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SHRUTSAGAR
26
October-2016
जिन्होंने बहुत सी कृतियों को हस्तप्रतों में से प्रकाशित करके श्रुत-उपासकों को लाभान्वित किया है।
ऐसे प्रकांड पंडित जो न सिर्फ लिपिविषेशज्ञ व हस्तप्रतविद्याविद् बल्कि हस्तविद्या के एक मर्मज्ञ विद्वान् थे । किन्तु 'अल्पश्च कालः बहवश्च ज्ञेयम्' इस सूक्ति को दृष्टिसमक्ष रखते हुए इस विषय पर एक स्वतन्त्र लेख तैयार करने की भावना है।
प्रकाशितपुष्पपराग :
लालभाई दलपतभाई ग्रंथमाला अंतर्गत अब तक १६७ लघु-दीर्घ ग्रंथों का संपादन-प्रकाशन हुआ है। जिसमें से आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा में लगभग सभी प्रकाशन केवल उपलब्ध ही नहीं अपितु सुरक्षित भी हैं। उन सबमें भी विद्वत्समाज में प्रशंसनीय प्रकाशनपुष्प जो कि शोधक्षेत्र में अपनी सुवास नित्य विस्तारित कर रहे हैं, आइये हम उनके विषय में भी कुछ ज्ञानार्जन करें ।
इस ग्रंथमाला के अंतर्गत सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य हुआ है हस्तप्रत सूची (catalogue) प्रकाशन का । जिसमें मुनिराज श्री पुण्यविजयजी द्वारा संकलित संस्कृत-प्राकृत भाषाबद्ध लगभग ७६०० हस्तप्रतों के सूचीकरण का कार्य विद्वानों द्वारा किया गया है। तथा मुनिराज श्री पुण्यविजयजी संकलित व आचार्यश्री विजयदेवसूरि तथा आचार्य श्री क्षान्तिसूरि हस्तप्रतसंग्रह की हस्तप्रतों की सूचि प्रकाशित की गई है।
इस प्रकाशन में वेद-स्मृति-पुराण-इतिहास-तत्त्वज्ञान-जैनसाहित्य संबद्ध हस्तप्रतों की सूची दी गई है, जो सर्वजनसामान्योपयोगी हैं। ये प्रकाशन प्रधानसंपादक पंडित श्री दलसुखभाई मालवणिया और श्री अंबालाल पी. शाह द्वारा ई. स.१९६३-६८ में प्रकाशित हुए हैं।
जेसलमेर ज्ञानभण्डार की सूचि भी सन् - १९७२ में ग्रंथांक-३६ के रूप में प्रकाशित हुई, जो जेसलमेर के ५ ज्ञानभण्डारों में सुरक्षित कागज़ व ताड़पत्त्रीय हस्तप्रतों की सूचि कृति, कर्ता व ऐतिहासिक वर्णनपरक परिशिष्टों के साथ प्रकाशित हुई ।
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