Book Title: Shrutsagar 2016 10 Volume 03 05
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लालभाई दलपतभाई ग्रन्थमाला भाविनकुमार के. पंड्या प्राचीनकाल से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की अविचल धारा निरंतर प्रवाहित होती रही है। इसका मुख्य कारण यहाँ की सबसे महत्त्वपूर्ण व आधारभूत परंपरा श्रुतज्ञान के संरक्षण एवं संवर्द्धन की व्यवस्था है। जिससे वाचकगण लाभान्वित होते रहे हैं। इस प्राचीनतम परंपरा के संरक्षण-संवर्धन तथा ज्ञान की साधना-आराधना करनेवालों के लिए उपयोगी अनेक ज्ञानभण्डारों-ज्ञानमन्दिरों-पुस्तकालयोंग्रन्थागारों की स्थापना समय-समय पर पूज्य श्रमण-श्रमणियों की प्रेरणा से सुश्रावकों द्वारा की जाती रही है। आज भी ऐसी कई संस्थाएँ हैं, जो निरंतर श्रुत की सेवा व उसके प्रचार-प्रसार-विस्तारार्थ तत्पर हैं। श्रुतज्ञान के संरक्षण-संवर्द्धनरूपी शृंखला की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में ज्ञानाराधना के क्षेत्र में सुप्रसिद्ध अद्वितीय संस्था 'लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अहमदाबाद' है। जिसकी स्थापना पूज्य मुनिश्री पुण्यविजयजी म. सा. की प्रेरणा से अहमदाबाद के स्वनामधन्य शेठ श्री कस्तूरभाई लालभाई द्वारा की गई थी। भारत के पश्चिम में स्थित जैन धर्म एवं संस्कृति की पुण्य भूमि गुजरात राज्य के मध्य में साबरमती नदी के दोनों तटों पर बसा हुआ नगर जिसे हम अहमदाबाद-कर्णावती-राजनगर-अमदावाद आदि नामों से जानते हैं, उस रमणीय नगरी में जैन धर्म एवं प्राच्यविद्या के संशोधन केन्द्र के रूप में ख्यातिप्राप्त श्री लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर (ला.द.भा.सं.वि.) विद्यमान है, जिसकी स्थापना ईस्वी सन् १९५५ में हुई। । तत्पश्चात् ईस्वी सन् १९६३ में विशाल उद्यान से सुशोभित सुंदर भवन का निर्माण हुआ और उसका उद्घाटन स्वतंत्रभारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित श्री जवाहरलाल नेहरु के करकमलों से गुजरात राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. जीवराज महेता व राज्यपाल माननीय श्री महेंदीनवाज़ जंग की उपस्थिति में For Private and Personal Use Only

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