Book Title: Shrutsagar 2016 07 Volume 03 02
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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SHRUTSAGAR
July-2016 आ कृति तेमणे छेल्ली अवस्थामां रची होय तो बन्ने कविओनुं ऐक्य संभवे. बाकी तो मेह नामना अन्य कोइ कवि हशे ते, विचार, रहे. एक विकल्प रूपे 'बिडोत्तर' शब्दनो अर्थ बे' पण थाय छे, एटले के १५०२ लहिये तो राणकपुर चतुर्मुख विहार प्रासाद स्तवनना रचनाकार आ कृतिना रचनाकार मानी शकाय. उपरोक्त बन्ने कृतिओने मेळवी कोइ विद्वान् विशेष संशोधन रजू करे तो कविना संदर्भे चोक्कस विगतो मेळवी शकाय.
प्रस्तुत कृतिनी प्रत अमोने जोधपुर-प्राच्यविद्या प्रतिष्ठानना हस्तलिखित संग्रहमांथी मळी छे. कृति सुवाच्य छे. अक्षर मरोडदार छे. प्रायः रचनासंवतनी तुरंतमां ज लखायेली हशे तेवू अनुमान छे. संपादनार्थे प्रस्तुत कृतिनी नकल आपवा बदल राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठाननी जोधपुर शाखाना व्यवस्थापकश्री कमलकिशोरजीनो तेमज अन्य व्यवस्थापकोनो आभार तेमज पाठांतर माटे प्रतनी अन्य नकल आपवा बदल कोबा- श्री महावीर जैन आराधाना केन्द्रना व्यवस्थापकोनो खूब-खूब आभार.
कवि मेहकृत
श्रीसोमसुंदरसूरिसज्झाय गोअम गणहर जंबूसा(स्वा)मि, थूलिभद्र मुनिवर लिउं नाम । सोमसुदंरसूरि जगहपहाण, कलियुगमाहि रहाविउं नाम ॥१॥ आदिनगर पाल्हणपुर जाणि, पुरषर(त)ननी तिहां छइ खाणि । पूजइ पास जिणेसर सवे, तिहिं घटि पाप न आवइं भवे ॥२॥ श्रीजयानंदसूरि जयवंत, पाल्हणपुरि पहुता विहरंत । करई महोत्सव तिहां अति घणा, आवई संघ चिहुं दिसि तणा ॥३॥ प्रागवंसि साजणसी भलउ, सोमकुमर तेहनइ कुलि तिलउ। माल्हणदेवि कुअरि उर धरिउ, राजहंस कुंखइं अवतरिउ ॥४॥ सात वरिसनउ हूउ सुकमाल, रूपवंतनइ गुणिहं रसाल। बहुतरि कला लखण बत्तीस, मायबाप पूरवइ जगीस ॥५॥
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