Book Title: Shrutsagar 2016 10 Volume 03 05
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 28 SHRUTSAGAR October-2016 (वि.सं.११६०, अध्याय-५, गाथा-३५९२) श्री रूपेन्द्रकुमार पगारिया द्वारा संपादित समीक्षित पाठ का ई. स.१९८७ में प्रकाशिन किया गया। इसके अतिरिक्त यदि अन्य प्रकाशनों की बात करें तो- प्राकृत विभाग, गुजरात विश्वविद्यालय द्वारा मार्च-१९७३ में आयोजित Proceedings of the Seminar on Prakrit Studies सेमिनार में सारस्वतपंडितों द्वारा प्रस्तुत शोधलेखों को डॉ. के.आर.चन्द्रा द्वारा संपादित करके प्रकाशित किया गया। डॉ. कृष्णकुमार दीक्षित ने अपनी विद्यावारिधि पदवी हेतु लिखित Early Jainism विषयक ९ अध्यायों में निबद्ध शोधग्रंथ लोगों को जैनधर्म के क्रियाकलापों से अवगत कराता है। डॉ. जे.सी.सिकदर द्वारा संशोधित जैनीय जीवविज्ञान (Jaina Biology) का प्रकाशन किया गया, जो जैनधर्मानुसार जीवशास्त्रीय परिशीलन का एक महत्त्वपूर्ण शोधग्रंथ है। ___ डॉ. सुझुको ओहिरा (Suzuko Ohira) ने Ph.D. पदवी के लिए A Study of Tattvarthasutra with Bhasya विषय पर शोधग्रंथ लिखा, जिसमें तत्त्वार्थसूत्र व भाष्य का गहनाध्ययन किया गया है। __ आचार्यश्री अरिसिंहप्रणीत कविशिक्षा की काव्यकल्पलतावृत्ति (अमरचन्द्रयति) के साथ परिमल टीका (काव्यकल्पलतावृत्ति की स्वोपज्ञ टीका) व मकरंद टीका (शुभविजय गणि) की प्रथमादर्श आवृत्ति इसी ग्रन्थमाला अन्तर्गत रमेशचन्द्र एस. बेटाई के द्वारा संपादन किया गया, जो कि एक महत्वपूर्ण प्रकाशन सिद्ध हुआ। एल.डी.व्याख्यानमाला के अन्तर्गत डॉ. बिमलकृष्ण मतिलाल(University Of Toronto, Canada) Get The Central Philosophy Of Jainism विषय पर दिए गए ३ व्याख्यानों का लिखित स्वरूप में प्रकाशन। आचार्यश्री पद्मसुन्दरसूरिप्रणीत ७ सर्गनिबद्ध २३वें तीर्थंकर भगवान् श्रीपार्श्वनाथ का चरित्र ‘पार्श्वनाथचरितमहाकाव्य' का विविध हस्तप्रतों के आधार पर पाठान्तर, विस्तृत प्रस्तावना व विशिष्ट परिशिष्ट के साथ प्रकाशन । For Private and Personal Use Only

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