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SHRUTSAGAR
July-2016 आरनालं - आलनालं, अनिलः – अनिलो, अनलः – अनलो। आर्ष प्राकृत में न के स्थान पर ण होता है ऐसे भी कई उदाहरण प्राप्त होते
कनकम् – कणयं, मदनः – मयणो, वदनम् – वयणं, नयनम् – नयणं ।
आदेः यः जः ८.१.२४५ - शब्द की आदि में अगर य हो तो उसके स्थान पर ज होता है जैसे
यशः जसो, यमः – जमो, यादि - जाइ।
अवयवो, विणयो जैसे शब्द में य आदि में नहीं तो यह नियम नहीं लगता शब्द अगर उपसर्ग युक्त हो तो यह पूर्ण रूप से आदि में य नही होता है इस कारण य का ज नहीं होता जैसे
संयमः- संजमो, संयोगः- संजोगो, अपयशः- अपजसो, प्रयोगःपयोओ।
आर्ष प्राकृत में कई स्थानों पर विशेष रूप से आदि में रहे य का लोप नहीं होता है जैसे
यथाख्यातम् – अहक्खाय, यथाजातम् – अहाजायं।
हरिद्रादौ लः ८.१.२५४- हरिद्रा आदि शब्दों में र के स्थान पर ल के प्रयोग का नियम दिया गया है जो कि आदि के कारण यह नियम कई शब्दों में प्रयुक्त होता है जैसे कि- हरद्रा-हलिद्दो, दरिद्राति-दलिद्दाइ, हारिद्रःहालिद्दो, युधिष्ठिरः-जहिढिल्लो, शिथिरः-सिढिलो, मुखरः-मुहलो, चरमःचलणो, वरुणः-वलुणो, करुणः-कलुणो, अङ्गार-इंगालो, सत्कारः- सक्कालो, सुकुमारः-सोमालो, किरातः-चिलाओ, परिखा–फलिहा, परिघः–फलिहो, पारिभद्रः-फालिहट्टो, कातरः-काहलो, रुग्णः-लुक्को, अपद्वारः-अवद्दालो भ्रमरः-भमलो, जठरम्-जढलं, बडरः-बढलो, निष्ठुरः-निट्ठल।
चरण शब्द के लिए यह स्पष्टता है की यदि पैर के अर्थ का सूचक है तब ही र के स्थान पर ल होता है उसके अलावा नहीं होता जैसे- चरणकरणम्चरणकरणं।
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