Book Title: Shrutsagar 2016 10 Volume 03 05
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 8 SHRUTSAGAR October-2016 इसकी सच्ची आराधना करनेवालों का जीवन हमेशा सद्गुणरूपी रत्नों से हराभरा रहता है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस कृति में नौ पदों की सुन्दर स्तुति करते हुए प्रत्येक पद की स्तुति में चार-चार गाथाओं का समावेश किया गया है। इसकी खास विशेषता यह है कि प्रत्येक पद की अन्तिम गाथा में धनपतसिंह का प्रतिकात्मक उल्लेख व साथ ही कर्ता ने ध्रुवपंक्ति में अपने नाम का भी उल्लेख किया है। रचना-प्रशस्ति के रूप में निबद्ध अन्तिम दो गाथाओं में कर्ता ने कृति-नाम, रचनासंवत्, तिथि, वार, पक्ष आदि का सुन्दर ढंग से उल्लेख किया है। कर्ता ने रचना-प्रशस्ति में संख्यावाची शब्दों का प्रयोग करते हुए तत्कालीन परम्परानुसार रचनासंवत् का उल्लेख किया है, जो इस कृति के सौष्ठव में चारचाँद लगा देता है, यथा संवत् नंद युग निधि रमा अश्विन सीतेतर सार । सिद्धचक्रगुण वर्णव्या तीथ नवमी गुरुवार ॥२॥ अर्थात् नंद-९, युग-४, निधि - ९, रमा - १, (वि.सं. १९४९), आश्विन मास, सीतेतर-सित से इतर अर्थात् कृष्ण-पक्ष, नवमी तिथि, गुरुवार के दिन इस कृति की रचना हुई है। कर्ता ने रचना-स्थल का उल्लेख तो नहीं किया है, लेकिन कृति में एक स्थान पर धनपतसिंह का नामोल्लेख अवश्य मिलता है। इसके आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि कर्ता अमृतसूरि ने राजा धनपतसिंह के राज्यकाल में इस कृति की रचना की होगी । धनपतसिंह उस समय अजीमगंज (मुर्शिदाबाद) के राजा थे। संभवतः यही क्षेत्र इस कृति का रचनास्थल रहा होगा । कर्ता परिचय : इस कृति में कर्ता के रूप में आचार्य श्री अमृतसूरिजी का नामोल्लेख हुआ है तथा कृतिका रचना संवत् १९४९ है । इसके आधार पर इतना तो तय है कि ये बीसवीं शताब्दी के विद्वान थे। इसके अलावा कृति में एक स्थान पर धनपतसिंह (रायबहादुर) का नमोल्लेख हुआ है जो अजीमगंज (पश्चिमबंगाल) के राजा थे। इनका समय भी बीसवीं शताब्दी है । इसके अलावा इस कृति में कर्ता के गुरु या गच्छ-परम्परा अथवा उनके जीवन संबंधी अन्य For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36