Book Title: Shrutsagar 2016 10 Volume 03 05
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
अक्टूबर-२०१६ उम्मीलिऊण नयणे, ते धन्ना जेहिं दिट्ठो सि ॥१८॥ [BJLI IIINDf 58 ॥१८॥ अट्ठावयंमि सेले, चउदसभत्तेण मुक्खमणुपत्तो। 16818 RJ dLANI४ दसहि सहस्सेहि समं, ते धन्ना जेहिं दिवो सि ॥१९॥
adduate Dft 18 ॥१९॥ इअ चवणजम्मनिक्खमणनाणनिव्वाणकालसमयंमि। .:.8 dbIXITFIT{IFJ18 18 भत्तिब्भरनिब्भरेहि, ते धन्ना जेहिं दिट्ठो सि ॥२०॥
Plgirgit: Dft58 ॥२०॥ दढमूढअयाणगेण, भत्तिए संथुओ सया भयवं। १८४HINI PAROLA PI तं कुणसु नाभिनंदण, पुणो वि जिणसासणे बोहिं ॥२१॥ K tid III 47 6 ILI OU RRPI
शतशांतिकांति समतानिशांतं, दष्टाष्टकर्मक्षयकं नितांतं । निर्मोहमानं परमं प्रशांतं, वंदे जिनेशं परमं महांतं ॥१॥ यस्यांबिका श्रीत्रिशलाभिधाना, सिद्धार्थराजा जनकः प्रसिद्धः ॥ विश्वोपकृत दुस्सहदुस्समेपि, तं वीरनाथं प्रणतोस्मि भक्त्या ॥२॥
(आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर प्रत-४०५०० के अंत में से उद्धृत श्लोक)
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