Book Title: Shrutsagar 2016 10 Volume 03 05
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर 23 अक्टूबर-२०१६ इस प्रकार मुनि श्री पुण्यविजयजी ने अपने निर्दंभ साधुजीवन व सत्यग्राही ज्ञानसाधना के स्वभाव से प्राचीन आगमग्रंथ तथा अन्य साहित्यों का भी संशोधन किया। उनकी इस असाधारण निपुणता का लाभ अनेक ग्रंथों व ग्रंथमालाओं को मिला है, यथा- प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, लालभाई दलपतभाई ग्रंथमाला, बंबई के श्री महावीर जैन विद्यालय की मुख्य जैन आगम ग्रंथमाला आदि। इन ग्रंथमालाओं के अन्तर्गत अनेक विरल प्रकाशनों का संपादन हुआ है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उन्होंने अपने गुरुश्री व दादागुरुश्री के साथ बीकानेर, अहमदाबाद, पालीताणा, बडौदा व राजस्थान के बहुसंख्यक ज्ञानभण्डारों को पुनर्जीवित किया, हस्तप्रतों की सुरक्षा के लिए व्यवस्था की व कुछ प्राचीन ज्ञानभण्डार जो कि नामशेष हो रहे थे, उनको भी सुव्यवस्थित किया और उसमें भी जेसलमेर के ज्ञानभण्डार के लिए उन्होंने सोलह-सोलह महिनों तक जो तप किया है वह तो श्रुतरक्षा के इतिहास में निःसंदेह स्वर्णाक्षरों से अंकित रहेगा। इसके अतिरिक्त आगम साहित्य प्रकाशन के लिए मुनिवर्य द्वारा अनेकविध प्रसंशनीय कार्य हुए हैं। उन्हीं कार्यों में से लालभाई दलपतभाई ग्रंथमाला व जैन आगम ग्रंथमाला के प्रकाशन हैं, जो उनकी कीर्तिगाथा निरंतर सुनाते रहेंगे। उनके पास कोई डिग्री न होने पर भी विद्यावारिधि के महानिबंध के परीक्षक, वि. सं.१९५९ में अहमदाबाद में इतिहासपुरातत्त्व विभाग के प्रमुख, वि. सं. २००९ में विजयधर्मसूरि जैनसाहित्य सुवर्णचंद्रक, वि. सं. २०१० में बड़ौदा श्रीसंघ द्वारा ‘आगमप्रभाकर' की सार्थक पदवी का अर्पण, ई. स. १९६१ में All India Oriental Conference में प्राकृत और जैनधर्म विभाग के अध्यक्षपद पर चयन । ई. स.१९७० में The American Oriental Society के मानद सभ्यपद पर नियुक्ति, वि. सं.२०२७ में वरली (बंबई) में प्रतिष्ठा महोत्सव के दौरान चतुर्विध श्रीसंघ की उपस्थिति में आचार्य श्री विजयसमुद्रसूरिजी द्वारा 'श्रुतशीलवारिधि' की यथार्थ पदवी का प्रदान आदि उपलब्धियों से विभूषित हुए चारित्रोद्द्योतदीपाय निःस्पृहायाभयाय च । श्रीपुण्यविजयायास्तु नमः पुण्यविभूतये ॥ For Private and Personal Use Only

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