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श्मश्रुः - मासू, मंसू, मस्सू, श्मशानम् - मसाणं ।
आर्ष प्राकृत में श्मशानम् – सीआणं, सुसाणं ।
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आर्ष प्राकृत में स परिवर्तन में भी और विशिष्ट रूप मिलते हैं
च्च में परिवर्तन- निश्चल – निच्चल, तथ्यम् - तच्चं
आदेः श्मश्रुश्मशाने ८.२.८६ – संस्कृत शब्द श्मश्रुः और श्मशान में आदि श् व्यंजन का प्राकृत रूपंतर में लोप हो जाता है जैसे
July-2016
तैलादो ८.२.९८ – संस्कृत भाषा में तैल आदि अनेक शब्द ऐसे हैं जिनके प्राकृत रूपांतर में कभी कभी तो अन्त्य व्यंजन का द्वित्व होता है और कभी कभी अनन्त्य अर्थात मध्य व्यंजनों में से किसी एक व्यंजन का द्वित्व हो जाता है। अनन्त्य के संबंध में कोई निश्चित नियम नही अतः जिस व्यंजन का द्वित्व मिलता है उसका विधान इस सूत्र के अनुसार होता है। इतना निश्चित है कि अनादि का ही द्वित्व होता है ।
आर्ष प्राकृत में कई शब्द एसे हैं जिनमें अनन्त्य का द्वित्व नहीं होता और अन्त्य या मध्यस्थ व्यंजन का द्वित्व नहीं होता इस प्रकार के उदाहरण भी मिलते
हैं ।
अंत्य व्यंजन द्वित्व होने के उदाहरण तैलम् - तेल्लं, मण्डुकः – मण्डुक्को, विचकिलम् – वेइल्लं, ऋजुः – उज्जू, वीडा – विड्डा, प्रभूतम् - बहुत्तं ।
अनन्त्य व्यंजन का द्वित्व होने के उदाहरण स्तोत्रम् – सोत्तं, यौवनम् – जुव्वणं ।
आर्ष प्राकृत में जहाँ यह नियम नहीं लगता ऐसे उदाहरणविश्रोतसिका – विसोअसिआ, प्रतिस्त्रोत – पडिसोओ। आर्ष प्राकृत में इस निय के अनुसार शब्दों का प्रयोग भी मिलता है और ऐसे भी कई शब्दों का प्रयोग मिलता है जहाँ ऐसे नियम प्रयुक्त नहीं होते।
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क्ष्मा श्लाघा रत्ने अन्त्य व्यंजनात् ८.२.१०१ - क्षा श्लाघा रत्न इन शब्दों में रहे संयुक्त व्यंजन में अ का आगम होता है