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SHRUTSAGAR
October-2016 प्रकाशनोद्देश्य : ___ लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर को शुरूआत से ही भारत सरकार द्वारा प्रकाण्डपण्डित' सम्मानविभूषित पंडित श्री डॉ. दलसुखभाई मालवणिया का नियामकस्वरूप आधारस्तंभ प्राप्त हुआ तथा आदरणीय प्रज्ञाचक्षु पंडित श्री सुखलाल संघवीजी का नित्य मार्गदर्शन प्राप्त
होता रहा।
आगमप्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी की प्रेरणा से दलसुखभाई की ही नियामकनिश्रा में ईस्वी सन् १९६३ में लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर द्वारा एक ग्रंथमाला की शुरूआत हुई। जिसका नाम 'लालभाई दलपतभाई ग्रंथमाला' (ला.द.ग्रं.) रखा गया।
इस ग्रंथमाला का मुख्य उद्देश्य श्रुतज्ञान-विरासत स्वरूप हस्तप्रतों में रही हुई उत्कृष्ट अप्रकाशित कृतियों का प्रकाशन, हस्तप्रतों का सूचीकरण करके ग्रंथसूची प्रकाशित करना, जैनदर्शन से संबंधित विविध विद्वानों द्वारा रचित शोधपूर्ण ग्रंथों का प्रकाशन, लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर के तत्त्वावधान में विशिष्ट विद्वानों द्वारा किये हुए शोधप्रबंध-शोधग्रंथों का प्रकाशन, पुरातत्त्वशास्त्रसंबद्ध विरल कृतियों का प्रकाशन व संपादन आदि रहा है।
इस ग्रंथमाला के अन्तर्गत संस्था द्वारा समय-समय पर आयोजित परिसंवाद, कार्यशाला, व्याख्यानमाला (श्रेष्ठीश्री कस्तूरभाई लालभाई व्याख्यानमाला, मुनिश्री पुण्यविजयजी स्मृति व्याख्यानमाला, लालभाई दलपतभाई व्याख्यानमाला, प्रो.वी.एम.शाह स्मृति व्याख्यानमाला) आदि में से उपयोगी व्याख्यान-शोधलेख-शोधपत्र आदि का प्रकाशन किया गया व आज भी यह ज्ञानगंगा अनवरत अक्षुण्णरूप से प्रवाहित है। प्रधानसंपादक : ___ लालभाई दलपतभाई ग्रंथमाला के आद्य प्रधानसंपादक के रूप में जिनका महत्त्वपूर्ण सहयोग मिला वे- गुणग्राही, सत्यान्वेषी व गहनसाहित्योपासक, न्यायतीर्थ पं. सुखलालजी संघवी और पं. बेचरदास दोशी के शिष्य, जैनआगमदर्शन-साहित्य तथा बौद्ध-दर्शन-साहित्य के साथ ही वैदिक-दर्शन-साहित्यादि
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