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श्रुतसागर
अक्टूबर-२०१६ हुआ। मुनि श्री पुण्यविजयजी ने संस्था को करीब १०००० हस्तप्रत और ७००० पुस्तकों की अत्यन्त मूल्यवान भेंट दी थी। ___ वर्तमान इस संस्था के पास लगभग ७५ से ८० हजार हस्तप्रतें संग्रहीत हैं, जिनमें राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. द्वारा प्रदत्त करीब ८००० हस्तप्रतों का भी महनीय स्थान है. संस्कृत, प्राकृत, पालि, पुरानी गुजराती, पुरानी हिन्दी तथा अन्य भारतीय व विदेशी भाषाओं में भारतीय संस्कृति, धर्म-तत्त्वज्ञान, ज्योतिष, व्याकरण, छन्द, साहित्य आदि विभिन्न विषयों से संबंधित अति प्राचीन से लेकर अर्वाचीन पुस्तकें उपलब्ध ही नहीं बल्कि सुरक्षित भी हैं। ___ लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर के विशिष्ट आकर्षण का केन्द्र उसका सांस्कृतिक संग्रहालय है, जहाँ पुरातत्त्वसामग्री व सुंदर चित्र, शिल्प, वस्त्र, आभूषण, गृहशोभा की वस्तुएँ आदि तथा १२वीं सदी की चित्रयुक्त हस्तप्रतों के लगभग ४०० नमूने दर्शनार्थियों एवं आगन्तुकों को प्राचीन भारतीय जीवन व संस्कृति के मनमोहक दृश्यों का अवलोकन कराते हैं। प्रस्थापक ( श्रेष्ठिवर्य श्री कस्तूरभाई लालभाई) :
लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर के संस्थापक शेठ श्री कस्तूरभाई का जन्म राजनगर अहमदाबाद के श्रेष्ठिवर्य श्री दलपतभाई के ज्येष्ठपुत्र शेठ श्री लालभाई (ई.स.१८७३-१९१२) की धर्मपत्नि श्रीमती मोहिनाबहन की कुक्षि से वि.सं. १९५१ मार्गशीर्ष कृष्ण सप्तमी बुधवार तदनुसार दिनांक-१९/१२/१८९४ के शुभदिन हुआ था। उनका लालन-पालन बहुत अच्छी तरह हुआ व उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय संस्था से प्राप्त की।
उनका अध्ययन चल ही रहा था कि अचानक पिता का देहावसान हुआ, जिसके कारण मैट्रिक तक की ही शिक्षा प्राप्त कर सके, परन्तु जिनका नाम ही कस्तूरभाई हो उनको तो निश्चित ही अपनी स्वभाव-सुगंध से समाज को सुवासित करना था, अतः पिता के अवसान से १७ वर्षीय श्री कस्तूरभाई ने माता की आज्ञा को शिरोधार्य कर स्नातकाभ्यास को तिलांजलि देकर
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