१२८ एह जि वारी रे चेती... ॥७५॥ ११३. कुंडळ, ११४. ?, ११५. मोतीनी, ११६. निश्चे, ११७. झांझर, ११८. कंदोरो, ११९. जातीनी, १२०. आसक्त, १२१. मातामां, १२२. पिता, १२३. माता, १२४. घोर मोहनिद्रा, १२५. निर्वेद पामी १२६. युक्त थई, १२७. अग्नि, १२८. जाण्यो
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36